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केंद्र ने फंड में कटौती की तो 3 महीने में बैठ जाएगी झारखंड की व्यवस्था, खजाने में मात्र 5000 करोड़

झारखंड के लिए बकाया भुगतान अभी बड़ी मुसीबत है। जीएसटी हिस्सेदारी घटती जा रही है। केंद्र बकाया भुगतान से पहले ही इन्कार कर चुका है। गैर योजना मद में खर्च महीने में दो हजार करोड़ से अधिक है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 09:30 AM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 03:59 PM (IST)
केंद्र ने फंड में कटौती की तो 3 महीने में बैठ जाएगी झारखंड की व्यवस्था, खजाने में मात्र 5000 करोड़
झारखंड विधान सभा का नया भवन। फाइल फोटो

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड के खजाने में फिलहाल पांच हजार करोड़ रुपये जमा हैं, लेकिन इसके बावजूद संकट के बादल मंडरा रहे हैं। केंद्र का जो रुख है उसके हिसाब से लग रहा है कि अगर फंड की कटौती हुई तो सरकार के लिए तीन महीने का वक्त काटना भी मुश्किल होगा। कर्मचारियों के वेतन, सेवानिवृत्त कर्मियों को पेंशन और अब तक ली गई ऋण राशि पर एकमुश्त मासिक ब्याज की राशि भुगतान के आंकड़ों को जोड़ दें तो कुल राशि 2100 करोड़ रुपये के आसपास आती है।

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इसमें 1250 करोड़ रुपये के करीब वेतन मद में भुगतान हो रहा है तो 500 करोड़ रुपये के करीब पेंशन मद में दिया जा रहा है। इसके अलावा हर माह 300 करोड़ रुपये के करीब पूर्व में ली गई ऋण राशि के एवज में ब्याज देना पड़ता है। देश में इसके पूर्व एक बार आंध्र पदेश से 200 करोड़ रुपये की इस तरह से वसूली हो चुकी है। राज्य सरकार के खजाने में वैट, सेस और जीएसटी के माध्यम से कम ही सही, लेकिन राशि नियमित तौर पर आती है।

इसके अलावा केंद्र से जीएसटी का शेयर भी प्राप्त हो रहा है। इस प्रकार तीन महीने तक कोई वित्तीय संकट नहीं आएगा। यही कारण है कि राज्य सरकार ने केंद्र के निर्देश के बावजूद ऋण लेने से इन्कार कर दिया है। इतना ही नहीं, जीएसटी का हिस्सा मिलता रहे तो संकट नहीं आएगा।

'5600 करोड़ रुपये बकाया होने का मामला संदिग्ध है। बिल पर ऊर्जा विभाग के अधिकारी बात करेंगे। जरूरत पड़ी तो मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखेंगे।' -डॉ. रामेश्वर उरांव, वित्त मंत्री।


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