शीत सत्र नहीं हुआ, तो सड़क पर उतरेगा झाविमो
रांची : झाविमो के प्रधान महासचिव प्रदीप यादव ने कहा है कि सरकार सूखा, पारा शिक्षक जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा से बचना चाहती है। यदि समय पर शीत सत्र शुरू नहीं होता है, तो पूरा पिवक्ष इसका विरोध करेगा। झाविमो इसके खिलाफ सड़क पर उकेगा।
रांची : झाविमो के प्रधान महासचिव प्रदीप यादव ने कहा है कि सरकार सूखा, पारा शिक्षक, स्कूलों के विलय, बिजली की उपलब्धता जैसे ज्वलंत मुद्दों से भागना चाहती है। यही वजह है कि सरकार ने अबतक शीत सत्र नहीं बुलाया है। सरकार की नीतियों से विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष के भी कई विधायक नाखुश हैं। ऐसे में सरकार को डर है कि वह सत्र आहूत करती है तो सौ फीसद अविश्वास प्रस्ताव आएगा और उसकी सत्ता चली जाएगी। वे मंगलवार को मीडिया से मुखातिब थे।
प्रदीप यादव ने कहा कि भाजपा संवैधानिक संस्थाओं को भी अपने नियंत्रण में चलाना चाहती है। शीत सत्र के मामले में सरकार की चुप्पी इसकी बानगी है। झारखंड गठन के बाद से लेकर अबतक की बात करें तो चुनाव के कारण सिर्फ 2014 में इसका आयोजन नहीं हो सका था। सामान्य तौर पर झारखंड में 12 से 15 दिसंबर तक शीत आहूत करने और 25 दिसंबर से पहले समाप्त करने की प्रथा रही है। सत्र आहूत करने की प्रक्रिया में कमोबेश 14-15 दिन लगते हैं। कैबिनेट से लेकर राज्यपाल तक की इसपर सहमति लेनी पड़ती है। ऐसे में सरकार की चुप्पी उसकी कार्यशैली पर कई सवाल खड़ा करती है। झाविमो इसके खिलाफ सड़क पर उतरेगा।
बात चेहरे की नहीं, जनता जिसे स्वीकार करेगी, मुहर उसी को
प्रधान महासचिव ने दावा किया है कि 2019 में महागठबंधन पूरी मजबूती के साथ अपना प्रदर्शन करेगा। कोलेबिरा की परिस्थितियां अलग हैं। ऐसे में यह कहना कि महागठबंधन बिखर रहा, ऐसा नहीं है। यह मजबूत होकर उभरेगा। बिना नाम लिए हुए उन्होंने कहा कि पार्टी को उम्मीद है कि जो दल बड़ा है, वह गठबंधन के मसले पर बड़ी भूमिका निभाएगा। किसका चेहरा सामने कर चुनाव लड़ा जाएगा, यह भी बड़ा मुद्दा नहीं है। जनहित में जनता जिसे स्वीकार करेगी, झाविमो उसपर मुहर लगा देगा। बहरहाल कोलेबिरा चुनाव में झाविमो कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन देगा। विधानसभा के शीत सत्र पर संशय, विपक्ष बना रहा मुद्दा
- शीत सत्र को लेकर अभी तक कोई सुगबुगाहट नहीं, शुरू नहीं हुई प्रक्रिया
राज्य ब्यूरो, रांची : झारखंड विधानसभा के शीत सत्र पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि विधानसभा का शीतकालीन सत्र टल सकता है। सरकार सीधे जनवरी में बजट सत्र आहूत कर सकती है। संसदीय कार्यमंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के कार्यालय के मुताबिक अभी तक शीतकालीन सत्र को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं है। इससे पूर्व बीते 16 से 21 जुलाई तक विधानसभा का मानसून सत्र आहूत किया गया था। सत्र के दौरान सरकार ने अनुपूरक बजट पेश किया था। इसके अलावा कई विधायी कार्य निपटाए गए थे। शीतकालीन सत्र आहूत नहीं होने की अटकलों के बीच विपक्ष इसे मुद्दा बनाने की तैयारी कर रहा है। अगर सत्र टला तो विपक्षी दल सरकार को इस मसले पर घेर सकते हैं।
---------
तीन सत्र बुलाने की परंपरा : सरयू राज्य के पूर्व संसदीय कार्यमंत्री सरयू राय के मुताबिक एक वर्ष में सदन का तीन सत्र आहूत करने की परंपरा है। नियमानुसार हर छह माह के अंतराल पर सत्र आहूत होना चाहिए। शीत सत्र आहूत करना बाध्य नहीं है। लेकिन यह स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा है। तीन सत्र के अलावा विशेष मौके पर सरकार विशेष सत्र का भी आयोजन कर सकती है। सत्र की अवधि में सरकार आकस्मिकता निधि के तहत आवश्यक कार्य की राशि के लिए अनुपूरक बजट का प्रावधान करती है। उनके मुताबिक सत्र आहूत किया जाना चाहिए, चाहे वह संक्षिप्त अवधि का हीं क्यों न हो। 'सरकार जनता के मुद्दों से मुंह चुरा रही है। इनके पास किसी आरोप का जवाब नहीं है। पूरे राज्य में अराजकता का माहौल है। सत्तापक्ष के विधायकों में भी सरकार के खिलाफ आक्रोश है। यही वजह है कि सरकार शीतकालीन सत्र आहूत करने से भाग रही है। इन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर विश्वास नहीं है। कांग्रेस इसका प्रबल विरोध करेगी।'
-राजेश ठाकुर
-प्रदेश मीडिया प्रभारी, कांग्रेस