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Bridge Collapsed in Ranchi: झारखंड में उद्घाटन से पहले ढहा पुल, इनके गुनहगारों को कब मिलेगी सजा

Bridge Collapsed in Ranchi प्रधान महालेखाकार ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि घटिया निर्माण के लिए दोषियों की पहचान कर उन्हें कार्रवाई के दायरे में लाया जाए। देखना होगा क्या राज्य सरकार कोई कठोर कार्रवाई कर जनता की राय को कुछ बदल पाएगी?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 17 Sep 2021 10:19 AM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 10:21 AM (IST)
Bridge Collapsed in Ranchi: झारखंड में उद्घाटन से पहले ढहा पुल, इनके गुनहगारों को कब मिलेगी सजा
रांची के तमाड़ में कांची नदी पर बना पुल उद्घाटन के पहले ही हुआ ध्वस्त। जागरण आर्काइव

रांची, प्रदीप शुक्ला। Bridge Collapsed in Ranchi इस तस्वीर को गौर से देखिए। इसमें कुछ नया नहीं है, लेकिन ये हमें कचोटती है। नासूर बन चुके भ्रष्टाचार को बयां करने वाली ऐसी तस्वीरें हर वर्ष बारिश में समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती हैं। आकंठ भ्रष्ट हो चुके सिस्टम और इसके जिम्मेदारों के प्रति ऐसी तस्वीरें हिकारत का भाव भी पैदा करती हैं। बावजूद इसके धरातल पर बहुत कुछ नहीं बदलता है। हम कुछ दिन जिम्मेदारों को कोसते हैं और फिर अपने में मगन हो जाते हैं। तब तक, जब तक कोई ऐसा ही वाकया दोबारा सुर्खियों में नहीं आ जाता।

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छोटी-छोटी बातों पर दिनभर इंटरनेट मीडिया पर हंगामा बरपा देने वालों की नजर में भी शायद यह बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। नतीजा, भ्रष्टाचार के ऐसे खुले सुबूतों के बाद भी इनके गुनहगार मौज करते रहते हैं। जब कभी बड़ी जनहानि हो जाती है तो जरूर कुछ हल्ला-हंगामा होता है। कुछ दिखावटी कार्रवाई भी होती है। झारखंड में पिछले पांच साल में जो पुल-पुलिया और भवन बने उनमें बड़े पैमाने पर गुणवत्ता की अनदेखी की गई है। यह गिर रहे हैं, ढह रहे हैं। यह जनता के धन की बर्बादी तो है ही, कभी भी बड़े हादसे का कारण भी बन सकते हैं। पिछले सप्ताह ही विधानसभा भवन में रखी गई कैग की रिपोर्ट में जो राजफाश हुए हैं वे सिस्टम की पोल खोल रहे हैं।

रांची जिले के बुंडू प्रखंड में बूढ़ाडीह-हाराडीह के बीच कांची नदी पर बना यह पुल कुछ ही साल पहले 14 करोड़ की लागत से बना था। पहले इसी साल 27 मई को आए यास तूफान के दौरान यह काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। चार महीने बाद अब बारिश में यह लगभग ढह गया। अभियंताओं का कहना है कि अब इस पुल की मरम्मत होनी मुश्किल है। सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में क्या इसे बनाने वाली कंपनी एनके कंस्ट्रक्शन से इस धनराशि की वसूली होगी? क्या निर्माण के समय इसकी गुणवत्ता जांचने-परखने की जिम्मेदारी जिन महकमों व अभियंताओं पर थी वे कार्रवाई के दायरे में आएंगे?

क्या विधानसभा में यह मुद्दा गुंजेगा? क्या इसे लेकर विधानसभा के बाहर सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष का कोई विधायक कभी धरने पर बैठेगा? इसकी उम्मीद तो कम ही है। ऐसे में यह सवाल मन में उठना स्वाभाविक ही है कि जनता के नुमाइंदे आखिर ऐसा क्यों नहीं करेंगे? धन की हुई इस बर्बादी के साथ-साथ जनता की दिक्कतों को यदि जनप्रतिनिधि ही नहीं उठाएंगे तो फिर कौन उठाएगा? भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की विधानसभा के पटल पर रखी गई रिपोर्ट और उस पर माननीयों की चुप्पी से यह जाहिर हो गया है कि भ्रष्टाचार के जीते-जागते इन सुबूतों में उनकी कोई रुचि नहीं है। अब यह बताने की जरूरत तो नहीं ही है कि आखिर ऐसा क्यों है?

कैग की रिपोर्ट के अनुसार तकनीकी और व्यवस्थागत खामियों के कारण राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि इन पुल-पुलियों की मरम्मत का कोई प्रविधान नहीं किया गया है। जहां देश में राष्ट्रीय राजमार्ग अब विश्वस्तरीय गुणवत्ता के बन रहे हैं, वहीं राज्य के ग्रामीण अंचलों में आज भी सैकड़ों पुल-पुलिया, सड़कें और भवन लूट-खसोट के गवाह बनकर खड़े हैं। इनके निर्माण के पहले न तो मिट्टी की जांच हुई, न पानी के स्तर को मापा गया। जहां डीप फाउंडेशन दिया जाना था, वहां खुला फाउंडेशन देकर खंभा खड़ा कर दिया गया और पुल बना दिया गया। तमाम नियमों की अनदेखी कर बनाए गए पुल का परिणाम सबके सामने है।

दरअसल मार्च 2019 तक राज्य के अधूरे पुल कार्यो में से 39 पुलों का निर्माण उनके पूर्ण होने की निर्धारित अवधि के छह महीने से साढ़े नौ साल गुजरने के बावजूद पूरा नहीं हुआ। इसी तरह पर्यटन स्थल वहां विकसित करने की कोशिश की गई जहां न बेहतर लोकेशन थी, न बिजली व पानी की समुचित व्यवस्था। वहां तक पुहंचने की सड़क भी नहीं थी। जहां बेहतर लोकेशन नहीं थी, वहां भी पर्यटकों के लिए आवास बना दिए गए जिनका कोई उपयोग नहीं हुआ। 39.62 करोड़ की लागत से निर्मित 39 पर्यटन स्थलों से न तो स्थानीय लोग लाभान्वित हुए और न ही सरकार को कोई लाभ मिला। यह घटिया प्रबंधन के चलते हुआ।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]


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