पत्थलगड़ी के खिलाफ ग्रामीण हुए मुखर, उखाड़ फेंका उकसाने वाला पत्थर
ग्राम सभा में सामूहिक रूप से लिया गया निर्णय, पूजा-पाठ के बाद की कार्रवाई, रगड़ कर मिटा दी संि
ग्राम सभा में सामूहिक रूप से लिया गया निर्णय, पूजा-पाठ के बाद की कार्रवाई, रगड़ कर मिटा दी संविधान की गलत व्याख्या
-खूंटी के चितरामू गांव के लोगों ने कहा, परंपरा के खिलाफ यह पत्थलगड़ी
-पिछले साल 11 जून 2017 में कृष्णा हांसदा की अगुवाई में हुई थी पत्थलगड़ी जागरण संवाददाता, खूंटी : खूंटी में पत्थलगड़ी के खिलाफ ग्रामीण खड़े होने लगे हैं। सिलादोन पंचायत के चितरामू गांव ने इसकी अगुवाई की है। विकास विरोधी ताकतों से उनका मोहभंग होने लगा है। चितरामू के ग्रामीणों ने स्वयंभू नेताओं द्वारा एक साल पहले की गई पत्थलगड़ी को गुरुवार को गिरा दिया। ग्रामीणों ने कहा कि जिला प्रशासन की ओर से चलाए जा रहे विकास कार्यो से प्रेरित होकर हमने ऐसा किया है। कहा, कुछ लोगों के बहकावे में आ गए थे। अब उनकी सच्चाई सामने आ चुकी है। अब हम विकास की मुख्य धारा से जुड़ेंगे।
गुरुवार को पत्थर उखाड़ने से पहले गांव के पाहनों ने विधि-विधान से पूजा-पाठ किया। उसके बाद कुदाली और बेल्चा से खोदकर संविधान की गलत व्याख्या दर्शाने वाले उस पत्थर को गिरा दिया, जिसके नाम पर कभी पुलिस-प्रशासन से लेकर सरकार तक को चुनौती दी जा रही थी। पत्थर को उखाड़ने के बाद उसे पत्तों से ढक दिया गया। अब ऐसा लगता है कि यहां पर कभी कोई पत्थलगड़ी हुई ही नहीं थी। ग्राम प्रधान अशोक मुंडा, वार्ड सदस्य मंगल ¨सह पाहन, अभिमन्यु पाहन, सरना समिति के सचिव नीलू पाहन समेत कई महिला-पुरूषों के सामने पत्थर को उखाड़ा गया। पत्थर उखाड़े जाने के बाद सदर प्रखंड के सीओ विजय कुमार और श्रम अधीक्षक एतवारी महतो ग्रामीणों से बात कर उनकी समस्याओं से रू-ब-रू हुए।
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गांव में घुसने से कतराने लगे थे अफसर-कर्मचारी :
चितरामू गांव के ग्रामप्रधान अशोक मुंडा ने कहा कि पत्थलगड़ी होने के बाद जिला पुलिस- प्रशासन के लोग गांव में प्रवेश नहीं करते थे। इससे ग्रामीण विकास कार्यों से वंचित हो रहे थे। पत्थलगड़ी के नेता ग्रामसभा और ग्रामीणों को सरकारी योजना नहीं लेने का फरमान सुना चुके थे। ग्रामीणों ने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजने, पोलियो का ड्रॉप नहीं पिलाने, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय आदि किसी भी सरकारी योजना का लाभ लेने से मना कर दिया था। यहां तक कि आधार कार्ड और वोटरकार्ड को भी जला दिया था। पत्थलगड़ी के एक साल बीतने के बाद हमलोगों को यह एहसास हुआ कि पत्थलगड़ी नेता हमलोगों को बरगलाने का काम करते रहे। पत्थर पर भी संविधान की गलत व्याख्या की गई। हमलोग उनलोगों के चक्कर में पड़ने वाले नहीं हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास योजनाओं से जुड़कर लाभ लेना चाहते हैं।
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एक साल पहले हुई थी पत्थलगड़ी :
खूंटी के भंडरा में पिछले साल सबसे पहले पत्थलगड़ी हुई थी। उसके बाद 11 जून 2017 को सिलादोन पंचायत के चितरामू गांव में स्वयंभू नेता कृष्णा हांसदा द्वारा पत्थलगड़ी की गई थी। यह गांव 193 हेक्टेयर में फैला हुआ है। यहां की जनसंख्या 318 है। यहां 73 घर है। पिछले साल जब पत्थलगड़ी हुई थी तो यहां पर 15 हजार लोग जुटे थे। हालांकि पत्थर गिराने में सौ ही लोग जुटे लेकिन इनके जोश से स्पष्ट हो गया कि विरोध की यह चिंगारी शोला का रूप लेगी जिसमें विकास विरोधी ताकतें खाक हो जाएंगी। स्वयंभू नेताओं द्वारा जिले में अबतक कुल 80 गांवों में पत्थलगड़ी की गई है। इसके अलावा कई गांवों में पत्थलगड़ी करने की योजना चल रही थी। इसमें सबसे अधिक पत्थगड़ी अड़की प्रखंड क्षेत्र में हुई है। उसके बाद खूंटी और मुरहू प्रखंड में। कोट----
ग्रामीणों में जागरूकता आई है। लोग विकास से जुड़ना चाहते हैं। जिला प्रशासन की पूरी टीम ग्रामीणों की अपेक्षा पर खरा उतरेगी। जिला प्रशासन द्वारा चितरामू गांव में शनिवार को विकास शिविर का आयोजन किया जाएगा। ग्रामीणों की समस्याओं का ऑन द स्पॉट दूर किया जाएगा। पत्थलगड़ी समर्थक अब बैकफुट पर हैं। ग्रामीण उनकी सच्चाई समझ चुके हैं।
सूरज कुमार, उपायुक्त, खूंटी।