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रांचीः गैर शिक्षण कार्यों से शिक्षकों को दूर रखें

झारखंड और रांची की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों का संकल्प स्पष्ट तौर पर दिखता है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Thu, 26 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 11:28 AM (IST)
रांचीः गैर शिक्षण कार्यों से शिक्षकों को दूर रखें

शिक्षा किसी भी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्कूली शिक्षा को बेहतर और कारगर बनाने के लिए हमें
स्कूलों के बारे में अपनी परंपरागत मानसिकता को बदलना होगा। स्कूलों को कार्यालय समझने की मानसिकता से बाहर आना होगा। शिक्षकों को मजबूरन गैर
शैक्षणिक कार्य भी करने पड़ते हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान होता होता है। बच्चे शिक्षकों के माध्यम से पाठ्यक्रम से जुड़े रहना चाहते हैं।

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शिक्षकों का प्रशिक्षण और परीक्षण भी शिक्षा को बेहतर बनाने में हमारी मदद करेगा। सरकारी और गैर सरकारी दोनों प्रकार के स्कूलों के शिक्षकों को वर्ष में दो बार विषयवार प्रशिक्षण देने की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रशिक्षण कार्यशाला से ग्रे एरिया कवर हो जाता है और शिक्षक पढ़ाने की नई तकनीक सीखते हैं। इसका अंतत: फायदा छात्रों को होता है और हम एक जिम्मेदार नागरिक तैयार कर पाते हैं।

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संस्थानों को अपने शिक्षकों पर विश्वास करना होगा
शैक्षणिक सुधार में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसलिए शिक्षण संस्थानों को अपने शिक्षकों पर विश्वास पैदा करना होगा। क्योंकि अविश्वास के वातावरण में अच्छाई एवं सृजनात्मक कार्यों का फूल नहीं खिल पाता है। इसलिए विश्वास का माहौल पैदा किया जाए। समय-समय पर शिक्षकों को उनके कार्य के लिए प्रोत्साहित करने से उनमें नई ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है। 

शिक्षण पद्धति में निरंतर सुधार जरूरी
उत्कृष्ट शिक्षा के लिए शिक्षण पद्धति में भी सुधार की जरूरत है। एक शिक्षक एक साथ कितनी कक्षाओं के कितने बच्चों को अच्छी तरह पढ़ा सकेगा, इस बारे
में गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है। इस विषय को लेकर कई सर्वे हो चुके हैं और परिणाम भी सभी जानते हैं। सीधा सा मतलब है कि शिक्षक-छात्र
अनुपात को सही रखना पड़ेगा। संख्या से अधिक गुणवत्ता पर फोकस करना होगा।

बच्चों को पहले संस्कार दीजिए
बच्चों को सिर्फ शिक्षा देने से काम नहीं चलेगा, इन्हें पहले संस्कार दीजिए फिर आपके द्वारा दी गई शिक्षा को अच्छी तरह ग्रहण कर लेंगे। बच्चों को अपनी
संस्कृति से जोड़े रखिए। उन्हें संस्कार और संस्कृति की महत्ता को बताएं। इससे जुड़कर रहेंगे तो सफलता स्थायी होगी। जब नई कक्षा शुरू होती है तो पहले दिन बच्चों से हवन-पूजन कराएं। वैदिक शिविर में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। डीएवी ग्रुप के स्कूलों में ऐसा होता है। हमारे बच्चे ग्रुप में बंटकर हर रविवार को आर्य समाज मंदिर में जाकर वहां सत्संग भजन में भाग लेते हैं।

झारखंड और रांची की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों का संकल्प स्पष्ट तौर पर दिखता है। लगातार परिश्रम भी हो रहा है। सरकार के साथ मिलकर गैर सरकारी स्कूल भी कई कार्यक्रम कर रहे हैं। पूरा माहौल परिवर्तन की राह पर है। इसके बावजूद यह कहना होगा कि अभी भी बेहतरी की संभावनाएं बनी हुई हैं। शिक्षक विषय पढ़ाएं, पारंगत बनाएं, लेकिन स्वयं के व्यवहार से बच्चों को चरित्रवान और संस्कारी भी बनाएं तभी शिक्षा कारगर होगी।

- एमके सिन्हा, निदेशक, डीएवी जोन बी।

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