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जूनियर नेशनल फुटबॉलर रहे मो. शाह हुसैन घर-पर‍िवार चलाने के ल‍िए कर रहे मजदूरी

पश्चिम सिंहभूम पलामू धनबाद बोकारो और पटना जिले से खेल चुके हैं मो. शाह हुसैन। अब कोच बनकर गांवों में खिलाडिय़ों की प्रतिभा निखारने की इच्छा है। अब भी हर दिन सुबह-शाम फुटबॉल लेकर पहुंच जाते हैं मैदान में। बदहाली में जी रहे हुसैन के संघर्ष की कहानी।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Tue, 06 Jul 2021 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 06 Jul 2021 06:00 AM (IST)
जूनियर नेशनल फुटबॉलर रहे मो. शाह हुसैन घर-पर‍िवार चलाने के ल‍िए कर रहे मजदूरी
जीवन यापन के ल‍िए दूसरे के यहां मजदूरी करते मो. शाह हुसैन। जागरण

चाईबासा (मो. तकी)। झारखंड में अब भी कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो बदहाली में जी रहे हैं। अपने राज्य व देश के लिए मेडल लाने का माद्दा रखनेवाले खिलाड़ी आर्थिक तंगी के कारण मजदूरी कर घर-परिवार चलाने को मजबूर हैं। इन्हीं में से एक हैं मो. शाह हुसैन। पश्चिम सिंहभूम जिले के मझगांव के रहने वाले मो. शाह हुसैन कभी जूनियर नेशनल फुटबॉलर रह चुके हैं। लेकिन घर चलाने के लिए दूसरों के यहां मजदूरी कर रहे हैं।

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मो. शाह हुसैन कहते हैं कि अविभाजित बिहार की ओर से जम्मू-कश्मीर में संपन्न जूनियर नेशनल फुटबॉल प्रतियोगिता में भी भाग ले चुके हैं। वहां अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद आर्थिक स्थिति नहीं बदली तो मजबूर होकर अपने गांव में ही लौट आए। वह पलामू, धनबाद, बोकारो और पश्चिम सिंहभूम तथा पटना जिले की ओर से भी कई प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन कर चुके हैं। उम्र गुजरने के बाद अब भले ही मैदान में नहीं उतर सकते, लेकिन उनका सपना है कि कोच बन कर देश को अच्छे खिलाड़ी दें।

वर्ष 1993 में जम्मू-कश्मीर में खेलने गए थे फुटबॉल

मो. शाह हुसैन कहते हैं कि वर्ष 1992 में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पलामू पुलिस विभाग में कार्यरत बड़े भाई हमीद के पास चले गए। वहां पहुंच कर फुटबॉल को अच्छे से जानने का मौका मिला। वहीं से अविभाजित बिहार टीम की ओर से वे वर्ष 1993 में जम्मू-कश्मीर में आयोजित जूनियर नेशनल फुटबॉल प्रतियोगिता खेलने के लिए भेजे गए। पंजाब, त्रिपुरा व मणिपुर आदि की टीमों को हराने के बावजूद उनकी टीम फाइनल में नहीं पहुंची। लेकिन उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। वहां से लौटने के बाद बहुत सराहना मिली। पलामू जिले के तत्कालीन एसपी अमिताभ चौधरी ने उनके खेल को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद जब भाई का वहां से तबादला हो गया तो वहां रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी। बावजूद पलामू, धनबाद, बोकारो, पश्चिम ङ्क्षसहभूम और पटना जिले से कई टूर्नामेंट खेले। लेकिन हालात के आगे हार कर फिर गांव लौटना पड़ा। गांव में सुविधा का अभाव था। पिताजी मजदूर थे। इसलिए आगे नहीं बढ़ पाए।

मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद कोच बनने की जगी उम्मीद

मो. शाह हुसैन कहते हैं कि अब मेरे पास ट्रॉफी, प्रमाणपत्र व मेडल की यादों के रूप में साथ हैं। लेकिन पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की इस घोषणा से आशांवित हुए हैं कि पूर्व खिलाडिय़ों को जिला और प्रखंड में कोच के रूप में नए खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाने का मौका दिया जाएगा। वह कहते हैं कि भले ही मैं भारतीय टीम तक पहुंचने में नाकाम रहा, लेकिन कोच के रूप में सेवा देकर प्रतिभा को निखारने में अपना पूरा योगदान देने में सक्षम हैं। जो सपना खुद पूरा नहीं कर पाए, खिलाडिय़ों को निखार कर पूरा करना चाहते हैं। उन्हें फुटबॉल से उन्हें इतना लगाव है कि आज भी सुबह और शाम फुटबॉल लेकर मैदान में पहुंच जाते हैं। मैदान में खेल रहे युवाओं को प्रेरित करते हैं।


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