जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान... जो मिले वही पी लीजिए, भांड़ में जाए ब्रांड; झारखंड की राजनीति में उठापटक
Jharkhand News पुराने शौकीन जब अमीर हो जाते तो झबड़ा कुत्ता पाल लेते थे। दरवाजे पर बंधा कुत्ता आने-जाने वालों पर भौंककर साहब की खिदमत करता। नए दौर में इनके शौक भी बड़े हो गए हैं। ऐसे ही एक साहब के खूब चर्चे हैं आजकल। पढ़ें सत्ता के गलियारे से...
रांची, [जागरण स्पेशल]। Jharkhand News झारखंड की राजनीति उठापटक के दौर से गुजर रही है। कब क्या हो जाए, यह कोई भी नहीं कह सकता। वर्तमान दौर में आफत चौतरफा है। सरकार के साहब-मुलाजिम की तो मानो बोलती ही बंद हो गई है। जिस महकमे में जाओ वहीं सन्नाटा पसरा रहता है। कोई भी खुलकर बात करने को तैयार नहीं। तिस पर पीठ पीछे तरह-तरह की चर्चाएं आम हैं। अटकलों से भरे इस बाजार में राज्य ब्यूरो के सहयोगी प्रदीप सिंह के साथ पढ़ें हमारा साप्ताहिक कॉलम सत्ता के गलियारे से...
पानी में छपाछप
पुराने शौकीन जब अमीर हो जाते थे तो झबड़ा कुत्ता पाल लेते थे। दरवाजे पर बंधा कुत्ता आने-जाने वालों पर भौंक कर साहब की खिदमत करता था। अब नए दौर में वह चलन बीत चुका है। अब इनके शौक भी जरा बड़े हो गए हैं तो कुछ बड़ा कर दिखाते हैं। ऐसे ही एक साहब के खूब चर्चे हैं आजकल। जलने वाले कलेजे पर पत्थर रखकर बताते फिर रहे हैं कि हुजूर ने अपने बंगले पर स्विमिंग पूल बनवा लिया है। अब आप कहेंगे कि यह भी कोई बात हुई। ऐसे पूल तो यहां-वहां मिल जाएंगे, लेकिन जरा रुक जाइए। हुजूर का यह स्विमिंग पूल बंगले के दूसरे तल्ले पर है। किसी की नजर भी नहीं पड़ती और आराम से हुजूर छपाछप करते हैं। अब भले ही गर्मी में अपने झारखंड का पूरा का पूरा पानी पाताल में चला जाए लेकिन हुजूर बनेंगे रहेंगे पानीदार।
अपने झारखंड में सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहा है इन बेचारों पर। बड़े अरमान से निकलते हैं कि गला तर करेंगे लेकिन ठंडे की कौन पूछे, गर्म भी वह नहीं मिलता जो उन्हें करता हो शूट। अब गम गलत करने के लिए कुछ न कुछ तो चाहिए, तो जो मिलता है वही दबाते हुए निकल जाते हैं मन-मसोस कर। जेब से ज्यादा माल भी ढ़ीला हो रहा है अलग से। बात वोट की होती तो जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने वाले भी आ जाते इनके साथ, लेकिन ये बेचारे तो इनसे भी गए। मोर्चा निकाल कर भी प्रेशर भी नहीं बना सकते कि सरकार हुजूर को इनपर आ जाए दया। इस जमात की पीड़ा अब देखी नहीं जाती। इन सबसे आजिज आकर भाईयों के एक ग्रुप ने सूत्र वाक्य निकाला है - जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान, जो मिले वही पी लीजिए, भांड़ में जाए ब्रांड।
बड़ी वाली पैरवी
प्रेम-मार्ग की पूछ अपने झारखंड में ऐसे ही नहीं बढ़ी। बदनामी का दाग दूसरे के मत्थे मढ़ने की कोशिश की गई, लेकिन जब चादर हट रहा है तो सबकुछ पता चल रहा है कि आखिरकार इस मार्ग का असली माल किसने उड़ाया। ऊपर से नीचे तक तो सारे लबालब हुए और जाते-जाते बांधकर भी ले गए अपने साथ। इस फेर में माया तो हाथ में आया, लेकिन बाकी सब निकल गया हाथ से। तब हनक ऐसी थी कि पकड़ कर रखने वाले देखते रह गए। अब पूरा का पूरा रिकार्ड तैयार हो रहा है इनका। इसकी हनक और सनक का शिकार होने वाले की दास्तां सुनकर पता चल जाएगा कि कौन कितने पानी में था यहां। अब पानी में रहकर भला मगरमच्छ से कैसे लेंगे पंगा। इसी फेर में तब चुप रह गए एक हाकिम ने अपनी सारी पीड़ा बता दी है तो मन भी हल्का लग रहा होगा।
मुफ्त में बदनाम
वाकई ऐसे-ऐसे हाकिमों के आगे तो बेचारे ये मुफ्त में बदनाम हैं। जब मन होता है तो कोई भी मुंह उठाकर ले लेता है इनका नाम, लेकिन सीमेंट-छड़ से लेकर जंगल तक डकारने वाले की तरफ तो किसी का ध्यान ही नहीं जाता है। पहले पलामू के जंगल से बाघ गायब होने की बात होती थी, लेकिन जिनके जिम्मे जंगल बचाने का जिम्मा था, उसने ही साफ कर दिए सारे पेड़। ये बात भी पुरानी हो गई, कोरोना के जमाने की थी। अब एक हुजूर ने तो इससे आगे का खेला कर दिया है कि बात जंगल की आग की तरह फैल गई है। जल, जंगल के साथ-साथ जब जमीन का खुलासा होगा तो हुजूर के नीचे की जमीन न खिसक जाए। अभी तो बात बस इतनी है कि अपना जानकर जंगल काट जमीन कर दिए खातिरदारों के नाम हुजूर ने।