अपने धाम लौटे प्रभु जगन्नाथ, महामाया को मनाया
मौसीबाड़ी में नौ दिन के प्रवास के बाद शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ भाई बलराम व बहन सुभ्रदा के साथ अपने धाम लौटे।
जागरण संवाददाता, राची : मौसीबाड़ी में नौ दिन के प्रवास के बाद शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ धाम लौट आए। इसी के साथ नौ दिवसीय रथयात्रा संपन्न हो गया। दोपहर तीन बजे एक-एक कर तीनों विग्रहों को रथारूढ़ कराया गया। इसके बाद श्री जगन्नाथ अष्टकम और श्रीविष्णु सहस्त्रनामार्चना मंत्र का सामूहिक जाप किया गया। पूजा के दौरान ही बारिश शुरू हो गई। इसके बावजूद भक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ। जय जगन्नाथ के जयकारे के बीच शाम 4.15 बजे भगवान जगन्नाथ का रथ मुख्य मंदिर के लिए प्रस्थान किया। हजारों की भीड़ प्रभु के रथ को खींचने को आतुर दिखे। जो रथ नहीं खींच सके वो रस्सी छूकर ही धन्य हो रहा था। रास्ते भर प्रभु के जयकारे लगते रहे। करीब एक घंटे के बाद रथ जगन्नाथ मंदिर पहुंचा। यहां पर भगवान का भव्य स्वागत किया गया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच बारी-बारी से सभी विग्रहों को मंदिर में प्रवेश कराया गया। रात आठ बजे जगत नियंता की 108 की आरती उतारी गई। अन्न का भोग लगाकर विश्राम कराया गया।
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सुबह छह बजे से भगवान का दर्शन आरंभ
मौसीबाड़ी में सुबह छह बजे पट खुलते ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। इससे पूर्व सुबह पांच बजे से प्रथम पूजा आरंभ हुई। मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रजभूषण नाथ मिश्र की देखरेख भगवान का जागरण कराया गया। सुबह में सूजी हलवा का भोग लगाया गया। श्रद्धालुओं ने कतारबद्ध होकर भगवान का दर्शन कर मंगलमय जीवन की कामना की। दोपहर दो बजे तक भक्तों ने भगवान का दर्शन किया। इसके बाद विग्रहों को रथारूढ़ कराने की प्रक्रिया शुरू हुई।
मां लक्ष्मी को मनाने के बाद ही भगवान जगन्नाथ को मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिली। जैसे ही रथ मंदिर के द्वार पर पहुंचा। माता के आदेश से मंदिर का प्रवेश द्वारा बंद कर दिया गया। भाई बलराम और बहन सुभद्रा को मंदिर में प्रवेश करा दिया गया जबकि प्रभु जगन्नाथ को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया। मान्यता है कि जगन्नाथ मां लक्ष्मी के बिना ही मौसीबाड़ी चले गए थे। इस कारण माता क्रोधित हो गई थीं। काफी देर तक मान मनौव्वल चला। इसके बाद जब माता प्रसन्न हुई। इस दौरान दोनों पक्षों में वाद-विवाद का रश्म भी निभाया गया।
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भक्तों पर भगवान ने किया आशीष की बारिश
रथयात्रा के दौरान बारिश होना काफी शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि रथयात्रा के दौरान प्रभु अपने भक्तों पर बारिश के रूप में आशीष बरसाते हैं। भक्तों के सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। रोग-शोक का भय समाप्त हो जाता है।
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रथमेला में झूमर पर खूब थिरके लोग
सांस्कृतिक कार्य निदेशालय की ओर से आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से खूब तालियां बटोरी। कार्यक्रम की शुरुआत पद्मश्री मुकुंद नायक ने नागपुरी गीत से की। मादर की थाप पर एक से बढ़ कर एक गीत पेश किए। इसके बाद मणिपुरी संस्कृतन डास अकादमी के द्वारा मणिपुरी गीत नृत्य पेश किया गया। मणिपुर से आए कलाकारों की प्रस्तुति खूब सराहा गया। सरायकेला से आए कलाकारों ने छऊ नृत्य तो बूटन देवी ने पंचपरगनिया पेश कर श्रोताओं को झुमाया। मौके पर कलाकारों एवं नौ भाषा के शिक्षाविद व संस्कृति विशेषज्ञ को मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। मौके सांस्कृतिक कार्य निदेशालय के उप निदेशक विजय पासवान विशेष तौर पर उपस्थित थे।
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अंतिम दिन बाजार रहा गुलजार, खूब हुई बिक्री
रथमेला के अंतिम दिन मेला का बाजार गुलजार रहा। दोपहर बाद भीड़ जुटनी शुरू हुई। देर रात तक लोगों ने मेला का आनंद उठाया। बच्चों ने जहां गोलगप्पे के साथ झूला का लुत्फ उठाया वहीं बड़ों की पसंद नागिन डांस और ब्रेड डांस रहा। मौत का कुंआ देखने वालों की संख्या कम नहीं थी। टिकट स्टॉल पर काफी भीड़ देखने को मिली। मेला घूमने आयी महिलाएं घेरलू सामान और फैशन सामग्री खरीदी। किसानों के कृषि उपकरण और मछली पकड़ने के लिए जाल आदि की खरीददारी की।
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रथ मेला के आयोजन में इनकी रही भूमिका
नौ दिनी रथ मेला के सफल आयोजन में जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति, रथ मेला सुरक्षा समिति, आदिवासी सरना समिति के अलावा कई समाजिक व धार्मिक संगठनों ने सक्रिय भूमिका निभायी।