Move to Jagran APP

झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गठबंधन के लिए जमशेदपुर सीट भी छोड़ने को तैयार

झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अजय ने कहा है कि मैं जमशेदपुर से सांसद रह चुका हूं और हमारी दावेदारी वहां बनती है। लेकिन, जरूरत पड़ने पर मैं यह दावेदारी भी छोड़ने को तैयार हूं।

By Edited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 09:10 AM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 04:16 PM (IST)
झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गठबंधन के लिए जमशेदपुर सीट भी छोड़ने को तैयार
झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गठबंधन के लिए जमशेदपुर सीट भी छोड़ने को तैयार

रांची। चुनाव की तैयारियों में जुट चुके झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार से आगे की तैयारियों, उम्मीवारों के चयन, गठबंधन को बचाए रखने और अध्यक्ष के तौर पर दस महीने अंदरूनी मुद्दों पर बात की दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता आशीष कुमार झा ने। पेश है बातचीत के अंश।

loksabha election banner

कोलेबिरा उपचुनाव सामने है। विपक्ष की सभी पार्टियां दावेदारी कर रही हैं। क्या विपक्षी एकता को खतरा है?
-कतई नहीं। झामुमो और झाविमो के अध्यक्ष से अलग-अलग बात हो चुकी है। हमलोग एक साथ बैठकर समाधान निकाल लेंगे। मुद्दा एक ही है और वह है भाजपा को हराना। उपचुनाव में ही नहीं, आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी। इसके लिए गठबंधन जरूरी है और सभी को त्याग करना होगा।

आप क्या त्याग करेंगे?
-मैं जमशेदपुर से सांसद रह चुका हूं और हमारी दावेदारी वहां बनती है। लेकिन, जरूरत पड़ने पर मैं यह दावेदारी भी छोड़ने को तैयार हूं ताकि विपक्षी एकता बनी रहे और भाजपा सत्ता से बाहर हो।

आपकी पार्टी में भी विरोध है, दस महीने के कार्यकाल में लेग पुलिंग कितनी हुई है?
-नवंबर 2017 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पहला लक्ष्य रहा है पार्टी में अनुशासन कायम करना और इसके लिए सख्त निर्णय भी लिए गए हैं। पुलिस में कप्तान का कोई पैर नहीं खींचता, राजनीति में पैर खींचनेवाले एक चौथाई से कम नहीं। पैर खींचना राजनीति के खेल का एक हिस्सा है। यह चलता ही रहेगा। अच्छी बात यह है कि कांग्रेस में कम है। कुछ सीनियर लोगों पर कार्रवाई के साथ ही इसपर नियंत्रण भी होता दिख रहा है। को-आर्डिनेशन कमेटी और अन्य समितियों के सदस्यों पर हुई कार्रवाई के बाद सभी को संकेत भी मिल गया है। अनुशासन कार्यकर्ता के लिए जितना जरूरी, नेताओं के लिए भी उतना ही आवश्यक है।

पुलिस के भी कप्तान रहे और कांग्रेस की भी कप्तानी कर रहे। कहां अधिक परेशानी है?
देखिए पुलिस में दूसरे तरह का अनुशासन है। जब आइपीएस बना तो उम्र 23 साल थी। कुछ करने का जुनून था और जब तक रहा, तन-मन से काम करता रहा। राजनीति में अधिक स्वतंत्रता है। पुलिस में शिकायतें ऊपर पहुंचती हैं तो राजनीति में सामने ही लोग मुखर होते हैं। खैर, काम करने का तरीका साफ हो तो कोई परेशानी नहीं आती। दोनों पदों का अपना-अपना मजा है। पुलिस और राजनीति दोनों पेशे में जब आप किसी गरीब के काम आते हैं तो अधिक सुकून मिलता है। लेकिन एक बात जरूर कहूंगा कि राजनीति में योग्य और कर्मठ लोगों को जरूर आगे आना चाहिए।

राजनीति के माध्यम से क्या बदलाव देखना या लाना चाहते हैं?
-बहुत चीजें समय के साथ बदली नहीं हैं। उन्हें बदलना होगा। किसानों-गरीबों की चिंता करनी होगी। लोगों को रोजगार के अवसर मिलें। चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा तय कर दी है लेकिन पार्टियों के लिए नहीं। पार्टियों को भी पैसे खर्च करने की सीमा में बांधना होगा। इन सबके ऊपर पुलिस व्यवस्था में सुधार की सर्वाधिक आवश्यकता है। अभी पुलिस राजनीति के हाथों की कठपुतली सी बनती दिख रही है। इसके लिए पुलिस रिफॉर्म जरूरी है। प्रकाश सिंह कमेटी की अनुशंसा लागू करनी होगी। इसका विरोध सभी राजनीतिज्ञ करेंगे, हो सकता है हमारी पार्टी में भी हो लेकिन मेरा मन है कि यह बदलाव तो होना ही चाहिए। पुलिस को अब नेताओं से स्वतंत्र करने का समय आ गया है।

चुनाव में उम्मीदवार बदलेंगे या फिर पुराने चेहरे ही दिखेंगे?
-बहुत चेहरे बदल जाएंगे। संगठन से मिले लक्ष्य को जो पूरा करेंगे उन्हें तरजीह दी जाएगी। क्षेत्र में काम करनेवाले ही टिकट लेने में सफल होंगे। मठाधीशों से पार्टी तौबा करने जा रही है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.