झारखंड में सियासत, गांठों के बीच फिर से बंधन की तलाश
polotics in jharkhand. महागठबंधन में जितनी पार्टियां संभावित हैं उतनी गांठें तो पहले से ही पड़ चुकी हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। महागठबंधन में जितनी पार्टियां संभावित हैं उतनी गांठें तो पहले से ही पड़ चुकी हैं और अब बंधनों की तलाश जारी है। दो दिन बाद 17 जनवरी को विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी झामुमो ने भाजपा विरोधी पार्टियों की बैठक बुलाई है लेकिन इसके पूर्व सभी दल अपनी-अपनी ताकत आजमाने पर डटे हैं। इस बैठक में बंधन पड़ने के आसार तो दिख रहे हैं लेकिन इस बात की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने कांग्रेस को अलग-थलग कर दिया उस प्रकार यहां भी कोशिश की जाए।
प्रभावशाली पार्टियों की संख्या अधिक होने से कांग्रेस कुछ राहत की सांस जरूर ले रही है। लेकिन पार्टी विकल्पों पर भी विचार कर रही है। इस बीच, भाजपा से रूठी-रूठी चल रही आजसू पार्टी भी विपक्षी दलों के साथ पींगे बढ़ा रही है। खासकर सरकार विरोधी बातें विपक्षी दलों को पसंद आ रही है। लोकसभा चुनाव के पूर्व सभी दल अपनी-अपनी ताकत और कमजोरी का आकलन कर चुके हैं।
विपक्षी दलों में दो गुट साफ नजर आ रहा है। इनमें से एक झामुमो के नेतृत्व में तो दूसरा कांग्रेस के नेतृत्व में। झामुमो को राजद सहज महसूस कर रहा है तो झाविमो का साथ कांग्रेस को मिलना तय माना जा रहा है। वामपंथी पार्टियों का रुख अभी स्पष्ट नहीं है। सभी पार्टियों के अपने-अपने दावे हैं। वोट प्रतिशत के हिसाब से पिछले दो विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 22-23 फीसद वोट प्राप्त किया है। दूसरे नंबर पर कांग्रेस है। झारखंड विकास मोर्चा को प्राप्त मत औसत में तीसरे नंबर पर है लेकिन पिछले दो चुनावों में इनके कई विधायक वापस भाजपा में जा चुके हैं। पार्टी इस कारण से कुछ परेशान भी है।
राजद, वामपंथी दलों और अन्य विपक्षी दलों का प्रदर्शन 2014 में तो कुछ खास नहीं रहा लेकिन 2009 में इन दलों के पास मत भी अधिक थे और सीटें भी। झामुमो ने गोमिया सीट बचाई लेकिन वोट मार्जिन कम हुआ वर्तमान विधानसभा में झामुमो ने गोमिया उपचुनाव में अपनी सीट तो बचा ली लेकिन जीत का अंतर कम हुआ। पार्टी उम्मीदवार ने आजसू प्रत्याशी को हराया जबकि भाजपा के प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे।
झामुमो इस सीट पर जीत की बदौलत खुद को सबसे आगे मानकर चल रहा है और अपनी शर्तो पर समझौता करेगा। भाजपा-विपक्षी दलों के बीच से निकालीं दो सीटें, कांग्रेस के पास अब 9 विधायक कांग्रेस का मनोबल इस कारण से भी बढ़ा हुआ है कि पार्टी ने भाजपा और विपक्षी दलों के विरोध के बीच भी दो विधानसभा उपचुनावों में जीत हासिल की और एक निर्दलीय विधायक (गीता कोड़ा) को पार्टी में शामिल कराने में सफलता पाई।
लोहरदगा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने आजसू प्रत्याशी को तो हराया ही, झारखंड विकास मोर्चा जैसे साथी भी विरोध में डटे थे। इसके बाद कोलेबिरा उपचुनाव में कांग्रेस को झाविमो का साथ मिला लेकिन झामुमो और राजद की टीम झापा के साथ डटी थी। कांग्रेस ने यह सीट भी जीत ली। इतना ही नहीं, विधायक गीता कोड़ा कई बार विधानसभा में भाजपा की ओर खड़ी दिखीं। लेकिन अंतत: कांग्रेस उन्हें अपने पाले में लाने में सफल हुई। तमाम रणनीतिक सफलता के बीच कांग्रेस बेहतर स्थिति में दिख रही है और इसी बूते लोकसभा चुनाव में बड़ा हिस्सा चाहती है।
विपक्षी दलों का मतदान प्रतिशत : 2014 विस चुनाव 2009 विस चुनाव झामुमो : 23.5 22.2 कांग्रेस : 7.4 17.3 झाविमो : 9.9 13.6 अन्य : 7.4 24.7