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इस स्कूल का बच्चा-बच्चा है हॉकी का ‘जादूगर’

उबड़-खाबड़ मैदान पर खेल तैयार हो रहे राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 20 Apr 2018 10:27 AM (IST)Updated: Fri, 20 Apr 2018 10:27 AM (IST)
इस स्कूल का बच्चा-बच्चा है हॉकी का ‘जादूगर’
इस स्कूल का बच्चा-बच्चा है हॉकी का ‘जादूगर’

रांची [संजीव रंजन]। झारखंड के सिमडेगा में एक ऐसा स्कूल है जहां का हर बच्चा मानो हॉकी का जादूगर है। ग्रामीण इलाके के इस सरकारी स्कूल के बच्चों में हॉकी के प्रति गजब की दीवानगी है। उबड़-खाबड़ मैदान पर नंगे पांव खेलते हुए करीब दर्जन भर बच्चे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। स्कूल में पढ़ाई के साथ हॉकी अनिवार्य है। हॉकी का एक नियमित पीरियड होता है।

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आरसी मध्य विद्यालय, करंगागुड़ी...

यह स्कूल सिमडेगा जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर बसेन पंचायत के करंगागुड़ी गांव में है। नाम है आरसी मध्य विद्यालय, करंगागुड़ी। पिछले दस वर्षों से इस स्कूल में हॉकी एक अनिवार्य विषय के रूप में लागू है। नंगे पांव, झोले में कॉपी-किताबें लिए और कंधे पर हॉकी स्टिक टांगे ये बच्चे ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों को पार कर नियमित स्कूल पहुंचते हैं।

विषयवार कक्षाओं के साथ ही हर दिन एक घंटे का पीरियड हॉकी खेलने के लिए निर्धारित है। पढ़ाई के बाद सभी बच्चे हॉकी मैदान में जुटते हैं और अभ्यास में लग जाते हैं। एक घंटे तक जमकर अभ्यास करते हैं।

आड़े नहीं आती गरीबी...

बच्चों की उम्र लगभग आठ से 12 वर्ष तक है। इनमें लड़के और लड़कियां दोनों ही शामिल हैं। सभी बच्चे हॉकी खेलते हैं। गौर करने लायक यह है कि ये सभी बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आते हैं। इनके पास पैरों में पहनने को जूते भले न हों, लेकिन स्कूल में नामांकन कराने के साथ ही घरवाले उन्हें एक हॉकी स्टिक जरूर खरीदकर देते हैं।

बाधा नहीं बनता अभाव...

समस्या यह है कि हॉकी के लिहाज से इस स्कूल में बच्चों के लिए कोई आधारभूत सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। मैदान भी इतना अच्छा नहीं है कि बिना जूते पहने इस पर खेला जा सके। इसके बावजूद बच्चों में हॉकी को लेकर गजब का जज्बा है। संभव है कि सरकारी नौकरी की ललक इसके पीछे काम करती हो, तभी इन बच्चों के माता-पिता इन्हें हॉकी थमा देते हैं, लेकिन यह संभव नहीं कि आठ से 12 साल की उम्र के ये बच्चे भी सरकारी नौकरी का सपना लिए मैदान में उतरते हों। उन्हें तो बस खेलने से मतलब।

स्कूल में खुला डे बोर्डिंग सेंटर...

स्कूल से प्रतिभावान खिलाड़ियों को निकलते देख राज्य सरकार ने पिछले वर्ष यहां डे बोर्डिंग सेंटर खोलने का निर्णय लिया। सेंटर खुलने से स्कूल के बच्चों को एक हॉकी प्रशिक्षक तो मिल गया लेकिन अन्य आधारभूत सुविधाएं अभी भी उनसे दूर हैं। आज भी बिना किट के ही ये बच्चे अभ्यास कर रहे हैं।

कीचड़ में खिल रहे कमल...

इन बच्चों में प्रतिभा कूट-कूट कर भरी है। इसी का परिणाम है कि तमाम अभावों के बावजूद ये अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। जूनियर स्तर पर स्कूल से कई खिलाड़ी भारतीय जूनियर टीम की शोभा बढ़ा चुके हैं। संगीता कुमारी, दीपिका सोरेंग, अलका डुंगडुंग अभी भी भारतीय जूनियर हॉकी टीम में है। जबकि अलका केरकेट्टा अंडर-18 महिला टीम का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।

पिछले दस वर्षों से इस स्कूल ने कई अच्छे खिलाड़ी दिए। हॉकी के प्रति जो जुनून इस स्कूल के बच्चों में देखने को मिलता है वह अनोखा है। सरकार इस स्कूल के बच्चों को सुविधाएं उपलब्ध कराये तो और भी बेहतर परिणाम मिलेंगे।

- मनोज कोनबेगी, सचिव, हॉकी सिमडेगा,

झारखंड  


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