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Olympic Day 2020: गुदड़ी के लालों ने लगा दी चैंपियनों की झड़ी, बांस की स्टिक से करते थे अभ्यास

Olympic Day 2020. दशरथ ने ऐसे खिलाडिय़ों की लंबी फौज खड़ी कर दी जिन्होंने देश-दुनिया में हॉकी का परचम लहराया। बिना किसी सहयोग 24 साल तक हॉकी ट्रेनिंग सेंटर चलाया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 23 Jun 2020 11:27 AM (IST)Updated: Tue, 23 Jun 2020 11:27 AM (IST)
Olympic Day 2020: गुदड़ी के लालों ने लगा दी चैंपियनों की झड़ी, बांस की स्टिक से करते थे अभ्यास
Olympic Day 2020: गुदड़ी के लालों ने लगा दी चैंपियनों की झड़ी, बांस की स्टिक से करते थे अभ्यास

रांची, [संजीव रंजन]। Olympic Day 2020 झारखंड का खूूंटी जिला हॉकी की नर्सरी के रूप में जाना जाता है। यहां के खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर देश और राज्य का नाम रोशन किया है। उग्रवाद प्रभावित इस जिले के खिलाडिय़ों को तराशने में शिक्षक दशरथ महतो की अहम भूमिका रही है। बांस की हॉकी स्टिक, गांव के खाली मैदान और अपने पास उपलब्ध मुट्ठी भर रकम के दम पर दशरथ ने ऐसे खिलाडिय़ों की लंबी फौज खड़ी कर दी, जिन्होंने देश-दुनिया में हॉकी का परचम लहराया।

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हॉकी को बेइंतहा चाहने वाले दशरथ कभी खुद एक अच्छा हॉकी खिलाड़ी बनकर देश का प्रतिनिधित्व करना चाहते थे। किसी कारण से उनका यह सपना साकार नहीं हो सका तो उन्होंने हॉकी खिलाडिय़ों की फौज तैयार कर अपने शागिर्दों को चैंपियन बनाना शुरू किया। हर खिलाड़ी में अपने सपनों का अक्स देखते हुए दशरथ जी-जाान से जुटकर खिलाडिय़ों को तराशने में जुट गए।

दर्जनों खिलाडिय़ों ने देश-दुनिया में लहराया परचम

दशरथ के जुनून का असर यह हुआ कि खूंटी के पेलौल गांव के स्कूल मैदान में चलने वाले उनके प्रशिक्षण केंद्र से सीखकर दर्जनों खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में मेडल झटककर अपनी खास पहचान बनाई। पुष्पा प्रधान, गुड्डी कुमारी, अनिमा सोरेंग व निक्की प्रधान जैसी भारतीय हॉकी टीम की खिलाड़ी भी दशरथ के प्रशिक्षण केंद्र का हिस्सा रही हैं। इस सेंटर से 73 बालिका व 13 बालक खिलाड़ी राज्य टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वहीं आधा दर्जन से अधिक खिलाड़ी अंतरराष्‍ट्रीय स्पर्धाओं में गोल्ड व अन्य मेडल झटक चुके हैं।

हरा चना खिलाकर कराते थे अभ्यास, हॉकी स्टिक का भी करते थे इंतजाम

राजकीय मध्य विद्यालय पेलौल में दशरथ महतो ने 1988 में खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देना शुरू किया, जो 2012 तक चला। पेशे से शिक्षक दशरथ ने स्कूल के चट मैदान में ही खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देते थे। पेलौल गांव के आसपास इलाके के गरीब खिलाड़ी यहां सीखने आते थे। दशरथ इन्हें अभ्यास कराते। जब खिलाडिय़ों को भूख लगती तो हरा चना खिलाते और पानी पिलाकर उन्हेंं फिर से अभ्यास कराते। खिलाडिय़ों को अपने प्रयास से हॉकी स्टिक उपलब्ध कराते थे। वेतन मिलने पर एक-दो खिलाडिय़ों को जूते लेकर देते थे। ज्यादातर अभ्यास बांस और लकड़ी की हॉकी स्टिक से होता था।

खस्सी व मुर्गा टूर्नामेंट से खिलाडिय़ों को लाते थे सेंटर में

दशरथ बताते हैं कि खिलाडिय़ों का चयन वह गांव में होने वाले खस्सी व मुर्गा टूर्नामेंट से करते थे। टूर्नामेंट में जिस खिलाड़ी में उन्हें प्रतिभा नजर आती उसका स्कूल में नामांकन कराते और फिर हॉकी का प्रशिक्षण देने अपने सेंटर में ले आते। उनके इस प्रयास से आसपास गांव के युवा का ध्यान उग्रवाद की ओर नहीं गया और वे पढऩे के साथ साथ हॉकी में नाम कमाने लगे।

उजड़ गई हॉकी की खास बगिया

बिना किसी की मदद व आर्थिक सहायता के उन्होंने लगभग 24 साल तक खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण दिया। बाद में कहीं से कई सहयोग नहीं मिला तो थक-हार कर 2012 में दशरथ ने प्रशिक्षण देना बंद कर दिया। प्रशिक्षण का यह सेंटर क्या बंद हुआ उस क्षेत्र से खिलाड़ी निकलने भी लगभग बंद हो गए। ऐसा नहीं है कि दशरथ ने प्रशिक्षण देने के लिए सरकार से सहयोग नहीं मांगा लेकिन सरकार (तत्कालीन बिहार व झारखंड सरकार) की उदासीनता के कारण हॉकी की यह बगिया उजड़ गई। दशरथ कहते हैं कि सरकार अगर खिलाडिय़ों को थोड़ी भी सुविधा देती तो कई अच्छे परिणाम देते।

'सरकार ने अगर पेलौल सेंटर पर जरा भी ध्यान दिया होता तो वहां से कई खिलाड़ी निकलते। इस उस क्षेत्र में काफी प्रतिभाएं हैं। सेंटर बंद होने से प्रतिभाएं आगे नहीं आ पा रही हैं। आज सरकार बड़ी राशि खर्च कर ओलंपिक मेडल की आस लगाए बैठी है। उस समय कुछ हजार खर्च कर देती तो निक्की प्रधान जैसे और भी खिलाड़ी तैयार होते।' -दशरथ महतो, हॉकी प्रशिक्षक।


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