झारखंड में आदिवासी-कुड़मी में भिड़ंत... जात-पात में दोनों तरफ से जबर्दस्त तनातनी; हेमंत सरकार को चेतावनी
Jharkhand Kudmi Protest झारखंड में आदिवासी -कुड़मी संगठनों में टकराव के आसार के बीच एक- दूसरे के खिलाफ लामबंद होते आदिवासी-कुड़मी संगठन आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। कुड़मी संगठनों की मांग के खिलाफ एकजुट आदिवासी संगठनों ने हेमंत सरकार को चेतावनी दी है।
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Kudmi Protest आदिवासी का दर्जा देने की मांग को लेकर कुड़मी संगठनों ने पिछले दिनों झारखंड समेत बंगाल और ओड़िशा में रेल रोको आंदोलन चलाया था। इसकी जोरदार प्रतिक्रिया आदिवासी संगठनों में है। कुड़मी संगठनों द्वारा आदिवासी का दर्जा देने की मांग का हर स्तर पर विरोध करने का निर्णय किया गया है। अगर यह आगे बढ़ता है तो आदिवासी और कुड़मी संगठनों में टकराव हो सकता है। मंगलवार को विभिन्न आदिवासी संगठनों ने मोरहाबादी मैदान में कुड़मी संगठनों की मांग के खिलाफ एकदिवसीय उपवास एवं धरना कार्यक्रम के दौरान इस संबंध में चेतावनी भी दी।
आदिवासी अधिकार रक्षा मंच के तले हुए कार्यक्रम में 50 से अधिक आदिवासी संगठनों की भागीदारी हुई। मंच ने सीधे तौर पर कुड़मियों की मांग को आदिवासियों पर कुठाराघात बताया है। इन संगठनों का यह भी मानना है कि यह राजनीति षड्यंत्र का हिस्सा है। पांच दिनों तक रेल को रोका जाना और देश के राजस्व को करोड़ों की क्षति पहुंचाने के बावजूद रेल मंत्रालय और रेल प्रशासन की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह आदिवासियों को संवैधानिक रूप से खत्म करने की साजिश है।
झारखंड प्रदेश के आदिवासी संगठनों ने गोलबंद होकर उलगुलान की घोषणा कर दी है। इसमें पूर्व विधायक गीताश्री उरांव, पूर्व सांसद सालखन मुर्मु, बुद्धिजीवी मंच अध्यक्ष पीसी मुर्मू, अनुसूचित जनजाति परिसंघ अध्यक्ष एलएम उरांव ने कार्यक्रम की अगुवाई की। कहा गया कि कुड़मी समुदाय हिंदू समाज का हिस्सा है और ये किसी भी रूप से आदिवासी से सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक एवं वैचारिक तौर पर मेल नहीं खाता है। इनका रहन-सहन, रीति रिवाज, धर्म-संस्कृति, परंपरा और सभ्यता आदिवासियों से बिल्कुल भिन्न है।
उनकी पृष्ठभूमि और इनका इतिहास आदिवासियों से बिल्कुल अलग रहा है और यह अलग-अलग राज्यों में आरक्षण के आधार पर अलग-अलग जातीयता की मांग करते हैं जो पूरी तरह से असंवैधानिक है। यह केंद्र में सत्तासीन भाजपा शासित द्वारा प्रायोजित आंदोलन है, जिसे किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसकी पहल झारखंड में की जा चुकी है और आने वाले दिनों में देशभर में आंदोलन किया जाएगा। सभी राजनीतिक नेताओं, विधायकों और सांसदों को सीधे तौर पर चेतावनी दी गई है कि वह कोई भी असंवैधानिक पहल ना करें, जिससे आदिवासी समुदाय को क्षति हो अन्यथा आदिवासी समुदाय सड़क पर उतरकर विरोध दर्ज कराएगा।
कुड़मियों को भड़का रहे सत्ता में बैठे दल : सालखन मुर्मू
भाजपा के पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगेल अभियान के प्रमुख सालखन मुर्मू ने कहा है कि झारखंड, बंगाल और ओड़िशा में सत्ता में बैठे दल कुड़मियों को भड़का रहे हैं। जब बड़ी आबादी वाले लोग आदिवासी बन जाएंगे तो मूल आदिवासियों का हक मारा जाएगा। 30 सितंबर को कोलकाता में आदिवासी हित से जुड़े मसलों पर वे बड़ी रैली करेंगे। इसमें पांच राज्यों से लगभग एक लाख आदिवासी भाग लेंगे।
30 नवंबर को कर देंगे झारखंड समेत पांच राज्यों में चक्का जाम
उन्होंने 30 नवंबर को देश के पांच राज्यों में रेल और रोड चक्का जाम करने की घोषणा करते हुए कहा कि 20 नवंबर तक केंद्र सरकार सरना धर्म कोड को लागू करने की दिशा में पहल करे। ऐसा नहीं हुआ तो झारखंड समेत बिहार, बंगाल, ओड़िशा और असम में एक दिन के लिए चक्का जाम कर देंगे।उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की मान्यता का मौलिक अधिकार है।
1932 खतियान हेमंत सोरेन का राजनीतिक स्टंट, कभी लागू नहीं हो सकता
सालखन मुर्मू ने कहा कि झारखंड में आदिवासियों की स्थिति ठीक नहीं है। सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति तय करने की घोषणा की है। अभी इसे लागू नहीं किया गया है और यह लागू नहीं हो सकता है। यह झारखंड मुक्ति मोर्चा का राजनीतिक स्टंट है। यह व्यावहारिक नहीं है। इसे कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है।