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रांची सिविल कोर्ट में दूसरे दिन भी नहीं हुए न्यायिक कार्य, 45 सौ मामले अटके

रांची पलामू जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और प्रभारी जिला जज के बीच विवाद के कारण रांची में भी सिविल कोर्ट में कामकाज बाधित रहा। 45 मामले दो दिनों में अटके रहे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 07:24 AM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 07:24 AM (IST)
रांची सिविल कोर्ट में दूसरे दिन भी नहीं हुए न्यायिक कार्य, 45 सौ मामले अटके
रांची सिविल कोर्ट में दूसरे दिन भी नहीं हुए न्यायिक कार्य, 45 सौ मामले अटके

जागरण संवाददाता, रांची : पलामू जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और प्रभारी जिला जज के बीच विवाद के कारण दूसरे दिन मंगलवार को भी रांची सिविल कोर्ट में कामकाज बाधित रहा। स्टेट बार काउंसिल के आह्वान पर सिविल कोर्ट के अधिवक्ता न्यायिक कार्य से अलग रहे। इस कारण सिविल कोर्ट की विभिन्न अदालतों में लिस्टेड करीब दो हजार मामलों में सुनवाई नहीं हो सकी। न्यायिक अधिकारी व कर्मचारी पुरानी फाइलें ही निपटाने में व्यस्त रहे। वहीं अधिवक्ता अदालत तो पहुंचे लेकिन बार भवन में ही बैठे रहे। अदालत से दूरी बनाये रखी। अदालत और रजिस्ट्री ऑफिस में पूरी तरह सन्नाटा पसरा रहा। जिन्हें कार्य बाधित रहने की जानकारी नहीं थी वे अदालत से वापस लौट गए।

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इधर, काके में लॉ छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म मामले में भी फैसला लटक गया। संभावना जतायी जा रही थी अगले सप्ताह अदालत अपना फैसला सुनाती लेकिन दो दिन काम नहीं होने के कारण बहस और खींचेगी। अब फरवरी के आखिरी या मार्च के प्रथम सप्ताह में ही फैसला आएगा।

दूसरे दिन भी फ्लैट-जमीन की नहीं हुई रजिस्ट्री

अधिवक्ता के न्यायिक कार्य बहिष्कार में दस्तावेज नवीस संघ का भी समर्थन रहा। दस्तावेज नवीस संघ के प्रदेश महासचिव पुष्कर साहू ने बताया कि अधिवक्ताओं के साथ दस्तावेज लेखक भी दोपहर 12 बजे तक कामकाज नहीं किए इसके बाद रजिस्ट्रार अविनाश कुमार के मीटिंग में चले जाने के कारण दिनभर में एक भी रजिस्ट्री नहीं हो पायी।

अटके मामले निपटाने में लगेगा साल भर

सिविल कोर्ट में करीब 43 हजार मामले लंबित हैं। अधिवक्ताओं के दो दिन के न्यायिक कार्य बहिष्कार के कारण दो दिन में करीब 45 सौ मामलों में सुनवाई नहीं हो सकी। सिविल कोर्ट के अधिवक्ता सुधीर श्रीवास्तव के अनुसार कई केस में दूर-दूर से गवाह को बुलाया जाता है। जो कि बिना गवाही वापस लौट गए। ऐसे गवाहों के लिए अदालत नई तारीख देगी। कुल मिलाकर इन 45 सौ मामलों को शॉर्टआउट में साल भर का वक्त लग सकता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक साल औसतन 20 दिन शोक सभा और 20 दिन न्यायिक कार्य बहिष्कार के कारण अदालत में काम नहीं होता है।


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