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COVID-19 Second Wave: कोरोना संक्रमण की चेन न टूटी, तो मचेगा हाहाकार

राज्य सरकार ने आंशिक लॉकडाउन लगाकर एक बार फिर से सख्ती बरतना शुरू किया है। सरकार ने इसका भी ख्याल रखा है कि लोगों की आजीविका पर इसका बहुत ज्यादा असर न पड़े। इसीलिए तमाम आर्थिक गतिविधियों को इससे विरत रखा गया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 23 Apr 2021 12:56 PM (IST)Updated: Fri, 23 Apr 2021 01:00 PM (IST)
COVID-19 Second Wave: कोरोना संक्रमण की चेन न टूटी, तो मचेगा हाहाकार
आखिर कोरोना की पहली लहर के बाद हम क्यों नहीं चेते?

रांची, प्रदीप शुक्ला। झारखंड में स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के नाम पर आंशिक लॉकडाउन शुरू हो गया है। लॉकडाउन लगे अथवा नहीं इसको लेकर गठबंधन सरकार के दल झामुमो और कांग्रेस में कई दिनों तक चली जद्दोजहद के बाद यह निर्णय लिया जा सका। लॉकडाउन में किसी जरूरी गतिविधि को बंद नहीं रखा गया है और थोड़ी बंदिशों के साथ ढेर सारी छूट दी गई है। अब न तो सबकुछ बंद है और न ही सबकुछ खुला। मौजूदा स्थिति में इसे समझदारी भरा कदम ही माना जाना चाहिए। यदि पूरी तरह से लॉकडाउन लगता तो पहले से आर्थिक दुश्वारियों से जूझ रहे राज्य के सामने कई अन्य तरह की चुनौतियां खड़ी हो सकती थीं।

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सरकार एक सप्ताह में कुछ सख्ती करके कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने की कोशिश करेगी। अगर इसमें सफलता मिलती है तो इसे आगे बढ़ाया जा सकता है, अन्यथा सरकार आगे और भी कड़े फैसले ले सकती है। इतना जरूर है कि अगर संक्रमण की चेन न टूटी तो अगले दो सप्ताह में राज्य में हाहाकार मचने वाला है। हालात अभी भी बहुत अच्छे नहीं हैं। रांची में अस्पतालों की चौखट पर मरीज घोर दुव्र्यवस्था के शिकार हो रहे हैं। कई तो बेड की आस में अस्पताल के गेट और एंबुलेंस में दम तोड़ दे रहे हैं। आक्सीजन सिलेंडर, रेमडेसिविर इंजेक्शन सहित अन्य तमाम दवाओं का संकट पैदा हो गया है। संक्रमितों के स्वजन अन्य तमाम सुविधाओं के लिए भी भटक रहे हैं। कहीं से कोई सही जवाब नहीं मिल रहा है।

रसूख वाले भी असहाय दिख रहे हैं। ऐसे संकट के समय में भी एक वर्ग ऐसा है जो कालाबाजारी कर अपनी जेबें भरने में जुटा है। सरकार तमाम कदम उठाती तो दिख रही है, लेकिन इन कालाबाजारियों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। जिसे जहां मौका मिल रहा है वह संक्रमण के शिकार स्वजनों को लूट रहा है। रांची के एक अस्पताल ने तो एक कोरोना संक्रमित से एक ही दिन के उपचार के बदले सवा लाख रुपये वसूल लिए। दुर्भाग्य से उक्त कोरोना संक्रमित की जान भी चली गई। मुख्यमंत्री के संज्ञान लेने के बाद उक्त अस्पताल ने पैसे तो वापस कर दिए, लेकिन सवाल उठता है कि चौतरफा हो रही इस लूट पर कैसे अंकुश लगे? एंबुलेंस से लेकर विभिन्न जांच के नाम पर हजारों के बिल बनाए जा रहे हैं। अस्पतालों की मनमानी चरम पर है। स्वास्थ्य मंत्री लगातार चेता रहे हैं, लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही है।

राज्य में संक्रमित मरीजों की संख्या में जिस गति से इजाफा हो रहा है, उससे अगले दो सप्ताह बाद स्थिति बहुत भयावह होने वाली है। अभी राज्य में 35 हजार से ज्यादा सक्रिय मरीज हैं। सौ में 18 संक्रमित मिल रहे हैं। हजारीबाग, दुमका, खूंटी, कोडरमा और रांची में जांच करवाने वाला हर चौथा व्यक्ति संक्रमित निकल रहा है। यह दर लगातार बढ़ रही है। राज्य में जो मौजूदा संसाधन हैं वह अभी ही नाकाफी साबित हो रहे हैं। संक्रमण की यही रफ्तार रही तो भविष्य में स्थिति और भी भयावह हो सकती है। संसाधनों की बात करें तो फिलहाल राज्य के पास 4,200 आक्सीजन सपोर्टेड बेड हैं। संक्रमण की जो दर है वह बरकार रहती है तो एक सप्ताह बाद राज्य को 6,500 आक्सीजन सपोर्टेड बेड की जरूरत होगी। इसी तरह 640 आइसीयू बेड हैं।

एक सप्ताह बाद लगभग 1,500 आइसीयू बेड की जरूरत होगी। अभी राज्य के अस्पतालों में 621 वेंटीलेटर मौजूद हैं। एक सप्ताह बाद लगभग 1,100 वेंटीलेटर की जरूरत हो सकती है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर अगले दो-तीन सप्ताह तक संक्रमण यूं ही बढ़ता रहा तो राज्य का क्या होगा? सवाल बहुत हैं, लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है। आखिर कोरोना की पहली लहर के बाद हम क्यों नहीं चेते? आसन्न संकट के मद्देनजर जरूरी संसाधन जुटाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास क्यों नहीं किए गए? जरूरी मेडिकल उपकरणों की खरीद को लेकर इतनी सुस्ती क्यों बरती गई? सरकारी अस्पतालों को और उच्चीकृत क्यों नहीं किया गया?

कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जागरूकता के साथ-साथ सख्ती क्यों नहीं बरती गई? वैसे इन हालात के लिए आम लोग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। हमने संक्रमण से बचने के लिए जरूरी एहतियात बरतना लगभग बंद कर दिया था। अब राज्य सरकार ने आंशिक लॉकडाउन लगाकर एक बार फिर से सख्ती बरतना शुरू किया है। सरकार ने इसका भी ख्याल रखा है कि लोगों की आजीविका पर इसका बहुत ज्यादा असर न पड़े। इसीलिए तमाम आर्थिक गतिविधियों को इससे विरत रखा गया है। उद्योग-धंधे पूर्व की भांति चलते रहेंगे।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]


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