बदल रहा है रांची का एजुकेशन सिस्टम, लेकिन और तेजी की जरूरत
बेसिक साइंस बिल्डिंग बनने के बाद से रांची विवि में इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा था। लेकिन, दो वर्षों से इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से बदलाव दिख रहा है। मानविकी की नई बिल्डिंग बनकर तैयार है। आर्किटेक्चर विभाग के लिए नई बिल्डिंग बन रही है।
किसी भी राज्य के विकास के लिए वहां की शिक्षा व्यवस्था का अच्छा होना जरूरी है। लोग शिक्षित रहेंगे, तो समग्र विकास होगा। झारखंड में शिक्षा की स्थिति उस स्तर तक अच्छी नहीं है कि इस पर हमें गर्व हो। शिक्षकों की संख्या सहित इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से बदलाव हो रहा है, लेकिन जरूरत के हिसाब से अभी भी कमी बनी है।
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झारखंड बनने के बाद शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है, लेकिन इसकी प्रक्रिया और गति इतनी धीमी है कि स्थिति में मनोनुकूल बदलाव नहीं हो पा रहा है। सिस्टम में सुधार हुआ है, लेकिन और तेजी की जरूरत है। छात्रों का भविष्य गढ़ने वाले कॉलेजों में शिक्षकों की पर्याप्त संख्या न होना गुणवत्तायुक्त शिक्षा को बेमानी साबित कर रहा है।
एक सच यह भी है कि विद्यालय से लेकर महाविद्यालय और विश्वविद्यालय तक सभी संस्थान उपलब्ध व्यवस्था का समुचित वैज्ञानिक तरीके से उपयोग नहीं करते हैं। शिक्षकों की कमी है, लेकिन जो हैं, उन्हें भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाने की जरूरत है। ऐसा नहीं करने पर ही छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में जाने के लिए विवश होना पड़ता है।
स्नातकोत्तर में शिक्षक-विद्यार्थी का अनुपात 1:20 होना जरूरी
रांची विश्वविद्यालय के 14 अंगीभूत कॉलेजों में सात में ही प्राचार्य हैं। इसी तरह पीजी विभागों में प्रोफेसर के सृजित 38 पद आज तक नहीं भरे जा सके हैं। एसोसिएट प्रोफेसर के 81 और असिस्टेंट प्रोफेसर के 298 पद लंबे समय से रिक्त हैं। पीजी में शिक्षक और छात्रों का अनुपात 1: 20 होना चाहिए। यह आदर्श स्थिति अभी नहीं है, इसे ठीक करना होगा। गुणवत्तायुक्त शिक्षा की पहल सरकार और विवि प्रशासन ने गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने की पहल की है।
इसी के तहत रांची विवि के पीजी विभागों और कॉलेजों में च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम लागू कर दिया गया है। सिस्टम तो अच्छा है, लेकिन इसकी पहले से तैयारी नहीं हुई। पहले शिक्षकों की कमी दूर करते और फिर सीबीसीएस लागू होता तो सौ फीसद गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिलती। लेकिन जब शिक्षकों की कमी है तो सवाल उठता है कि छात्रों को क्रेडिट कौन देगा।
इतना ही नहीं विवि में और कॉलेजों में सेकेंड शिफ्ट भी शुरू हो गई है। शिक्षकों के साथ कर्मचारियों की भी भारी कमी है। ऐसे में इनका काम शिक्षकों को ही करना पड़ता है, जिससे न सिर्फ विवि का कामकाज प्रभावित होता है, बल्कि शिक्षकों की संख्या कम होने से संस्थान विद्यार्थियों की पढ़ाई की तरफ ध्यान कम दे पाते हैं।
स्थिति में हो रहा सुधार
स्कूल से लेकर कॉलेजों तक में लैब व लाइब्रेरी की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। लेकिन, विशेषकर कॉलेजों और विश्व विद्यालय के पीजी विभागों में लैब और लाइब्रेरी का स्तर इतना अच्छा नहीं हो सका है कि उसके भरोसे रिसर्च संभव हो। रिसर्च हो भी जाए, तो उसमें क्वालिटी की बात छोड़ देनी पड़ेगी। इतना ही नहीं छात्रों की संख्या अधिक है तो उसके हिसाब से संसाधन नहीं है। बीते सत्र में सभी स्कूलों को लैब के 60-60 हजार रुपये उपलब्ध कराए गए।
मैट्रिक और इंटरमीडिएट के प्रैक्टिकल में इसका असर भी दिखा कि सभी स्कूलों में लैब उपलब्ध हो गए। लेकिन वैसे कई स्कूल थे, जहां लैब रूम के लिए अलग से कमरे ही नहीं थे। ऐसे में कहीं क्लास रूम को तो कहीं स्टोर रूम को ही अस्थायी तौर पर लैब बना दिया गया। उदाहरण के तौर पर शिवनारायण मारवाड़ी कन्या पाठशाला और बीआइटी मेसरा प्लस टू विद्यालय है।
नियमित शिक्षकों की हो नियुक्ति
राज्य बनने के बाद केवल एक बार वर्ष 2008 में 751 असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति हुई थी। इसमें रांची विवि को 257 असिस्टेंट प्रोफेसर मिले थे। विवि में अनुबंध पर शिक्षकों की नियुक्ति हुई है। इन्हें 600 रुपये प्रति कक्षा मिलेंगे। ऐसे में इन शिक्षकों से शिक्षा में गुणवत्ता की उम्मीद करना बेमानी होगी। नियमित शिक्षकों की नियुक्ति जरूरी है।
कॉलेज का नाम- छात्र - शिक्षक
जेएन कॉलेज धुर्वा - 5000/37
आरएलएसवाई- 8000/34
एसएस मेमोरियल - 5000/54
डोरंडा कॉलेज - 18000/75
केओ कॉलेज- 8000/23
रांची वीमेंस कॉलेज- 6000/98
मांडर कॉलेज - 6000/35
बिरसा कॉलेज - 5000/22
पीपीके कॉलेज - 12000/28
इंफ्रास्ट्रक्चर में हो रहा बड़ा बदलाव
बेसिक साइंस बिल्डिंग बनने के बाद से रांची विवि में इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा था। लेकिन, दो वर्षों से इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से बदलाव दिख रहा है। मानविकी की नई बिल्डिंग बनकर तैयार है। आर्किटेक्चर विभाग के लिए नई बिल्डिंग बन रही है।
बेसिक साइंस भवन के पीछे स्टूडेंट फेसिलेटेड सेंटर बन रहा है, जहां विद्यार्थियों के लिए लाइब्रेरी से लेकर कॉमन रूम और गार्डेन की व्यवस्था होगी। इधर, लीगल स्टडीज सेंटर बनकर तैयार है। इसी सत्र से पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड एलएलबी की पढ़ाई शुरू हो जाएगी।
इंटरमीडिएट शिक्षा में सुधार
राज्य में इंटरमीडिएट शिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है। इसमें कुछ सुधार हुआ है, पर अभी बहुत काम बाकी है। दर्शनशास्त्र, मानवशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान से कुछ विषयों में शिक्षकों का पद ही सृजित नहीं हुआ है। यह अलग बात है कि जैक (झारखंड एकेडमिक काउंसिल) हर वर्ष इन विषयों की परीक्षा लेकर रिजल्ट भी जारी कर रहा है।राज्य में कुल 510 प्लस टू विद्यालय हैं, जिनमें शिक्षकों के 5610 पद हैं, लेकिन शिक्षक केवल 1597 हैं। 85 प्रतिशत उच्च विद्यालयों में प्रधानाचार्य नहीं हैं। लेकिन अच्छी बात है कि 640 प्रधानाचार्य की नियुक्ति प्रक्रिया में है।