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Jharkhand Politics: वोट की राजनीति क्या न कराए, अपनी ही सरकार के खिलाफ कांग्रेसी

ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर अब यह समझना कतई मुश्किल नहीं है कि इस गंभीर मुद्दे पर राजनीतिक दलों में चल क्या रहा है? इसी मुद्दे में अब सभी ने जातीय जनगणना को भी जोड़ दिया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 24 Sep 2021 11:11 AM (IST)Updated: Fri, 24 Sep 2021 11:28 AM (IST)
Jharkhand Politics: वोट की राजनीति क्या न कराए, अपनी ही सरकार के खिलाफ कांग्रेसी
रांची में राजभवन के पास आयोजित धरना को संबोधित करते कृषि मंत्री बादल पत्रलेख और उपस्थित कांग्रेस नेता। जागरण

प्रदीप कुमार शुक्ला। वोट की राजनीति क्या न कराए। पिछड़ों का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के लिए मुखर होती आवाज में खुद के पीछे रह जाने की आशंका से डरे कांग्रेसी अपनी ही गठबंधन सरकार के खिलाफ आंदोलित हैं। वे बाकायदा पूरे राज्य में धरना-प्रदर्शन कर अपनी ही सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि राज्य में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। धरने में राज्य सरकार में कांग्रेस कोटे से बने मंत्री भी शामिल रहे हैं।

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अब इसे क्या कहा जाए? उधर भाजपा पूछ रही है कि सरकार आपकी है, आरक्षण देने का निर्णय आपको लेना है तो फिर यह नाटक क्यों? सत्ता में भागीदार झारखंड मुक्ति मोर्चा भी आरक्षण के मुद्दे पर हामी भर रही है। अब सवाल उठ रहा है कि जब राज्य के सभी राजनीतिक दल पिछड़ों के हक के लिए एकजुट हैं तो फिर दिक्कत क्या है? पिछड़ों को लंबे समय से इसके लिए आंदोलन क्यों करना पड़ रहा है? क्या वाकई आरक्षण बढ़ाना आसान है? अथवा यह सब राजनीति और वोट बैंक को साधे रखने की जुगत भर है?

दरअसल बिहार से अलग होकर झारखंड बनने के बाद से ही राज्य में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग उठती आ रही है। लगभग हर चुनाव में सभी राजनीतिक दल इसका वादा भी करते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसका उल्लेख किया था। भाजपा और उसकी सहयोगी आजसू भी यह मांग उठाती रहती है। दो साल पहले तक सत्ता में रही भाजपा की रघुवर दास सरकार ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन भी किया था। पिछले कुछ दिनों से इस मुद्दे पर राज्य की राजनीति एक बार फिर गर्म है। कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग मोर्चा ने राज्य के सभी जिला मुख्यालयों पर धरना देकर अपनी ही सरकार से मांग की है कि पिछड़ों के हक में सरकार तत्काल कदम उठाए। कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि हम सरकार में जरूर हैं, लेकिन जनता के सरोकार की अनदेखी नहीं कर सकते हैं।

वर्तमान में राज्य में पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है। इसके अलावा अनुसूचित जाति को 10 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 26 प्रतिशत और आíथक तौर पर पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान है। सभी वर्गो को जोड़ दिया जाए तो अभी 60 प्रतिशत पद आरक्षित हैं। अब अगर पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो यह बढ़कर 73 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। यह बात सही है कि राज्य में अनुसूचित जनजाति के बाद सबसे बड़ी आबादी पिछड़ा वर्ग की ही है। यही कारण है कि कोई भी दल आरक्षण बढ़ाने की सियासत से खुद को दूर नहीं रख पा रहा है। हालांकि दबी जुबान सभी स्वीकारते हैं कि फिलहाल यह संभव नहीं है। पिछड़ों का आरक्षण बढ़ाने की कोशिश होगी तो निश्चित ही यह मामला उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय तक पहुंच सकता है। ऐसे में नेताओं ने जो धरना-प्रदर्शन, ज्ञापन और मांग का तरीका अख्तियार कर रखा है वही ज्यादा बेहतर है। सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक सभी ने यही रणनीति अपना रखी है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर अब तक आरक्षण नहीं मिलने के लिए भाजपा को ही दोषी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा की रघुवर सरकार के समय राज्य और केंद्र में भाजपा की डबल इंजन सरकार थी। उस समय भाजपा ने क्यों इसकी पहल नहीं की? कांग्रेस इसके लिए गंभीर है। उनका कहना है कि जनसंख्या के अनुपात के अनुसार ही पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए और कांग्रेस इसके लिए आंदोलित रहेगी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कांग्रेस के धरना-प्रदर्शन को नौटंकी करार देते हुए पूछा कि पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देना किसका काम है? यदि गठबंधन सरकार यह नहीं कर सकती है तो पिछड़ों को भ्रमित करना बंद करे। वहीं झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य दावा कर रहे हैं कि पार्टी अपना वादा जरूर पूरा करेगी। अपनी ही सरकार के खिलाफ कांग्रेस के धरने को लेकर उनका कहना है कि कांग्रेस की नाराजगी राज्य से कम और केंद्र के छलावे से ज्यादा है।

[राज्य संपादक, झारखंड]


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