आत्मबल के बूते गांव की गलियों से निकलकर बनीं प्रशासनिक अधिकारी
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले का छोटा सा गांव लालगंज। इसी छोटे से गांव से निकलकर आज आइएएस बन गई हैं।
जागरण संवाददाता, रांची : उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले का छोटा सा गांव लालगंज। इसी छोटे से गांव की गलियों से निकलकर माधवी मिश्रा ने सिविल सेवा तक का सफर अपने आत्मबल और मजबूत इरादों के दम पर पूरा किया। ये वो समय था जब लड़कियों को पढ़ने या किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए गांव घर से बाहर भेजना बड़ी हिम्मत की बात होती थी। अभिभावक तो डरते ही थे, गांव में तरह-तरह की बातें भी होती थीं। कोई कहता क्या होगा बेटी का इतना पढ़ा लिखाकर। लड़की जात गांव घर से बाहर अकेले कैसे रहेगी, कैसे खाएगी, कुछ ऊंच नीच हो गया तो क्या होगा.. आदि आदि। ऐसे ही समय में माधवी ने अपने मजबूत इरादों के साथ गांव की सरहद को पार किया। दरअसल, माधवी की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई। स्नातक की पढ़ाई उन्होंने प्रतापगढ़ से की। इसके बाद की पढ़ाई का ही वो समय था, जब माधवी के माता-पिता ने हिम्मत दिखाई। बेटी पर भरोसा किया और अपने सपनों को पंख लगाने और परास्नातक की पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद भेज दिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से माधवी ने पोस्ट ग्रेजुएट किया। सिविल सेवा परीक्षा में इनको तीसरी बार में 2015 में सफलता मिली। इसके पहले 2013 की परीक्षा में माधवी का इंडियन इकोनॉमिक सर्विस के लिए चयन हो गया था। इसकी ट्रेनिग करते-करते ही इन्होंने 2015 में भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा पास कर ली। माधवी इस समय हजारीबाग में नगर आयुक्त हैं। माधवी के पिता अनिल प्रकाश मिश्रा ग्रामीण बैंक में मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हैं। दो भाई व दो बहनों में माधवी का स्थान तीसरा है। बड़ी बहन व बड़े भाई ने दिखाई राह
माधवी की सबसे बड़ी बहन क्षमा मिश्रा भारतीय पुलिस सेवा में हैं। इन्होंने ही अपने भाई बहनों के लिए राह बनाई। दरअसल, क्षमा मिश्रा की स्नातक तक की पढ़ाई प्रतापगढ़ में ही पूरी हो गई। अब समय था बाहर जाकर आगे की पढ़ाई करने और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने का। तब समय ऐसा था जब क्षमा के गांव लालगंज के आस-पास के 20-25 गांवों से कोई भी लड़की पढ़ाई के लिए बाहर नहीं गई थी। तब इनके पिता ने गांव के लोगों के सामने उदाहरण पेश किया और क्षमा को पढ़ाई व तैयारी के लिए बाहर भेजा। क्षमा ने भी अपने पूरे इलाके के लिए नजीर पेश की और आइपीएस बनकर गांव, जिला व परिवार का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। क्षमा के बाद वाले भाई योगेश मिश्रा ने भी भारतीय आयुध निर्माण सेवा के लिए चयनित होकर इस गर्व को और बढ़ा दिया। अब बारी थी माधवी की तो माधवी ने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित होकर यह साबित कर दिया कि समय बदल चुका है। इसलिए दकियानूसी विचारों के कारण बच्चियों को पढ़ाई के लिए बाहर भेजने से रोकना कतई उचित नहीं है। रही सही कसर माधवी के छोटे भाई लोकेश मिश्रा ने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित होकर पूरी कर दी। परिवेश नहीं, आपके हौसले तय करते हैं भविष्य माधवी कहती हैं कि यह कतई मायने नहीं रखता कि आप गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं या किसी बहुत बड़े इंग्लिश मीडियम निजी स्कूल में। इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि ग्रामीण परिवेश में पढ़-पल रहे हैं। आपके मजबूत इरादे और दृढ़ इच्छाशक्ति आपका भविष्य बनाती है।