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Jharkhand Political Crisis: झारखंड राजनीतिक टकराव की बन रही पृष्ठभूमि

भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विधायकों की संख्या भी उतनी नहीं है कि सामान्य स्थिति में वह सत्तापक्ष को मुसीबत में डाल सके। राजभवन द्वारा हेमंत सोरेन की सदस्यता को लेकर स्थिति स्पष्ट होने के बाद ही अनिश्चतता के बादल छंट सकेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 09 Sep 2022 07:48 PM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2022 07:48 PM (IST)
Jharkhand Political Crisis: झारखंड राजनीतिक टकराव की बन रही पृष्ठभूमि
विश्वास मत हासिल करने के बाद विधानसभा से बाहर निकलते हेमंत सोरेन साथ में विजय चिन्ह दिखाते मंत्री मिथिलेश ठाकुर।

रांची , प्रदीप सिंह। झारखंड राजनीतिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। वर्ष 2014 के अंत में हुए चुनाव के पूर्व कई सरकारों के आने-जाने का सिलसिला यहां लगातार चला। बिहार से पृथक होने के बाद राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी कई राजनीतिक प्रयोग हुए। एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने भी लगभग 20 माह तक शासन का रिकार्ड कायम किया। सत्ता के लिए परस्पर विरोधी झारखंड मुक्ति मोर्चा और भाजपा ने भी आपस में हाथ मिलाया।

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फिलहाल बीते एक पखवाड़े से राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता को लेकर प्रदेश में ऊहापोह की स्थिति है। मुख्यमंत्री पर पत्थर खनन लीज लेने का आरोप लगाकर भाजपा ने राज्यपाल रमेश बैस से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की। राज्यपाल ने इसे चुनाव आयोग को भेजा। बीते 25 अगस्त को चुनाव आयोग ने अपने मंतव्य से राज्यपाल को अवगत करा दिया है। कहा जा रहा है कि आयोग ने मुख्यमंत्री की सदस्यता निरस्त कर दी है, लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। राजभवन ने यह तो स्वीकार किया है कि चुनाव आयोग का मंतव्य उन्हें प्राप्त हुआ है, लेकिन पत्र का मजमून सामने नहीं आने से अनिश्चितता की स्थिति है। इस बीच सत्तापक्ष के विधायकों को एकजुट रखने की कवायद में रांची से रायपुर तक की दौड़ लगी।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपना दावा पुख्ता करने के लिए विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया, जो प्रबल बहुमत के साथ उनके पक्ष में रहा। विरोधी दल भाजपा और उसके सहयोगी आजसू पार्टी ने प्रस्ताव पर मतदान के दौरान सदन का बहिष्कार किया। इस रस्साकशी के बीच राजभवन और सरकार के बीच टकराव की पृष्ठभूमि तैयार हो गई है। यूपीए के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात कर आग्रह किया है कि चुनाव आयोग के पत्र के संदर्भ में स्थिति स्पष्ट की जाए। प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं के मुताबिक राज्यपाल ने दो-तीन दिन का इंतजार करने को कहा, लेकिन उस आश्वासन के भी अब एक सप्ताह बीत चुके हैं।

इस बीच राज्यपाल ने नई दिल्ली की राह पकड़ी। अब सत्तापक्ष पूरे प्रकरण में राजभवन के प्रति आक्रामक दिख रहा है। पहले प्रतिनिधिमंडल में गए नेताओं ने दबाव बनाया। उसके बाद सदन में विश्वास मत के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल पर आरोप लगाया कि वे पिछले दरवाजे से दिल्ली निकल गए। राज्यपाल की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठाए गए। हालांकि राजभवन की तरफ से कहा गया कि फिलहाल वे विधि विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं, लेकिन सत्तापक्ष इसे मुद्दा बनाकर आगे की राजनीतिक राह आसान करने में लगा है।

संभव है कि यह टकराव आगे बढ़े और केंद्र सरकार के साथ तनातनी को भी राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए। इसे लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मानसिक तौर पर भी तैयार दिखते हैं कि प्रतिकूल परिस्थिति आने पर वे कड़ा फैसला ले सकते हैं। चर्चा के मुताबिक उनकी सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। अगर उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगी तो बात आगे बढ़ सकती है। सदन में विश्वास मत हासिल कर वे यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पास बहुमत होने के बावजूद सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है। हाल के दिनों में राज्य में ईडी की सक्रियता पर भी उन्होंने सवाल किए हैं। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में टकराव टलने के आसार तो नहीं दिखते।

पिछले विधानसभा चुनाव में परास्त हुई भाजपा फिलहाल बैकफुट पर दिख रही है। सक्षम नेतृत्व की कमी इसकी एक बड़ी वजह है। बाबूलाल मरांडी को भाजपा ने विधायक दल का नेता तो बनाया, लेकिन विधानसभा में अभी तक उन्हें बतौर नेता प्रतिपक्ष मान्यता नहीं मिली। उनकी विधायकी भी खतरे में है। बाबूलाल ने 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के सिंबल पर चुनाव लड़ा था। परिणाम आने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए। बीते चुनाव में राज्य में भाजपा का चेहरा रघुवर दास के हारने के बाद पार्टी ने उन पर दांव लगाया, लेकिन सत्तापक्ष के तकनीकी पेच के कारण विधानसभा के भीतर वे ज्यादा मुखर नहीं हो पाते हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विधायकों की संख्या भी उतनी नहीं है कि सामान्य स्थिति में वह सत्तापक्ष को मुसीबत में डाल सके। ऐसे में राजभवन पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं। राजभवन द्वारा हेमंत सोरेन की सदस्यता को लेकर स्थिति स्पष्ट होने के बाद ही अनिश्चतता के बादल छंट सकेंगे।

[ब्यूरो प्रमुख, झारखंड]


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