रांचीः विशेषज्ञ चिकित्सकों की बहाली को मिले प्राथमिकता
अस्पतालों में भी तंबाकू विमुक्ति केंद्र होना चाहिए। जहां चिकित्सकों की ओर से रोगियों को बराबर जागरूक किया जाए।
शहर में स्वास्थ्य से जुड़ी आधारभूत संरचना को और बेहतर करने की जरूरत है। सबसे पहले तो प्रारंभिक स्तर पर अस्पताल और सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए। उसके बाद जिला और राज्य स्तर पर विशेषज्ञों की बहाली हो, जिससे आम लोगों को सामान्य बीमारियों का तत्काल इलाज हासिल हो सके।
राज्य और जिला स्तर की यूनिट को एक्सपर्ट या स्पेशलाइज्ड यूनिट के रूप में काम करना चाहिए। रिम्स या सदर अस्पताल में सुपर स्पेशलिस्ट विंग हों, जिससे लोगों को शहर या राज्य के बाहर इलाज के लिए नहीं जाना पड़े। शहर के अस्पतालों में चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी बराबर जागरूक करने का अभियान चलाया जाना चाहिए। चिंता का विषय यह है कि आज की तारीख में कैंसर जांच के लिए कोई अलग संस्थान रांची में नहीं है।
चिकित्सक अपने मरीजों को तंबाकू छोड़ने या स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए बराबर जागरूक करें। इधर के सालों में यह काम बराबर हो भी रहा है। इससे पिछले सात सालों में तंबाकू सेवन में 11.10 फीसद की कमी आई है। पहले यह 50.01 फीसद था, जो अब 38.9 फीसद हो गया है। मीडिया की ओर से भी इसे लेकर बराबर जागरूक किया जा रहा है। अस्पतालों में नन कम्युनिकेबल डिजीज से जुड़ा अभियान चल रहा है। हाइपर टेंशन और कार्डियक से जुड़े रोग तंबाकू से जुड़े मामलों को लेकर ही होते हैं। चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी जितनी ज्यादा जानकारी या सूचनाएं रखेंगे और रिसर्च से अपडेट रहेंगे, वह उतना ज्यादा ही अपने मरीजों को जागरूक कर सकेंगे।
अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी
अस्पतालों में भी तंबाकू विमुक्ति केंद्र होना चाहिए। जहां चिकित्सकों की ओर से रोगियों को बराबर जागरूक किया जाए। इसके अलावा हर मर्ज की सुपर स्पेशियलिटी यूनिट स्थापित हो। सरकारी अस्पतालों में जैसी भीड़ जुटती है, उससे कई लोग निजी अस्पतालों का सहारा लेते हैं। अगर संभव हो, तो कांट्रैक्ट पर चिकित्सकों की बहाली हो। सरकार यह भी प्रयास करे कि चिकित्सकों को उचित पारिश्रमिक भुगतान किया जाए। जिससे वह छोड़कर नहीं जाएं। पहले से ही राज्य चिकित्सकों की कमी की समस्या को झेल रहा है।
इसके अलावा अस्पतालों में लेटेस्ट तकनीक से जुड़ी मशीनें लगाई जाएं। साथ ही उनके जानकारों की नियुक्ति हो। रिम्स और सदर अस्पताल में इन्हें लगाए जाने से लोगों को जांच के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। इसके अलावा पीपीपी मोड यानी प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप को लेकर जिस एजेंसी को हायर किया जाए, उसे उचित सहयोग मिले। कई बार देखा गया है कि एजेंसी को उचित सहयोग नहीं मिलने पर संबंधित कार्य नहीं हो पाता है।
हमारी संस्था सीड्स यानी सोशियो इकोनॉमिक एंड एजुकेशनल डेवलपमेंट सोसाइटी रांची शहर में तंबाकू विमुक्ति अभियान से जुड़ी हुई है। आज के दौर में ज्यादातर कैंसर के मामले तंबाकू के ज्यादा प्रयोग के कारण ही होते हैं। खुद डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों में ही कई बार इससे जुड़ी जानकारी का अभाव रहता है। मेरा मानना है कि अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की बहाली की जाए।
साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों को कार्यशाला के माध्यम से शोधों को लेकर जानकारी उपलब्ध कराई जाए। मैं खुद नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 के तहत गठित टास्क फोर्स नशा मुक्ति अभियान में सदस्य हूं। हमारी संस्था तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम, झारखंड में तकनीकी सहयोग दे रही है। हमारी संस्था की पहल पर प्रशासन ने शहर में तंबाकू विक्रेताओं को लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया।
कौन हैं दीपक मिश्रा
सामाजिक संस्था सोशियो इकोनॉमिकल एंड एजुकेशनल सोसाइटी के कार्यपालक निदेशक हैं। इन्होंने अपने कार्यों से प्रभावित करते हुए झारखंड सरकार को तंबाकू निषेध के कड़े प्रावधानों को लागू करने के लिए बाध्य किया। सरकार को इस विषय की गंभीरता से लगातार अवगत कराते रहते हैं। कानून बनने के बाद भी झारखंड में यह प्रभावी नहीं था और अधिकारी इसके प्रति संवेदनशील नहीं थे। अधिकारियों से लगातार मिलकर नियमावली बनने तक इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।