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रांची: जब तक आदिवासियों के शरीर पर कपड़े नहीं होंगे, तब तक सिले हुए वस्‍त्र नहीं पहनेंगे

जैविक आधारित खेती से आज झारखंड के कई गांवों की स्थिति बदल गई है। कई गांव तो आज जैविक गांव के रूप में प्रसिद्ध हो चुके हैं।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 06:00 AM (IST)
रांची: जब तक आदिवासियों के शरीर पर कपड़े नहीं होंगे, तब तक सिले हुए वस्‍त्र नहीं पहनेंगे

विकास भारती बिशुनपुर के सचिव पद्मश्री अशोक भगत आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पूरे झारखंड के साथ-साथ देश में भी लोग आज इन्हें बाबा के नाम से जानने लगे हैं। आदिवासियों के रहन-सहन को देखते हुए उन्होंने शपथ लिया था कि जब तक आदिवासियों के शरीर पर वस्त्र नहीं होगा, सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनेंगे। आज भी उसे निभा रहे हैं।

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इनके प्रयास से हजारों लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सका है। बड़ी संख्या में पलायन रुका और बोरा बांध निर्माण के माध्यम से कृषि को बढ़ावा दिया, जिससे क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आई। वर्तमान में अशोक भगत आज केंद्रीय खादी आयोग के सदस्य एवं झारखंड योजना आयोग के सदस्य हैं। महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बनी 20 सदस्यीय कोर टीम के सदस्य हैं।

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कृषि आधारित उद्योग धंधों को बढ़ावा देना होगा
भारत कृषि प्रधान देश है। यहां की अर्थव्यवस्था का एक मजबूत आधार कृषि है। प्राचीन समय में कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता था। भारत का रेशम विश्व में प्रसिद्ध था। अधिकतर घरों में खादी वस्त्र तैयार करने के लिए सूत काटे जाते थे। गांवों के परंपरागत उद्योग धंधे फल फूल रहे थे। कारीगरों को काम मिलता था। परंतु जैसे-जैसे अंग्रेजों का शासन भारत में फैलता गया, परिस्थितियां बदलती गई। परंपरागत कारीगरी व्यवस्था को समाप्त करने की रणनीति बनाई गई। किसानों की स्थिति खराब होती चली गई। बड़े-बड़े उद्योग धंधों को बढ़वा दिया जाने लगा।

रांची जिले में भी कई उद्योग कारखाने स्थापित किए गए। परंतु उसका परिणाम सबके सामने है। जिस रफ्तार में देश का विकास होना चाहिए नहीं हुआ। अब फिर से खेती को बढ़ावा देने की बात होने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा कि गांवों के विकास से ही देश का विकास होगा। इसकी योजनाएं भी बनाई जा रही हैं। गांवों के विकास के लिए अलग से राशि की व्यवस्था की जा रही है।

मेरा स्पष्ट मानना है कि यदि हम रांची शहर, राज्य एवं देश का विकास एवं लोगों की आर्थिक स्थिति बदलना चाहते हैं तो कृषि आधारित उद्योग धंधों को बढ़ावा देना होगा। मधुमक्खी पालन, गोपालन, तसर उत्पादन आदि पर जोर देना होगा। गांवों की परंपरागत कारीगरी व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए फिर से उपाय करने होंगे। सब्जी की खेती पर जोर देना होगा। जैविक आधारित सब्जी की खेती करने पर यदि रांची ग्रामीण के लोग जोर दें तो पूरे रांची शहर की सब्जी की आपूर्ति यहां से हो सकती है।

जैविक आधारित खेती से आज झारखंड के कई गांवों की स्थिति बदल गई है। कई गांव तो आज जैविक गांव के रूप में प्रसिद्ध हो चुके हैं। रांची के ओरमांझी, इटकी, नगड़ी, अनगड़ा आदि गांवों में सब्जी की अच्छी खेती हो रही है। इन इलाकों के साथ-साथ दूसरे गांवों में भी जैविक आधारित खेती को बढ़ाने की जरूरत है।

जैविक उत्पादित सब्जी की मांग बढ़ती जा रही है। इसका मूल्य भी अच्छा मिलता है। वर्तमान समय में विभिन्न तरह की बढ़ रही बीमारियों के कारण जैविक आधारित सब्जी की मांग काफी बढ़ गई है।

इस तरह की सब्जी की मांग पूरे देश में है। हम रांची शहर की मांग के अनुसार पूर्ति करके बाहर में भी सब्जी भेज सकते हैं। इससे लोगों की अर्थव्यवस्था सुधरेगी। मशरूम के उत्पादन पर जोर देने से भी स्थिति सुधरेगी। इसकी मांग काफी बढ़ती जा रही है।

परंपरागत कारीगरी व्यवस्था पर जोर देना होगा
राज्य और देश का विकास चाहते हैं तो गांवों में चल रहे परंपरागत कारीगरी व्यवस्था पर भी जोर देना होगा। वैसे लोगों को नई तकनीक के अनुसार प्रशिक्षण देने का काम करके व्यवसाय से जोड़ना होगा। बढ़ई, मोची, नाई, कुम्हार, सूत काटना, सुनार, लोहा गलाने आदि का परंपरागत काम जो लोग करते थे, वैसे लोग यदि प्रशिक्षण लेकर काम करेंगे तो उन्हें रोजगार मिलेगा। इससे गांवों की अर्थव्यस्था सुधरेगी तो शहरों पर बोझ कम होगा। इन कामों में खादी बोर्ड, झारक्राफ्ट, माटी कला बोर्ड आदि का सहयोग ले सकते हैं।

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