राज्य सरकार के पास 53,377 करोड़ का हिसाब-किताब नहीं
राज्य सरकार का खाता-बही कतई दुरुस्त नहीं है। सहायता अनुदान मद में खर्च होने वाली राशि का ब्योरा जिसे सरकारी भाषा में उपयोगिता प्रमाणपत्र कहते हैं प्रधान महालेखाकार को मुहैया नहीं कराया गया है। सीएजी की रिपोर्ट में इस ओर राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया है। वर्ष 2017-18 तक भुगतान किए गए 53377 करोड़ रुपये की राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र बकाया है। बकाया उपयोगिता प्रमाणपत्रों की संख्या भी काफी बड़ी 25231 है।
रांची : राज्य सरकार का खाता-बही कतई दुरुस्त नहीं है। सहायता अनुदान मद में खर्च होने वाली राशि का ब्योरा, जिसे सरकारी भाषा में उपयोगिता प्रमाणपत्र कहते हैं, प्रधान महालेखाकार को मुहैया नहीं कराया गया है। सीएजी की रिपोर्ट में इस ओर राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया है। वर्ष 2017-18 तक भुगतान किए गए 53,377 करोड़ रुपये की राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र बकाया है। बकाया उपयोगिता प्रमाणपत्रों की संख्या भी काफी बड़ी 25,231 है।
वर्ष 2015-16 से 2017-18 तक के पांच प्रमुख विभागों के ब्योरे की बात करें तो नगर विकास एवं विभाग के 12,232.71 करोड़, मानव संसाधन विभाग के 11,781.58 करोड़, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के 4,772.79 करोड़ ,कल्याण विभाग के 2,71.84 करोड़ और कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के 1250.65 करोड़ रुपये के उपयोगिता प्रमाणपत्र बकाया था। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में उपयोगिता प्रमाण पत्र की उपयोगिता का उल्लेख करते हुए और उसके प्रयोजन पर सवाल उठाए हैं।
वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान 19,545.33 करोड़ के बकाया 4219 उपयोगिता प्रमाणपत्र का जिक्र करते हुए कहा गया है कि सहायता अनुदान के विरुद्ध् इस बात का कोई आश्वासन नहीं है कि यह राशि वास्तव में वित्तीय वर्ष के दौरान उसी प्रयोजन में व्यय की गई जिसके लिए विधायिका ने इन्हें अधिकृत किया था। सीएजी ने उपयोगिता प्रमाणपत्र में शिथिलता बरते जाने का भी उल्लेख किया है। कहा है कि झारखंड सरकार द्वारा कोषागार संहिता के नियम को सहायता अनुदान के लिए मार्च 2015 में शिथिल किया गया था। अनुदान निकासी के लिए प्रधान महालेखाकार से प्राधिकार पत्र की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2016-17 के 19,086 करोड़ की बकाया राशि 2018-19 में बढ़कर 53,377 करोड़ हो गई। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को सलाह दी है कि उपयोगिता प्रमाण पत्र के लिए वित्त विभाग को इसके लिए एक समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए।
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निजी खातों में 14347 करोड़ रुपये जमा
सीएजी रिपोर्ट में नियमों की अनदेखी कर निजी खातों में सरकारी फंड रखने की बात सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2018-19 के अंत में 14347 करोड़ रुपये निजी खातों में दिख रहा है। इसमें से 1144 करोड़ राशि इसी वर्ष के बजटीय प्रावधान से है, जबकि शेष राशि पूर्व के वर्षों से निजी खातों में रही है। निजी खातों में राशि रखना झारखंड कोषागार संहिता के नियम 174 के विरुद्ध है। सरकारी स्तर पर ऐसा लंबे समय से किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 के अंत में 9488 करोड़ रुपये निजी खातों में थे जो अगले वर्ष 13202 करोड़ रुपये हो गए और हर वर्ष यह राशि बढ़ती गई।
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राजस्व के मोर्चे पर 886 करोड़ की लगी चपत
राजस्व के मोर्चे पर सिस्टम यदि मुस्तैदी से काम करती है तो राजस्व में वृद्धि होती है और अफसरों का रवैया यदि ढीला रहता है तो इसका प्रत्यक्ष असर खजाने पर पड़ता है। बिक्री, व्यापार, राज्य उत्पाद, वाहनों पर कर, भू-राजस्व एवं मुद्रांक एवं निबंधन फीस की वसूली से जुड़े तमाम लचर मामलों की ओर सरकार का ध्यान सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कराया है। 2018 के राजस्व क्षेत्र के प्रतिवेदन में इसका उल्लेख किया गया है। जो यह बताता है कि सिस्टम की गलती का नतीजा 886.47 करोड़ रुपये के झटके के रूप में सामने आया है। सीएजी की मानें तो यह 886.47 करोड़ का कुल वित्तीय प्रभाव वर्ष 2017-18 के दौरान राज्य सरकार द्वारा सृजित 20,200 करोड़ के राजस्व का 4.39 प्रतिशत है। सीएजी द्वारा पकड़ी गई इन कमियों को कुछ हद तक संबंधित विभागों ने स्वीकारा भी है। कुल 331.47 करोड़ के मामलों को सरकार ने स्वीकारा है।
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अफसरों की करतूत, जमीन मुआवजे का 1494.39 करोड़ रखा बैंक खातों में झारखंड में वित्तीय अनुशासन की धज्जियां अफसरों ने उड़ाई है। अफसरों ने जमीन मुआवजा के मद की 1494.39 करोड़ की राशि को सिविल डिपॉजिट में रखने की बजाय बैंक खातों में रखा। नियमानुसार तत्काल वितरण की आवश्यकता होने पर ही इसे निकालने का प्रावधान है। जांच में पाया गया कि बैंकों में भूमि अर्जन के लिए प्राप्त राशि को रखना वित्तीय अनुशासन है। ऑडिट में पाया गया कि वित्त विभाग ने उपायुक्तों को निर्देश दिया था कि भूमि अर्जन से संबंधित धनराशि प्रत्येक जिले में एक बैंक खाते में और विशेष परिस्थितियों में दो बैंक खातों में रखा जाना चाहिए। यह निर्देश विरोधाभासी था, जिसमें विशेष रूप से कहा गया था कि रकम केवल सिविल डिपॉजिट शीर्ष में जमा किया जाना था। इसके कारण कई अनियमितताएं हुई। सरकार ने भी इसे स्वीकार किया और कहा कि इस मामले को वित्त विभाग को स्पष्टीकरण के लिए भेजा गया है।
पाया गया कि अधिकतम दो बैंक खातों के रखे जाने के सरकारी आदेश के विरुद्ध नौ सीएजी द्वारा सैंपलिंग के तौर पर चयनित कार्यालयों में 31 मार्च 2018 तक चार से 18 बैंक खातों का संचालन किया जा रहा था। इन खातों में 22.07 करोड़ और 602.47 करोड़ के मध्य शेष राशि थी जो दो खाते रखने की सीमा के सरकारी निर्देशों का उल्लंघन था। जिला भूअर्जन कार्यालय, गिरिडीह और गोड्डा में नवंबर 2017 एवं फरवरी 2018 के बीच तीन नए बैंक खाते खोले गए। लेखा परीक्षा में संबंधित बैंकों की चेक निर्गत पंजी की जांच में पता चला कि 287 बार 1255.80 करोड़ को एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में या एक ही बैंक में नया खाता खोलकर या किसी अन्य बैंक के नए अथवा चल रहे खाते में ट्रांसफर किया गया। धनबाद में आंतरिक लेखा परीक्षा का कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं था।
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रांची में धोखे से निकाला 2.01 करोड़
केनरा बैंक, कांके रोड शाखा ने सूचित किया कि जिला भूअर्जन कार्यालय, रांची के पूर्व जिला भूअर्जन पदाधिकारी के हस्ताक्षर वाले चार चेक से 2.01 करोड़ का भुगतान किया गया। यह राशि धोखे से निकाली गई। थाना प्रभारी, गोंदा को सूचित किए जाने के बाद बैंक ने मार्च 2016 में 1.03 करोड़ राशि वापस कर दी। शेष राशि 98.22 लाख की वसूली फरवरी 2020 तक नहीं हुई थी।
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अयोग्य पुलिसकर्मियों को दी गई आतंकवाद से निपटने की ट्रेनिग
झारखंड में आतंकवाद के स्लीपर सेल (आतंकियों का वह दस्ता जो आम लोगों के बीच रहता है और निर्देश मिलने पर विविध घटनाओं को अंजाम देता है) से निपटने के लिए झारखंड पुलिस में आतंकवाद निरोधक दस्ता (झारखंड एटीएस) का गठन किया गया था। इस दस्ते में 30 साल की उम्र सीमा तक के सिपाही, 40 साल की उम्र सीमा तक के हवलदार व 45 साल की उम्र सीमा तक के अधिकारियों को रखना था। इन पुलिसकर्मियों व अधिकारियों को काउंटर इंसर्जेंसी एंड एंटी टेररिज्म स्कूल (सीआइएटी) में प्रशिक्षण दिलाया जाना था। इससे इतर एटीएस में पुलिसकर्मियों व अधिकारियों को शामिल करने की कड़ी में निर्धारित उम्र का ख्याल नहीं रखा गया। इतना ही नहीं मुसाबनी, नेतरहाट व टेंडरग्राम स्थित प्रशिक्षण संस्थानों में जहां उन्हें आतंकवाद से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाना था, वहां प्रशिक्षण सामग्री और प्रशिक्षकों की भी कमी थी। और तो और कारतूसों की कमी तथा फायरिग रेंज की अनुपलब्धता के कारण पुलिसकर्मियों को पर्याप्त लक्ष्याभ्यास तक नहीं कराया जा सका। नतीजतन प्रशिक्षण प्राप्त 35 फीसद पुलिसकर्मी अंतिम जांच परीक्षा पास ही नहीं कर सके। यही वजह रही कि नक्सल विरोधी अभियान में एटीएस को स्वतंत्र रूप से नहीं लगाया जा सका। रिपोर्ट के अनुसार 69 फीसद अभियान केवल केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, 25 फीसद संयुक्त रूप से राज्य बल एवं केंद्रीय बल तथा सिर्फ छह फीसद अभियान राज्य बल ने संचालित किया।
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बगैर बुलेट प्रूफ जैकेट के नक्सलियों से लोहा ले रहा जगुआर, हथियार का भी टोटा
झारखंड में नक्सल प्रभावित क्षेत्र अधिक होने के चलते यहां झारखंड जगुआर (एसटीएफ) को नक्सलियों के विरुद्ध तैयार करने की कोशिश की गई। केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल के साथ एसटीएफ के जवान नक्सलियों के विरुद्ध अभियान में शामिल होते रहे हैं। दुर्भाग्य यह कि एसटीएफ, जैप-6 व सैप वन बटालियन में बुलेट प्रूफ जैकेट है ही नहीं। सीएजी की रिपोर्ट यह भी बताती है कि राज्य में हथियार, कारतूस व गोला-बारूद की भी भारी कमी है। आवश्यकता की तुलना में राज्य में 24 हजार 514 हथियार कम हैं।
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जर्जर भवनों में रहते हैं पुलिसकर्मी, 11 साल बाद भी नहीं बने पांच पुलिस केंद्र
राज्य में आज भी अधिकतर पुलिसकर्मी जर्जर भवनों में रहते हैं। सीएजी ने जब रिपोर्ट तैयार की थी, महज 8.66 फीसद पुलिसकर्मियों को ही आवासीय सुविधा देने की क्षमता राज्य सरकार के पास थी। इस समस्या को देखते हुए गिरिडीह, हजारीबाग (जैप-7), कोडरमा, लातेहार और लोहरदगा में पांच पुलिस केंद्रों के निर्माण पर 170.21 करोड़ रुपये खर्च होने थे। निर्माण कार्य शुरू होने के 11 साल बाद भी संबंधित केंद्रों को आकार नहीं मिल सका। छानबीन में यह बात सामने आई है कि बिना प्रशासनिक स्वीकृति के काम शुरू करने, पुनरीक्षित प्राक्कलन को प्रस्तुत करने में विलंब, समय पर राशि निर्गत नहीं होने आदि कारणों से पुलिस केंद्र का कार्य पूरा नहीं हो सका। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरएंडडी)के मानक के अनुसार थाना एवं चौकी भवनों में समुचित सुरक्षा उपाय के साथ पर्याप्त जगह होनी चाहिए। जांच के दौरान 62 थाना व चौकियों में निर्धारित मानकों के विरुद्ध सुविधाओं में कमी मिली। इनमें से 24 के पास अपने भवन, 27 के पास पुरुष और महिला बंदियों के लिए अलग-अलग लॉकअप, 39 के पास पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय, जबकि 47 के पास हथियार रखने के लिए शस्त्रागार नहीं थे।
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बकाया वसूली पर सरकार का रवैया लचर, वित्तीय अनुशासन का दिखा अभाव
राजस्व मद में बकाया वसूली को लेकर राज्य सरकार का रवैया लचर रहा है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने वर्ष 2018 के राजस्व क्षेत्र के प्रतिवेदन में आंकड़ों का हवाला देते हुए इसे स्पष्ट किया है। सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि बिक्री, व्यापार आदि पर कर के अलावा वाहनों और राज्य उत्पाद शुल्क का बकाया 6355.57 करोड़ था, जिसमें से 1824.43 करोड़ पांच वर्ष से अधिक समय से बकाया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिक्री, व्यापार आदि पर 6047.23 करोड़, वाहनों पर 272.16 करोड़ और राज्य उत्पाद के मद में 36.37 करोड़ बकाया था। बताया गया है कि कुल बकाया में से 429.63 करोड़ की वसूली के लिए नीलाम पत्रवाद दायर किए गए। 1284 करोड़ की वसूली पर न्यायालय व अन्य अपीलीय प्राधिकारों और सरकार ने 235 करोड़ की मांग पर सुधार व पुनर्विचार के कारण रोक लगाई। जबकि शेष 4345.91 करोड़ के बकाया की वसूली के लिए किए गए विशेष प्रयासों की सरकार के स्तर से सीएजी से जानकारी साझा नहीं की गई।
रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में वित्तीय अनुशासन कायम नहीं रहा है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है। साथ ही सरकार को सलाह दी है कि वह बजट तैयार करने के उपक्रम को तर्कसंगत बनाए ताकि बजट अनुमान और वास्तविकता के बीच की खाई को पाटा जा सके। मार्च 2018 और मार्च 2019 के राज्य लेखा परीक्षा प्रतिवेदन में राज्य सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष राजस्व प्राप्ति, राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय के आंकड़ों को साझा करते हुए सीएजी ने तार्किक तरीके से बातों को रखा है। वर्ष 2017-18 में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 4.67 था जो कि 14 वें वित्त आयोग की अनुशंसित दर 3.25 प्रतिशत से बहुत अधिक था। वहीं 2018-19 में यह घटकर 2.16 प्रतिशत था, जो कि तय लक्ष्य के भीतर था। जाहिर है एक साल के भीतर के राजकोषीय घाटे में खासा उतारा चढ़ाव है।
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मजदूरों पर खर्च नहीं हुए श्रम सेस के 473.48 करोड़
भवन निर्माण कार्यों में ठेकेदारों से श्रम सेस के रूप में लिए गए 473.48 करोड़ रुपये मजदूरों के कल्याण पर खर्च नहीं हुए। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-19 तक इतनी सेस की राशि श्रमिक कल्याण बोर्ड को हस्तांतरित ही नहीं की गई। वहीं, वर्ष 2009-10 से 2018-19 तक मजदूरों की 22 कल्याणकारी योजनाओं पर 253.24 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि 4.75 करोड़ रुपये स्थापना मद में कर्मियों के वेतन एवं कार्यालय पर व्यय हुए। बोर्ड विभिन्न योजनाओं के लिए उपलब्ध फंड का केवल 51.50 फीसद ही उपयोग कर सका। बोर्ड ने सफाई दी कि कुछ योजनाएं बंद कर दी गई हैं जिसके कारण राशि खर्च नहीं हो सकी।
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रिम्स, रिनपास व आवास बोर्ड का सालों से ऑडिट नहीं
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार कई सालों से रिम्स, रिनपास और झारखंड आवास बोर्ड ने अपना लेखाजोखा नहीं दिया है। रिपोर्ट में कहा गया कि 75 निकायों की ओर से फरवरी 2019 तक लेखाजोखा नहीं दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2015-16 व 2016-17, रिम्स ने वर्ष 2010-11 से 2017-18 तथा रिनपास से किसी भी साल का लेखाजोखा नहीं दिया। --------
कॉमर्शियल की जगह कृषि भूमि मानकर गलत दर का किया गया निर्धारण
कॉमर्शियल उपयोग के लिए पट्टे पर दी गई भूमि का निर्धारण यदि कृषि भूमि मानकर किया जाएगा तो चपत तो सरकार को ही लगेगी। सीएजी ने इस गड़बड़ी को उजागर किया है और स्पष्ट कहा है कि अपर समाहर्ता के चार कार्यालयों देवघर, गिरिडीह, हजारीबाग व साहिबगंज ने कॉमर्शियल प्रयोजन के लिए हस्तांतरित की गई भूमि की वसूली कृषि भूमि मानकर की, जिससे 181.98 करोड़ की कम वसूली हुई। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि चार परियोजनाओं के लिए 832.88 एकड़ भूमि हस्तांतरित की गई और सलामी, लगान और उपकर के रूप में महज 54.39 करोड़ लिए गए। जबकि यदि यही वसूली कॉमर्शियल मद में की गई होती तो इस मद में 236.37 करोड़ रुपये सरकारी खाते में आते। अधिकारियों की लापरवाही से 181.94 करोड़ की कम वसूली हुई।
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