झारखंड में आरक्षण की राजनीति से कैसे बन रही टकराव की पृष्ठभूमि? पढ़ें ये रिपोर्ट
Jharkhand News झारखंड और उससे सटे बंगाल और ओडिशा के इलाकों में कुड़मी समुदाय के लोगों ने दक्षिण-पूर्व रेलवे का परिचालन एक झटके में ठप कर दिया। दरअसल कुड़मी आदिवासी का दर्जा पाना चाहते हैं। झारखंड में आरक्षण की राजनीति से टकराव की पृष्ठभूमि कैसे बन रही है रिपोर्ट पढ़ें...
रांची, [प्रदीप सिंह]। Jharkhand News अमूमन आगे बढ़ने के लिए संघर्ष समझ में आता है, लेकिन कोई अगर खुद को सबसे पिछली जमात में फिर से शामिल करने की जद्दोजहद करे तो उस समाज का विरोध स्वाभाविक है। झारखंड और उससे सटे बंगाल और ओडिशा के इलाकों में कुछ ऐसा ही हो रहा है। यहां दो प्रभावी समुदायों में इस बात को लेकर टकराव हो रहा है कि एक आदिवासी का दर्जा पाना चाहता है तो दूसरा अपने हिस्से की भागीदारी छिन जाने के डर से मुट्ठी ताने बैठा है। पिछले सप्ताह ऐसे ही घटनाक्रम ने पूरे देश का ध्यान खींचा जब पिछड़ी जाति में शुमार कुड़मी समुदाय के लोगों ने दक्षिण-पूर्व रेलवे का परिचालन एक झटके में ठप कर दिया। दरअसल, कुड़मी आदिवासी का दर्जा पाना चाहते हैं।
अभी तक उनका आंदोलन राजनीतिक था। अमूमन चुनाव के पूर्व लुभाने के लिए यह मुद्दा उछलता था और फिर शांत हो जाता था, लेकिन एकाएक उग्र आंदोलन से आदिवासी समुदाय में भी त्वरित प्रतिक्रिया हुई और पक्ष-विपक्ष में तर्क दिए जाने लगे। यह भी आश्चर्यजनक है कि इस मुद्दे को हवा देने वाले राजनीतिक दलों ने चुप्पी साधे रखा। मोर्चा दोनों समुदायों से जुड़े संगठनों ने संभाला।
कुड़मियों ने तीनों राज्यों के संगठनों को मिलाकर संयुक्त समिति बनाई तो रांची में आदिवासी संगठनों से जुड़े बुद्धिजीवियों ने उपवास और धरना देकर विरोध जताया। इन्होंने तर्कों और पूर्व में हुए शोध के आधार पर इस मांग को सिरे से नकार दिया। फिलहाल यह मामला ठंडा पड़ता नहीं दिख रहा है।
अर्जुन मुंडा ने इस मांग को बताया विचाराधीन
जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस मांग को विचाराधीन बताया है। कुड़मी संगठनों ने जल्द ही आंदोलन का दूसरा चरण आरंभ करने की चेतावनी दी है। जाहिर है, इसकी तत्काल प्रतिक्रिया आदिवासी समुदाय में होगी। ऐसे में यह दो प्रभावी समुदायों में टकराव की वजह बन सकता है, जिससे यथासंभव परहेज करना चाहिए।
आदिवासी संगठनों में चिंता
आदिवासी संगठनों के बुद्धिजीवियों में इस बात को लेकर चिंता भी है कि राजनीतिक मुद्दों को लेकर आपसी तनातनी से बचा जाना चाहिए। इसके बदले जनगणना कालम में सरना धर्म कोड की मांग के प्रति आदिवासी संगठन एकजुट होकर दबाव बनाने की रणनीति बना रहे हैं। इनका तर्क है कि कुड़मी संगठनों की मांग का धरातल पर आधार नहीं है और यह राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिए प्रेरित किया गया आंदोलन है। इनके निशाने पर झारखंड, बंगाल और ओडिशा में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा, तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल है।
बीजू जनता दल ने दिया आश्वासन
उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार ने वर्ष 2005 और बंगाल सरकार ने वर्ष 2017 में कुड़मियों को आदिवासी का दर्जा देने संबंधी अनुशंसा केंद्र सरकार से की थी। नए सिरे से आंदोलन होता देख बीजू जनता दल ने भी इसकी अनुशंसा कर केंद्र को प्रेषित करने का आश्वासन दिया है। इससे जाहिर है कि यह मुद्दा राजनीतिक दलों द्वारा कुड़मी समुदाय की सहानुभूति पाकर वोट बटोरना है। फिलहाल यह केंद्र के रुख पर निर्भर करता है, लेकिन आने वाले दिनों में इसे लेकर खींचतान बढ़ने और दो समुदायों के बीच पाला खींचने की उम्मीद से इन्कार नहीं किया जा सकता।
झारखंड सरकार का हाल में ही आरक्षण पर फैसला
आरक्षण से जुड़ा एक फैसला हाल ही में झारखंड सरकार ने लिया भी है। इसे राज्य की पिछड़ी जाति का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाकर 27 प्रतिशत (अत्यंत पिछड़ा वर्ग 15 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग 12 प्रतिशत) करने का निर्णय किया गया है। इससे संबंधित प्रस्ताव विधानसभा में पेश कर अनुशंसा केंद्र की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। इसके अलावा अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 28 प्रतिशत, अनुसूचित जाति का प्रतिशत बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया गया है। कमजोर आर्थिक वर्ग के लिए 10 प्रतिशत का आरक्षण निर्धारित है। कुल मिलाकर अब राज्य में आरक्षण 77 प्रतिशत हो चुका है। यह मसला भी देर-सवेर कोर्ट की दहलीज पर जाएगा।