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"ना नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी"... 1932 के खतियान की बाध्यता पर ऐसा क्यों बोले पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो, जानें Details

Jharkhand Sthaniya Niti जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने 1932 के खतियान के आधार पर झारखंड की स्थानीयता नीति लागू करने संबंधी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दावे की यह कहते हुए खिल्ली उड़ाई है कि ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी। उनके तथ्यों को जानें...

By Sanjay KumarEdited By: Published: Fri, 23 Sep 2022 04:34 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 04:35 PM (IST)
"ना नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी"... 1932 के खतियान की बाध्यता पर ऐसा क्यों बोले पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो, जानें Details
Jharkhand Sthaniya Niti: 1932 के खतियान की बाध्यता पर बोले पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो।

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Sthaniya Niti जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने 1932 के खतियान के आधार पर झारखंड की स्थानीयता नीति लागू करने संबंधी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दावे की यह कहते हुए खिल्ली उड़ाई है कि ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी। झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक नेताओं में शुमार शैलेंद्र महतो बाद में भाजपा में शामिल हो गये थे। शैलेंद्र महतो ने इस नीति की व्यावहारिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि 14 सितंबर 2022 को झारखंड सरकार ने कैबिनेट में निर्णय लिया है कि प्रस्ताव के मुताबिक झारखंड राज्य की भौगोलिक सीमा में निवास करता हो एवं स्वयं अथवा उसके पूर्वज के नाम 1932 अथवा उसके पूर्व सर्वे खतियान में दर्ज हो। भूमिहीन के मामले में उसकी पहचान संबंधित ग्राम सभा द्वारा की जाएगी जो झारखंड में प्रचलित भाषा, रहन-सहन , वेश-भूषा , संस्कृति एवं परंपरा इत्यादि पर आधारित होगी।

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अब पेंच कहां पर है, निम्नलिखित दो प्रस्ताव सबसे खतरनाक है जो स्थानीय नीति को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार और झारखंड सरकार के बीच खेला होगा। यह भी प्रस्ताव है कि इस प्रावधान को भारत का संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु भारत सरकार से अनुरोध किया जाए। अधिनियम संविधान की नौवीं अनुसूची में सम्मिलित होने के उपरांत प्रभावी माना जाएगा।

अब सवाल उठता है कि हेमंत सरकार स्थानीय नीति को क्यों भाजपा यानी भारत सरकार के पाले में डालना चाहती है, जबकि स्थानीय नीति राज्य सरकार के अधीन का मामला है। सामाजिक कार्यकर्ता एवं आम जनता जो थोड़ा बहुत राजनीति को समझते हैं, वे इसे हेमंत सरकार का राजनीतिक स्टंट कह रहे हैं। झारखंड राज्य में 22 साल के दौरान स्थानीयता के मामले में किसी भी सरकार ने ईमानदारी नहीं दिखाई, चाहे वह भाजपा की सरकार हो या हेमंत की सरकार। मेरी हेमंत सरकार से मांग है कि 1932 के साथ सिंहभूम में 1964- 65 के सर्वे सेटेलमेंट के खतियान को स्थानीय नीति में जोड़ा जाए।

इसके पीछे यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि हमें इतिहास में जाना पड़ेगा। 1964- 65 में तत्कालीन बिहार राज्य के सिर्फ सिंहभूम में सर्वे सेटेलमेंट क्यों हुआ था ? ज्ञातव्य है कि 1947 में भारत देश आजाद हुआ जिसमें भारतवर्ष के कई क्षेत्रों में भाषा, संस्कृति के आधार पर किसी स्टेट के किसी क्षेत्र को हटाकर किसी दूसरे स्टेट में जोड़ा जा रहा था। अंग्रेजों ने सरायकेला- खरसावां को 1915 में छोटानागपुर से अलग कर संबलपुर राजा (उड़ीसा) के अधीन शामिल कर दिया था। 1947 में देश आजाद हुआ और सरायकेला- खरसावां के राजाओं ने अपने को उड़ीसा राज्य में विलय कर दिया जिससे जनता में आक्रोश हुआ, आंदोलन हुआ, और 1 जनवरी 1948 को खरसावां में गोलीकांड हो गया। फिर भारत सरकार ने 18 मई 1948 में सरायकेला - खरसावां को उड़ीसा से अलग कर बिहार को लौटा दिया। ज्ञातव्य है कि मानभूम बिहार राज्य का जिला था।

1956 का मामला है जब राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा मानभूम जिले के पुरुलिया अनुमंडल के 16 थानों को मिलाकर पश्चिम बंगाल में मिला दिया गया और पुरुलिया जिला बना। पुरूलिया के उत्तरी हिस्से मानभूम के धनबाद को जिला का रूप दिया गया और पुरूलिया के दक्षिण ओर मानभूम के ही पटमदा, निमडीह, ईचागढ, चांडिल ये चार थाना जो सिंहभूम से सटा हुआ हिस्सा था उसे सिंहभूम जिले में शामिल कर दिया गया। तत्कालीन सिंहभूम जिले का भौगोलिक पुनर्गठन में सरायकेला खरसावां,पटमदा, निमडीह, ईचागढ़, चांडिल शामिल हो जाने से 1964 - 65 में सर्वे सेटेलमेंट करना पड़ा। यह बिहार राज्य का एकमात्र अंतिम सर्वे सेटेलमेंट था। स्पष्ट है कि 1932 में वर्तमान सरायकेला खरसावां जिला और पटमदा, बोड़ाम प्रखंड सिंहभूम जिले का हिस्सा नहीं था, इसलिए प्रस्तावित स्थानीय नीति का आधार अंतिम सर्वे सेटेलमेंट या खतियान होना चाहिए। अतः 1932 कट ऑफ डेट नहीं हो क्योंकि तत्कालीन बिहार में विभिन्न समय में जमीन का सर्वे सेटेलमेंट हुआ था ।

याद रखें स्थानीय नीति राज्य का मामला है, नौवीं अनुसूची से कोई मतलब नहीं है। नौवीं अनुसूची लैंड मामलों से संबंधित है जिस तरह हमारा छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथालपरगना टेनेंसी एक्ट नौवीं अनुसूची के तहत आता है। रघुवर दास सरकार ने 1985 कट ऑफ डेट रखकर स्थानीय नीति बनाया था, जिसे हम सभी झारखंडी जनता ने उसका विरोध किया था । क्या रघुवर सरकार ने इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा था, नहीं। फिर हेमंत सरकार यह कारनामा क्यों करना चाहती हैं ?

हेमंत सरकार से निवेदन है कि प्रस्ताव 7 और 8 को निरस्त करें और प्रस्तावित विधेयक से हटाया जाए। हमें शंका है कि हेमंत सरकार नौवीं अनुसूची के बहाने केंद्र सरकार को भेजकर स्थानीय नीति को लटकाना चाहती है? यदि प्रस्ताव 7 और 8 रहेगा तो स्थानीय नीति लागू होना तो दूर, जैसे कहा जाता है कि "ना नौ मन तेल होगा - ना राधा नाचेगी"।


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