लाल आतंक के गढ़ में लाह की खेती, यहां चूड़ी-पेंट व गोंद बनाकर करोड़ों कमा रहे किसान
Jharkhand Special News Khunti खूंटी जिले के सिलादोन गांव में मुखिया के साथ 1200 किसान लाह की खेती कर रहे हैं और उससे जुड़े उत्पाद बना रहे हैं। इसमें महिलाएं भी बढ़-चढ़कर पुरुषों का साथ दे रहीं हैं।
रांची, [मधुरेश नारायण]। झारखंड के खूंटी जिले के सिलादोन गांव में बड़ी संख्या में किसान इन दिनों लाह की खेती करके आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। कभी इस इलाके में नक्सलियों का बड़ा आतंक था। अब यहां के किसानों का कहना है कि परंपरागत कृषि के साथ व्यावसायिक खेती करने से आमदनी में कई गुना वृद्धि हो रही है। यहां के 1203 किसान एक साथ सहकारिता बनाकर लाह की खेती कर रहे हैं। इनके मुखिया महावीर उरांव बताते हैं कि झारखंड के लाह की डिमांड देश में तो है ही, विदेशों में भी इसकी खूब मांग है। लाह का इस्तेमाल चूड़ी, पेंट, बार्निश और गोंद बनाने आदि में किया जाता है। हाल के दिनों में यहां के किसानों के समूह ने 1.2 करोड़ रुपये का लाह सरकार को बेचा है।
प्रधानमंत्री के वनधन केंद्र के रूप में विकसित हुआ है सिलादोन
महावीर उरांव बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा वनधन योजना की शुरुआत की गई है। इसमें सिलादोन को लाह संवर्धन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए चुना गया है। इसके साथ ही इलाके में इमली, करंज, बेर आदि के पेड़ भी काफी ज्यादा हैं। इनके प्रोडक्ट बनाकर भी विभिन्न संस्थानों में भेजा जाता है। महावीर बताते हैं कि उन्हें झारक्राफ्ट की तरफ से काफी मदद मिली है। विभिन्न योजनाओं के तहत उन्हें संस्थान से मशीन और अन्य जरूरत की चीजें मिलती रही हैं। वहीं लाह का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने से काफी मदद मिली है।
रोजगार से खत्म हुआ नकस्लवाद
लाह उत्पादक सहयोग समिति लिमिटेड के नाम से महावीर उरांव ने वर्ष 2012 में सहकारिता की स्थापना की थी। उसके पहले उन्होंने खुद नामकुम स्थित लाह रिसर्च केंद्र में लाह की खेती और उसके संवर्धन का प्रशिक्षण लिया। महावीर बताते हैं कि वर्ष 2012 में इस इलाके में नक्सलियों का बड़ा दबदबा था। मगर सही काम और इच्छा शक्ति से उन्हें अपने विकास के काम में कभी बाधा नहीं आई। कुछ ही दिनों में मैंने अपने और आसपास के गांव के 700 लोगों को लाह उत्पादन का प्रशिक्षण सहकारिता की मदद से दिया। जैसे-जैसे रोजगार के अवसर बढ़े, वैसे-वैसे नक्सल का नाश हुआ। लोग बिना कुछ बोले मुख्यधारा में आते चले गए। अब उनके बच्चे स्कूल जाकर पढ़ाई कर भविष्य में बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं।
देशभर से मेला और प्रशिक्षण का आता है निमंत्रण
महावीर उरांव बताते हैं कि 8 वर्ष की अथक मेहनत आसान नहीं थी। वर्ष 2014 में मुझे ब्लड कैंसर भी हुआ। मैंने किसी दूसरे राज्य या अस्पताल में जाने के बजाए रांची में इलाज कराया। इस बीच हमारे काम में कोई बाधा नहीं आई। अब देश भर से मेले और प्रशिक्षण के लिए निमंत्रण मिलता है। मैं अपने साथ संस्थान से जुड़े अन्य किसानों को भी दूसरे राज्यों में ले जाता हूं। इससे उन्हें देश और दुनिया को जानने का अवसर मिलता है। वर्ष 2016 में दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित मेले में झारखंड के मेरे स्टाॅल को दूसरा पुरस्कार मिला था। इससे भी काफी प्रोत्साहन और पहचान मिली। अब हमारा सामान देश के हर राज्य में जाता है।
आसपास के कई गांवों में रुका पलायन
सिलादोन में इस सहकारिता समिति की वजह से कम से कम कई गांवों से पलायन रुक गया। महावीर बताते हैं कि पहले गांव में करने के लिए कुछ भी नहीं था। इससे पलायन होना स्वाभाविक था। मगर अब लोगों के पास रोजगार के अवसर हैं। इसके साथ ही घऱ पर पारंपरिक खेती के साथ अतिरिक्त आय का अवसर है। इससे आसपास के गांव में पलायन न के बराबर हो रहा है। जो गए थे, वे भी वापस घर आ गए हैं।
झारक्राफ्ट से मिला है 120 सोलर संचालित सिल्क थ्रेड मशीन
लाह उत्पादक सहयोग समिति लिमिटेड का जल्द ही विस्तार होने वाला है। इस संस्थान से कई और लोग जुड़ने वाले हैं/ यहां कुकुन से सिल्क निकालने और मटका सिल्क बनाने का काम किया जाएगा। इसके लिए समिति को झारक्राफ्ट ने 120 सोलर संचालित सिल्क थ्रेड मशीन दिया है। इसके साथ ही समिति की तरफ से दो करघा की भी व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही गांव में एक शोरूम और बड़ा लाह वाशिंग केंद्र का भी उद्घाटन जल्द किया जाना है। इससे यहां रोजगार के साधनों का और विकास होगा।
प्रतिक्रिया
पांच वर्ष से यहां संस्थान में काम कर रहा हूं। इससे आर्थिक रूप से समृद्धि तो आई है, साथ ही ऐसा हुनर सीखने का मौका मिला है कि अब कुछ और सोचने की जरूरत नहीं है। पहले खाने के बारे में सोचना पड़ता था। अब खाना पीना तो ठीक हुआ ही, बच्चों को भी स्कूल भेजकर पढ़ा रहे हैं। -गंभीर, आर्टिजन, सिलादोन।
लगभग 20 वर्ष जयपुर में लाह की चुड़ियां बनाने का काम किया। अब वापस घर आया हूं। अपने घर में काम मिले तो दूसरे राज्य में कोई क्यों जाएगा। हालांकि वहां काम का एक फायदा यह हुआ कि अब यहां के लोगों को कारीगरी की बारीकियां सीखा रहा हूं। -सफीक, आर्टिजन, सिलादोन।
परिवार की आय पहले अच्छी नहीं थी। फिर मैं सहकारिता के साथ जुड़ी। अब बतौर ट्रेनर कई स्थानों पर गई हूं। अच्छा लगता है जब लोग हमसे हमारे काम और राज्य के बारे में पूछते हैं। अब घर के कई लोग सहकारिता से ही जुड़े हुए हैं। -रोहिनी देवी, आर्टिजन, सिलादोन।
मेरे पास बेर के कई पेड़ हैं। इन पर ही लाह उत्पादन करता हूं। इससे मेरे परिवार की अतिरिक्त आय हो जाती है। बेर के पेड़ पर वर्ष में दो बार लाह का उत्पादन होता है। यह कुसुम के पेड़ पर किए उत्पादन से बेहतर है। इसके साथ ही पारंपरिक खेती भी चल रही है। -अजय उरांव, किसान।
इस वर्ष केवल 57 हजार रुपये का लाह मैंने समिति में बेचा है। एमएसपी होने से लाह की कीमत भी अच्छी मिलती है। इसके साथ ही पैसे भी समय पर अकाउंट में आ जाते हैं। यहां का हर जागरूक किसान वर्ष में कम से कम 50 हजार रुपये के लाह की बिक्री जरूर करता है। -नंनदू प्रधान, किसान।