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    अदालत ने गृह सचिव से मांगा पुलिस हिरासत में मौत का पूरा डेटा

    By Manoj Singh Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Tue, 02 Dec 2025 07:19 PM (IST)

    झारखंड हाई कोर्ट ने पुलिस हिरासत में हुई मौतों का पूरा ब्योरा सरकार से मांगा है। अदालत ने सरकार द्वारा पेश किए गए शपथ पत्र पर असंतोष जताया, जिसमें केव ...और पढ़ें

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    झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को पुलिस हिरासत या पुलिस ट्रांजिट के दौरान होने वाली मौतों का पूरा ब्योरा मांगा है।

    राज्य ब्यूरो, रांची। Jharkhand High Court के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत ने राज्य सरकार को पुलिस हिरासत या पुलिस ट्रांजिट के दौरान होने वाली मौतों का पूरा ब्योरा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

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    पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि गृह विभाग के प्रधान सचिव द्वारा पेश शपथपत्र में केवल जेल या न्यायिक हिरासत में होने वाली मौतों का ही डेटा शामिल है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पुलिस हिरासत या पुलिस ट्रांजिट में हुई मौतों के मामले इस शपथ पत्र में शामिल नहीं थे।

    जबकि पिछले आदेश में सभी प्रकार की हिरासत में मौतों का ब्योरा मांगा गया था। सरकार की ओर से दाखिल शपथ पत्र में दी गई जानकारी पर असंतोष जताया है। अदालत ने गृह विभाग के प्रधान सचिव को व्यक्तिगत रूप से तीन सप्ताह में शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है। 

    इसमें Police Custody पुलिस हिरासत और पुलिस ट्रांजिट में होने वाली मौतों के सभी मामलों का स्पष्ट ब्योरा उपलब्ध होना चाहिए। मामले में अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी। इस संबंध में प्रार्थी मुमताज अंसारी एवं अन्य की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है।

    अदालत ने 25 सितंबर को पुलिस हिरासत में मौतों का संपूर्ण डेटा मांगा था, जिसका जवाब अपर्याप्त पाए जाने पर फिर से शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश जारी किया है।

    सरकार की ओर से दाखिल शपथ पत्र में वर्ष 2018 से अब तक जेल या न्यायिक हिरासत, पुलिस हिरासत एवं पुलिस थाना में हुई मौत का ब्योरा प्रस्तुत किया गया। इसमें कहा गया है कि इस दौरान 427 मौतें हुई हैं।

    मौत के बाद इसकी सूचना तत्काल मजिस्ट्रेट को दे दी गई थी। प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि हिरासत में मौत कानून के अनुसार न्यायिक जांच मजिस्ट्रेट के स्तर पर होनी चाहिए। लेकिन सरकार की ओर से एग्जिक्यूटिव रैंक के अधिकारियों से इसकी जांच कराई जाती है।

    इस पर खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा था कि रिकार्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि मजिस्ट्रेट द्वारा जेल या न्यायिक हिरासत में हुई मौत के मामले में कोई जांच की गई थी या नहीं।