फसल को ठंड और पाला से बचाने में कागर है लो टनल प्लास्टिक तकनीक
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक डा प्रमोद राय ने बताया कि जाड़े के मौसम में कम तापमान और पाला पड़ने पर होने वाले हानि से बचाव किया जाना संभव है। फसलों के पौधे के विकास में 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान होना जरूरी है।
रांची, जासं । इस वर्ष पिछले वर्ष की अपेक्षा अभी तक कम ठंड पड़ी है। वैसे आमतौर पर ठंड के दिनों में तापमान में गिरावट के कारण आलू सहित अन्य फसलों में पाले का प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है। ऐसे में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक डा प्रमोद राय ने बताया कि जाड़े के मौसम में कम तापमान होने और पाला पड़ने पर होने वाले हानि से बचाव किया जाना संभव है।
फसलों के पौधे के विकास में 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान होना जरूरी है। जाड़े के मौसम में मिट्टी एवं हवा का तापमान रात के समय काफी कम हो जाता है। इसके कारण स्वस्थ्य सब्जियों के पौधे को उगाना कठिन हो जाता है। इसके लिए बीएयू ने लो टनल प्लास्टिक तकनीक विकसित किया है। यह तकनीक जाड़े के मौसम में कम तापमान और पाला से बचाव में लाभप्रद एवं मददगार साबित हो रहा है।
क्या है लो टनल तकनीक
प्लास्टिक लो टनल एक छोटे प्रकार का गुफानुमा घर होता है। जिसके अंदर ग्रीनहाउस का प्रभाव दीखता है। इसके कारण इस घर का तापमान बाहर की तुलना में ज्यादा होता है। कम ऊंचाई वाले इस गुफनुमा घर को विभिन्न आवरणों में 50 माइक्रोन की प्लास्टिक फिल्म, 40 मेस वाली कीड़ा रहित जाली और 35-50 प्रतिशत शेडनेट से निर्मित किया जाता है। गुफानुमा घर का निर्माण सरिया, बांस, एलडीपीई पाइप आदि से किया जा सकता है। इसकी चौड़ाई 80 सेमी, मध्य की ऊंचाई 40 सेमी तथा दोनों सिरों को मिटटी में 5 सेमी गहराई तक गाड़ते है। गुफानुमा घर को 50 माइक्रो मीटर युभीयुक्त प्लास्टिक से आच्छादित करके कम तापमान से होने वाले क्षति से बचा जा सकता है।
इस निर्मित घर में विषाणुरहित स्वस्थ्य सब्जियों के पौधे या अगाती/बेमौसमी कुकुरबिटेसी कुल की सब्जियों एवं पत्तेदार सब्जियों आदि को सालों भर मौसम को अनुकूल करके उगाया जा सकता है। इसके उपयोग से मिटटी का तापमान, हवा का तापमान , प्रकाश की तीव्रता व हवा की आद्रता आदि को नियंत्रित किया जा सकता है। मुख्य रूप से ये छोटा ग्रीन हाउस है जो कम पैसे में तैयार किया जा सकता है।
इसका फसलों को कर सकते हैं उत्पादन
इस घर की सहायता से कुकुरबिटेसी कुल की सब्जियों (लौकी, तरबूज, खीरा, खरबूजा आदि) के पौधे की क्यारी या प्लास्टिक प्रो – ट्रे में दिसम्बर – जनवरी में उगाकर अगाती/बेमौसमी सब्जियों की खेती सफलता से की जा सकती है। प्लास्टिक प्रो – ट्रे में में सामान्यतः केंचुआ खाद एवं कोकोपीट का बराबर मात्र में प्रयोग किया जाता है। साथ ही, टपक (ड्रिप) सिंचाई, उर्वरीकरण एवं प्लास्टिक पलवार की सुविधा होने पर इस तकनीक के प्रयोग से खुले खेत की तुलना में फसल की उत्पादकता एवं गुणवत्ता को बढाया जा सकता है। इस तकनीक से पानी की बचत, खाद की बचत, खरपतवार का नियंत्रण, मिटटी के तापमान का नियंत्रण एवं मजदूरी में कमी होती है। कम लागत के इस तकनीक को अपनाकर जाड़े के मौसम में कम तापमान एवं पाला पड़ने की स्थिति में भी बेहतर लाभ किसान ले सकते है।