झारखंड के मेडिकल कॉलेजों की दुर्दशा: ढूंढ़ने पर भी नहीं मिल रहे प्रोफेसर, मोटी रकम का प्रलोभन भी पड़ा फीका
झारखंड के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्राध्यापक (Professor) एवं सह प्राध्यापक (associate professor) की इतनी अधिक कमी हो गई है कि दो-ढाई लाख के वेतन पर भी चिकित्सक नहीं मिल रहे हैं। बार-बार वॉक-इन इंटरव्यू भी आयोजित किया जा रहा है।
राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य सरकार को मेडिकल कालेजों में प्राध्यापक (Professor) एवं सह प्राध्यापक (associate professor) के पदों पर नियुक्ति के लिए बार-बार वाक इन इंटरव्यू आयोजित करने के बाद भी चिकित्सक नहीं मिल रहे। स्वास्थ्य विभाग ने इन मेडिकल कालेजों की मान्यता को बचाने के प्रयास में एक बार फिर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया है। मेडिकल कालेजों में प्राध्यापकों के कुल 72 तथा सह प्राध्यापक के 89 पदों के लिए क्रमश: 10 एवं 11 फरवरी को वाक इन इंटरव्यू का आयोजन रिम्स, रांची में होगा। नियुक्ति रिम्स को छाेड़कर राज्य सरकार के पांच अन्य मेडिकल कालेजों में होगी।
मेडिकल कॉलेजों में नियुक्ति 24 विभागों में होगी
प्राध्यापक एवं सह प्राध्यापक के पदों पर नियुक्ति राज्य के मेडिकल कालेजों में कुल 24 विभागों में होगी। इनमें एनाटोमी, फिजियोलाजी, बायोकेमेस्ट्री, पैथोलाजी, माइक्रोबायोलाजी, एफएमटी, फार्मोकोलाजी, पीसीएम, औषधि, टीबी एवं चेस्ट, शिशु रोग, सर्जरी, अस्थि, ईएनटी, नेत्र, स्त्री एवं प्रसूति, रेडियोलाजी, रेडियोथेरेपी, निश्चेतना, दंत, रक्त अधिकोष, चर्म एवं यौन रोग, मनोरोग तथा फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलेटेशन विभाग शामिल हैं। इन सभी विभागों में संविदा पर नियुक्ति होगी। ये सभी पद प्रोन्नति के पद हैं।
दो-ढाई लाख की सैलरी पर चुने जाएंगे प्रोफेसर
फिलहाल इन रिक्त पदों को भरने के लिए संविदा पर नियुक्ति का बार-बार प्रयास किया जा रहा है। नियुक्ति दो वर्ष की होगी। हालांकि प्रदर्शन के आधार पर संविदा विस्तार की भी बात कही गई है। बता दें कि राज्य सरकार ने इन पदों के लिए चिकित्सक नहीं मिलने पर प्राध्यापक पद का वेतन बढ़ाकर ढाई लाख रुपये मासिक तथा सह प्राध्यापक का वेतन दो लाख रुपये मासिक कर दिया है। आयु सीमा भी बढ़ाकर 70 वर्ष कर दी गई है ताकि मेडिकल कालेजों के सेवानिवृत्त चिकित्सक भी इन पदों पर नियुक्त हो सकें।
ये भी पढ़ें- Dhanbad Fire: अस्पताल कर्मियों ने दिखाई दिलेरी, बहादुरी दिखाकर बचा ली नवजात समेत 9 महिला मरीजों की जिंदगी