झारखंड के सरकारी वकीलों को चपरासी से भी कम मानदेय
Jharkhand Bar Council. झारखंड के सरकारी अधिवक्ताओं को सिर्फ 18 हजार रुपये मानदेय मिलता है। ऐसे में निजी प्रैक्टिस पर रोक के कारण कई अधिवक्ताओं ने इस्तीफा तक दे दिया है।
रांची, मनोज कुमार सिंह। झारखंड में सरकारी अधिवक्ताओं को चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों से भी कम पारिश्रमिक मिलता है, ऐसे में उन अधिवक्ताओं से कोर्ट में सरकार का मजबूत पक्ष रखने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। जिनकी जेबें खाली रहती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि राज्य में चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों को करीब तीस से चालीस हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं, वहीं हाई कोर्ट के एपीपी को करीब 18 हजार रुपये ही प्रतिमाह पारिश्रमिक मिलता है। साथ ही निजी प्रैक्टिस पर रोक लगा दी गई।
इस वजह से पिछले दिनों कई एपीपी ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया है। जबकि बिहार, छत्तीसगढ़ पंजाब व हरियाणा में सरकारी वकीलों को करीब चालीस से साठ हजार रुपये प्रतिमाह मिल जाते हैं। हाई कोर्ट में केंद्र सरकार के वरीय अधिवक्ता को नौ हजार रुपये प्रति केस राशि दी जाती है। वहीं, राज्य के महाधिवक्ता को प्रतिदिन के लिए दस हजार, एएजी को आठ हजार रुपये प्रतिदिन राशि मिलती है, चाहे कितने भी केस में पक्ष रखना पड़े।
हाई कोर्ट में राज्य सरकार के प्रतिदिन करीब 150 ज्यादा मामलों की सुनवाई होती है। महाधिवक्ता अजीत कुमार का कहना है कि वास्तव में सरकारी वकील या एपीपी का पारिश्रमिक प्रति केस के हिसाब से निर्धारित होना चाहिए, ताकि वो रूचि लेकर कार्य कर सकें। कम पारिश्रमिक व निजी केस पर रोक की वजह से एपीपी की संख्या कम हो गई है।
निजी प्रैक्टिस पर रोक
राज्य सरकार ने पिछले साल हाई कोर्ट में एपीपी नियुक्ति नियमावली बनाई है। जिसमें निजी प्रैक्टिस पर रोक लगा दी गई है। पहले एपीपी सरकारी मुकदमे के बाद निजी केस में भी पैरवी करते थे। लेकिन इस नियमावली के प्रभावी होने के बाद कई एपीपी ने इस्तीफा दे दिया। वर्तमान में मात्र 35 एपीपी ही कार्य कर रहे हैं, जबकि 65 एपीपी का पद स्वीकृत है। जिला कोर्ट में सरकारी अधिवक्ता को प्रतिदिन मात्र दो से चार सौ रुपये प्रतिदिन मिलते हैं। इसके अलावा सरकार की ओर से उन्हें कोई सुविधा नहीं मिलती है।
कैसे होगा बेहतर कार्य
हाई कोर्ट के कई सरकारी अधिवक्ताओं का मानना है कि राज्य के चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों को तीस से चालीस हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। वहीं, हाई कोर्ट के सरकारी वकील या एपीपी, जिन्हें नाम मात्र का पारिश्रमिक मिलता हो, उससे बेहतर कार्य की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। सवाल उठता है कि इतने कम पारिश्रमिक से क्या वे अपना कार्य ईमानदारी पूर्वक निभाकर अपने परिवार का पालन कर पाएंगे। वही, सरकार ने हाल ही में सातवां वेतमान लागू कर दिया है।
काफी कम है मानदेय : यह सही बात है कि सरकारी वकीलों का मानदेय काफी कम है। जिससे वे कार्य में उस तरह से रूचि नहीं ले रहे हैं। हमने सरकारी अधिवक्ताओं की फीस पुनरीक्षण का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। उम्मीद है कि सरकार इस पर शीघ्र निर्णय लेगी। अजीत कुमार, महाधिवक्ता, झारखंड
अन्य राज्यों में सरकारी वकीलों का पारिश्रमिक
बिहार - सात हजार प्रतिमाह भत्ता, केस के लिए प्रतिदिन 27 सौ रुपये। अनुमानित प्रतिमाह : 66 हजार रुपये
पंजाब - सरकारी अधिवक्ता प्रतिमाह 75 हजार रुपये
हरियाणा : सरकारी अधिवक्ता प्रतिमाह तकरीबन एक लाख दस हजार रुपये
चंडीगढ़ - सरकारी अधिवक्ता प्रतिमाह फिक्स 27 हजार रुपये और प्रति केस 15 हजार रुपये।
छत्तीसगढ़ - 45 हजार प्रतिमाह व दो हजार प्रतिदिन केस में पक्ष रखने पर। तकरीबन 18 केस माह में 36 हजार।