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सरकार और प्राइवेट मिलकर बढ़ें तो बदल जाएगी रांची की तस्वीर

माध्यमिक शिक्षा से लेकर इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई में रांची के छात्रों का प्रदर्शन लगातार बेहतर हुआ है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 10:56 AM (IST)
सरकार और प्राइवेट मिलकर बढ़ें तो बदल जाएगी रांची की तस्वीर

शिक्षा का विकास किसी एक व्यक्ति, संस्थान या सरकार मात्र का दायित्व नहीं यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है। अभी सरकारी और प्राइवेट के नाम पर बंटी हुई शिक्षा व्यवस्था को एक दायरे में लाने में हिचक खत्म करनी होगी। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के लिए बदलाव करने होंगे। शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाए रखना होगा और अनवरत प्रयास करने होंगे। शिक्षण संस्थानों को दायरे से निकालना होगा। आपस में प्रतियोगिता शिक्षा की गुणवत्ता के लिए हो तो परिस्थितियां और भी बदलेंगी। रांची में अपार संभावनाएं हैं और इतने अनुशासित छात्र आपको हर जगह नहीं दिखते। इस कारण हमें इन छात्रों के भविष्य को लेकर भी योजना बनानी चाहिए। प्राइवेट स्कूल अकेले बदलाव नहीं ला सकते।

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इंटर स्कूल क्विज प्रतियोगिता का दायरा बढ़े
रांची में इसके लिए माहौल तो तैयार हो चुका है, लेकिन इसका दायरा बढ़ाने की जरूरत है। सीबीएसई स्कूलों के प्रबंधन आपस में यह काम करते हैं और आइसीएसई स्कूलों के प्रबंधन इसी प्रकार की योजना बनाते हैं। सब अलग-अलग दायरे में हो रहा है। इस बंटवारे में अलग-थलग पड़ जा रहे हैं सरकारी स्कूल के बच्चे। इन बच्चों को सामाजिक तौर पर उतना ही अधिकार मिला हुआ है, इनके विकास को हमारे प्रयासों से बाधा नहीं पहुंचे। इसका ख्याल रखना जरूरी है। सभी बोर्ड के बच्चे एक साथ प्रतियोगी माहौल में आगे बढ़ें तो एक सुशिक्षित समाज के साथ-साथ स्वस्थ परंपरा का भी निर्माण होगा। वर्तमान में सरकारी से लेकर प्राइवेट स्कूल तक इंटर तक पढ़ाई संपादित करवा रहे हैं। 

सरकार की ओर से हो पहल
सरकार को इस मामले में ठोस पहल करनी चाहिए। सभी प्राइवेट स्कूल तैयार हो जाएंगे। शिक्षकों की गुणवत्ता में कहीं कोई कमी नहीं है, छात्रों की योग्यता भी इसी प्रकार एक समान दायरे में लाई जा सकती है। सरकार के अधिकारी इसकी रूपरेखा तैयार करें और क्विज प्रतियोगिता से शुरू होकर, खेलकूद और को-करिकुलर गतिविधियों को लेकर भी इस तरह के कार्यक्रम हो सकते हैं। बच्चों के बोलने, समझने और विकास करने की क्षमता बढ़ेगी। एक-दूसरे से बच्चे सीख भी सकते हैं।

विश्व-विद्यालय अलग-थलग क्यों दिखते हैं
यह महत्व‍पूर्ण विषय है। स्कू‍लों में विश्वविद्यालयों के लिए छात्र तैयार होते हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय को इन बातों से कोई लेना-देना ही नहीं है कि उनके लिए जो पौध तैयार की जा रही है, उसकी गुणवत्ता कैसी है। हाल ही में दिल्ली पब्लिक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी इस मुद्दे को उठाया था। मेरा मानना है विवि की गतिविधियां स्कूलों में नियमित होनी चाहिए ताकि उन्नत पौध तैयार हों और सभ्य समाज के निर्माण का सपना कारगर साबित हो।

नियम-कानून पकड़ाने पर नहीं स्‍कूलों से सिखाए सरकार
कोई बालिग व्याक्ति बिना ड्राइविंग लाइसेंस के पकड़ा गया, कोई आयकर चोरी में फंसा, कोई सर्विस टैक्स नहीं दे रहा आदि तमाम भ्रांतियां अपने समाज में है और इसे दूर करना होगा। बालकाल में लोग जो बातें सीख लेते हैं उनसे जीवनभर जुड़े रहते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि चौराहे पर जुर्माना काट रहे ट्रैफिक के अफसर बगल के स्कूल में बच्चों को नियम पढ़ा दें। आयकर, सेवाकर, वाणिज्य कर के अधिकारी, पुलिस आदि सरकारी अधिकारियों को स्कूलों में आकर बच्चों को मौलिक जानकारी देनी चाहिए। यह भी बताइए कि जीएसटी क्यों देना है और इससे देश को क्या लाभ है। अन्यथा सुधार की प्रक्रिया धीमी ही रहेगी।

ज्यादा अपराध क्यों करते हैं पढ़े-लिखे लोग
अपराध बढ़ रहा है और हमेशा बढ़ते रहेगा। हमें सभ्य और अनुशासित समाज के निर्माण के लिए पहल करनी होगी। आज के दिन एटीएम कार्ड की क्लोनिंग कौन कर रहा है, साइबर फ्रॉड में कौन लोग जुटे हैं? ऐसे तमाम सवालों का जवाब ढूंढ़ने के क्रम में आपको जानकारी मिलेगी कि अपराध में संलिप्त लोग तो पढ़े-लिखे हैं।

ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि आखिर वे क्या पढ़े-लिखे हैं। हम पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों को सामाजिक तौर-तरीकों से दूर करते जा रहे हैं। इसे रोकना होगा। इंजीनियर, डॉक्टर, किसी संकाय का टॉपर आपराधिक मानसिकता से दूर रहे, यह भी हमारी जिम्मेदारी है।

ज्ञान बांटते हैं, अनुभव छिपा लेते हैं
स्कूल से लेकर कॉलेज तक शिक्षा पद्धति में इसका घोर अभाव है। हम ज्ञान (नॉलेज) तो बांट देते हैं, लेकिन अनुभव नहीं बांटते। सिलेबस में इसके लिए जगह ही नहीं। बाहर के अनुभवी लोगों को बुलाते ही नहीं तो फिर कैसे हो सुधार। स्कूलों, कॉलेजों और तमाम शिक्षण संस्थानों को इसके लिए काम करना होगा, हमें अनुभव भी बांटने के तौर-तरीके सीखने होंगे। इससे बच्चों को भी सिखाना होगा। ऐसे प्रयासों से बदलाव आएंगे और बेहतरी भी लाएंगे।

भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) से निकलकर शिक्षण के क्षेत्र में अपना सर्वस्व लगाकर डॉ. राम सिंह ने रांची के शैक्षणिक माहौल की वह गरिमा लौटाने में मदद की है, जो लगभग एक दशक से पीछे चल रही थी। राजधानी रांची से बेहतर परिणाम बोकारो और धनबाद देने लगे थे। शैक्षणिक अनुशासन और नियमित प्रयास से राज्य ही नहीं बिहार-झारखंड में रांची का अव्वल स्थान है।

माध्यमिक शिक्षा से लेकर इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई में रांची के छात्रों का प्रदर्शन लगातार बेहतर हुआ है। इसका कारण है प्रतियोगी माहौल का तैयार होना। अपने स्कूल के ही नहीं, दूसरे स्कूलों को लेकर भी इन्होंने वातावरण बदलने की कोशिश की है। 

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