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लक्ष्मणानंद की पुण्‍यतिथि पर रांची में कार्यक्रम,विहिप नेता बोले, चर्च से जुड़े लोगों ने की स्‍वामी की हत्‍या

विश्व हिंदू परिषद के झारखंड बिहार के क्षेत्र संगठन मंत्री केशव राजू ने स्वामी लक्ष्मणानंद की पुण्यतिथि पर रांची में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्‍होंने कहा कि पिछड़ों दलितों वंचितों व वनवासियों के मसीहा स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या गत 23 अगस्त 2008 को कर दी गई।

By Brajesh MishraEdited By: Published: Mon, 23 Aug 2021 12:37 PM (IST)Updated: Mon, 23 Aug 2021 12:37 PM (IST)
लक्ष्मणानंद की पुण्‍यतिथि पर रांची में कार्यक्रम,विहिप नेता बोले, चर्च से जुड़े लोगों ने की स्‍वामी की हत्‍या
स्वामी लक्ष्मणानंद की पुण्यतिथि पर रांची में कार्यक्रम आयोजित किया गया।

 रांची, संजय कुमार। पिछड़ों, दलितों, वंचितों व वनवासियों के मसीहा स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या गत 23 अगस्त 2008 को कर दी गई। आरोप चर्च से संबंध रखने वाले लोगों पर लगे। घटना के दिन पूरे देश की तरह आश्रम में जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा था। रात में लगभग 30-40 चर्च से जुड़े लोगों ने फुलबनी जिले के तुमुडिबंध से तीन किमी दूर स्थित जलेसपट्टा कन्याश्रम में हमला बोल दिया। 84 वर्षीय देवतातुल्य स्वामी लक्ष्मणानंद उस समय शौचालय में थे। हत्यारों ने दरवाजा तोड़कर पहले उन्हें गोली मारी और फिर कुल्हाड़ी से उनके शरीर के टुकड़े कर दिए। विश्व हिंदू परिषद के झारखंड बिहार के क्षेत्र संगठन मंत्री केशव राजू ने स्वामी लक्ष्मणानंद की पुण्यतिथि पर रांची में आयोजित कार्यक्रम के दौरान यह बाते कहीं। उन्‍होंने कहा कि, कंधमाल ओडिशा का वनवासी बहुल पिछड़ा इलाका है। वहां वनवासियों का मिशनरियों द्वारा मतांतरण कराया जा रहा था।

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ओडिशा के ग्राम गुरुजंग, जिला तालचेर में 1924 में जन्मे लक्ष्मणानंद दो पुत्रों के पिता होने के बाद भी जब उनमें अध्यात्म की भूख जगी तब हिमालय में जाकर 12 वर्षों तक कठोर साधना की। 1966 में प्रयाग कुुंभ के समय संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी तथा अन्य कई श्रेष्ठ संतों के आग्रह पर उन्होंने ‘नर सेवा, नारायण सेवा’ को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।

इसके बाद उन्होेंने फुलबनी (कंधमाल) में सड़क से 20 कि.मी. दूर घने जंगलों के बीच चकापाद में अपना आश्रम बनाया और जनसेवा में जुट गये। इससे वे ईसाई मिशनरियों की आंख की किरकिरी बन गये। स्वामी जी ने भजन मंडलियों के माध्यम से अपने कार्य को बढ़ाया। उन्होंने 1,000 से भी अधिक गांवों में भागवत घर (टुंगी) स्थापित कर श्रीमद्भागवत की स्थापना की। उन्होंने हजारों किमी पदयात्रा कर वनवासियों में हिंदुत्व की अलख जगाई। ओडिशा के राजा गजपति एवं पुरी के शंकराचार्य ने स्वामी जी की विद्वत्ता को देखकर उन्हें 'वेदांत केसरी' की उपाधि दी थी। चिकित्सालय, विद्यालय, छात्रावास और कन्याआश्रम के माध्यम से सेवा का कार्य शुरू किया। 45 वर्षों से इस काम में लगे थे।

स्वामी जी के प्रयास से हजारों लोगों ने घर वापसी की

केशव राजू ने कहा कि जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में हर वर्ष लाखों भक्त पुरी जाते हैं, पर निर्धनता के कारण वनवासी प्रायः इससे वंचित ही रहते थे। स्वामी जी ने 1986 में जगन्नाथ रथ का प्रारूप बनवाकर उस पर श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएं रखवाईं। इसके बाद उसे वनवासी गांवों में ले गये। वनवासी भगवान को अपने घर आया देख रथ के आगे नाचने लगे। जो लोग मिशन के चंगुल में फंस चुके थे, वे भी उत्साहित हो उठे। जब चर्च वालों ने आपत्ति की, तो उन्होंने अपने गले में पड़े क्रॉस फेंक दिये। तीन माह तक चली रथ यात्रा के दौरान हजारों लोग हिंदू धर्म में लौट आये। उन्होंने नशे और सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति हेतु जनजागरण भी किया। इस प्रकार मिशनरियों के 50 साल के षड्यन्त्र पर स्वामी जी ने झाड़ू फेर दिया।

कहा, स्वामी जी धर्म प्रचार के साथ ही सामाजिक व राष्ट्रीय सरोकारों से भी जुड़े थे। जब-जब देश पर आक्रमण हुआ या कोई प्राकृतिक आपदा आई, उन्होंने जनता को जागरूक कर सहयोग किया; पर चर्च को इससे कष्ट हो रहा था, इसलिए उन पर नौ बार हमले हुए। हत्या से कुछ दिन पूर्व ही उन्हें धमकी भरा पत्र मिला था। इसकी सूचना उन्होंने पुलिस को दे दी थी, पर पुलिस ने कुछ नहीं किया। यहां तक कि उनकी सुरक्षा को और ढीला कर दिया गया।

उनके अधूरे कामों को आगे बढाना है

उन्होंने कहा कि स्वामी जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी हत्या के बाद पूरे कंधमाल और निकटवर्ती जिलों में वनवासी हिंदुओं में आक्रोश फूट पड़ा। चर्च के समर्थक अपने गांव छोड़कर भाग गये। स्वामी जी के शिष्यों तथा अनेक संतों ने हिम्मत न हारते हुए पूरे ओडिशा में हिन्दुत्व के ज्वार को और तीव्र करने का संकल्प लिया है। हमे उनके अधूरे कामों को आगे बढाना है। मतांतरण को रोकने के साथ ही घर वापसी का अभियान चलाना है। उनकी पुण्यतिथि पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में ईसाई मिशनरियों की ओर से चल रहे मतांतरण को सेवा के माध्यम से रोकने का काम करेंगे।


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