Jharkhand Government: मुखिया लूट रहे महफिल, उपलब्धियां बताने को तरस रहे मंत्री जी...पढ़ें सरकार के अंदर की खबर
राज्य के मुखिया विभिन्न विभागों की उपलब्धियों की लगातार समीक्षा कर रहे हैं लेकिन समीक्षा बैठक से कुछ माननीय खुश नहीं हैं। दरअसल राज्य सरकार के एक साल की उपलब्धियों की समीक्षा को लेकर बैठक हो रही है लेकिन उपलब्धियों में उनका कोई नाम नहीं आ रहा है।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार अपने अफसरों-अधिकारियों को लेकर खासी संजिदा है। सरकारी कार्यालयों में काम-काज के लिए आम जनता को ऑफिस-ऑफिस न भटकना पड़े इसके लिए मुकम्मल इंतजाम किए गए हैं। हालांकि बाबुओं की मनमर्जी के आगे अक्सर फाइलें दराजों में धूल चाटती रहती हैं। ऊपर से कोरोना वायरस की महामारी ने अफसर-कर्मियों को काम से कटने का बढि़या बहाना दे दिया है। यहां पढ़ें राज्य ब्यूरो के सहयोगी नीरज अम्बष्ठ के साथ हमारा खास कॉलम ऑफिस-ऑफिस...
पन्ना की तमन्ना
अपने राज्य में हीरा पन्ना वाला विभाग आजकल कुछ ज्यादा ही चर्चा में है। विभाग तो सिर्फ कहने के लिए हीरा पन्ना वाला है, लेकिन यहां कोयला से अधिक कुछ और नहीं मिलता है। हां, लोहे की कुछ टीले हैं और रेत तो दुनिया में कहां नहीं है। अब कोई कितना भी कुछ कर ले बालू से घी तो नहीं निकाल सकता। चर्चा में विभाग के आने पर आते-जाते हर इंसान मुखिया जी का हाल चाल पूछ रहे हैं, लेकिन, उनके शुभचिंतक भी कम नहीं हैं। ऐसे ही किसी शुभचिंतक ने बता दिया कि वक्त खराब हो तो कोरोना काम आएगा। अपनी सरकार ने तो इसी बहाने पूरा साल काट दिया है। यह उम्दा सुझाव तत्काल प्रभाव में लाया गया और पूरे विभाग में जहां तहां कोरोना के कारण संक्रमण की संभावना देखते हुए मुलाकातियों को रोक दिया गया है।
उपलब्धियां बताने को तरस रहे माननीय
राज्य के मुखिया विभिन्न विभागों की योजनाओं की प्रगति और विभागों की उपलब्धियों की लगातार समीक्षा कर रहे हैं, लेकिन समीक्षा बैठक से कुछ माननीय खुश नहीं हैं। दरअसल, राज्य सरकार के एक साल की उपलब्धियों की समीक्षा को लेकर बैठक हो रही है, लेकिन उपलब्धियों में उनका कोई नाम नहीं आ रहा है। बगल में फोटो खिंचवाकर ही उन्हें संतोष करना पड़ रहा है। माननीय खुलकर तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, लेकिन अपने नजदीकियों से अपना दर्द जरूर बयां कर रहे हैं। अब इनकी नजरें 29 तारीख से पहले होनेवाले विभिन्न विभागों की प्रेस कॉन्फ्रेंस और शहरों में लगने वाले होर्डिंग-पोस्टर पर है। पता नहीं, इसमें भी माननीय को अपनी उपलब्धता गिनाने का अवसर प्राप्त होता है या नहीं।
ऐसे में तो कसा शिकंजा
दवा-दारू से जुड़े विभाग वाले माननीय ने पद संभालते ही दवा दुकानदारों पर निगरानी रखनेवाले अफसरों पर जमकर हमला बोला था। इस व्यवसाय में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और लेनेदन की उन्हें जानकारी होने के साथ ही इसपर शीघ्र शिकंजा कसने के वादे भी किए थे। आनन-फानन में दवा कारोबारियों की बैठक भी बुलाई और किसी प्रकार की गड़बड़ी से बचने की नसीहत और निर्देश भी दिए। इसके बाद बात आई-गई हो गई। इसे लेकर न केवल दवा व्यवसायियों बल्कि औषधि प्रशासन के लोगों में चर्चा बनी हुई है। व्यवसायी कह रहे, जब महज एक बैठक से ही इस तरह की गड़बडिय़ों पर रोक लगने लगे तो इससे अच्छी बात और भला क्या हो सकती है। दस माह हो गए, न तो कोई जांच हुई न ही कोई कार्रवाई। जैसा पहले चल रहा था वैसा अभी भी चल रहा है। अब तो माननीय ही बता सकते हैं कि उनकी बैठक और निर्देशों पर कितना अमल हो पाया।
चेतावनी पर ही मामला हो रहा रफा-दफा
कुछ साहबों पर लगे आरोपों का मामला चेतावनी या निंदा कर ही रफा-दफा हो रहा है। सरायकेला खरसावां के एक साहब पर बिना अनुमति छुट्टी पर चले जाने का आरोप लगा था। यह बात कही जा रही थी कि साहब एक प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, जबकि उस अवधि में बीमार होने का डॉक्टर का पुर्जा सरकार को दिखा दिया। शुरू में तो इसे काफी गंभीर माना गया, लेकिन जिला वाले साहब की अनुशंसा पर सिर्फ चेतावनी देकर साहब के मामला को रफा-दफा कर दिया गया। इसी तरह, बालूमाथ के सीओ साहब पर जाति प्रमाणपत्र बनाने के कई मामले लटकाने के आरोप लगे थे। जांच में पुष्टि भी हुई। इन्हें भी भविष्य में सचेत रहने की चेतावनी देकर मामला निष्पादित कर दिया गया है। अब चेतावनी का कितना असर साहबों पर पड़ेगा यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन सचिवालय के गलियारे में इसकी चर्चा खूब चल रही है।