राज्यपाल जनजातीय मुद्दों को लेकर रहीं सजग
रांची : शुक्रवार को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के झारखंड के राज्यपाल के रूप में तीन साल पूरे हो गए। उन्होंने 18 मई 2015 को इस पद की शपथ ली थी। झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बननेवाली द्रौपदी मुर्मू के तीन साल के कार्यकाल में कई उपलब्धियां रही हैं। राज्यपाल इस अवधि में जनजातीय मुद्दों को लेकर सदैव सजग रहीं। जनजातीय समाज की शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर भी लगातार मुखर होते हुए सरकार को आवश्यक निर्देश देती रहीं।
रांची : शुक्रवार को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के झारखंड के राज्यपाल के रूप में तीन साल पूरे हो गए। उन्होंने 18 मई 2015 को इस पद की शपथ ली थी। झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बननेवाली द्रौपदी मुर्मू के तीन साल के कार्यकाल में कई उपलब्धियां रही हैं। राज्यपाल इस अवधि में जनजातीय मुद्दों को लेकर सदैव सजग रहीं। जनजातीय समाज की शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर भी लगातार मुखर होते हुए सरकार को आवश्यक निर्देश देती रहीं।
राज्यपाल के प्रयास से 10 दिसंबर 2016 को विश्वविद्यालयों के लिए लोक अदालत लगाई गई, जिसमें विश्वविद्यालय शिक्षकों व कर्मियों को करोड़ों रुपये के मामले का निष्पादन हुआ। कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालयों के लगातार निरीक्षण के उनके प्रयास को भी सराहा जाता रहा है। उनके निर्देश पर तैयार चांसलर पोर्टल भी बड़ी उपलब्धि रही, जिससे एक ही पोर्टल पर सभी विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं ऑनलाइन फार्म भरने से लेकर अन्य प्रक्रियाएं पूरी करते हैं। ओडिशा में दो टर्म विधायक व राज्यमंत्री रहीं द्रौपदी मुर्मू पिछले वर्ष राष्ट्रपति पद के प्रमुख दावेदारों में शामिल थीं।
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विवादित विधेयकों को लौटाया :
राज्यपाल ने सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक को पहली बार तो राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया, लेकिन वहां से लौटने के बाद दूसरी बार विधेयक आने पर उसे वापस लौटा दिया। इस तरह उन्होंने एक विवादित मुद्दे का पटाक्षेप किया। उन्होंने अन्य कई त्रुटिपूर्ण विधेयकों को भी वापस लौटाया।
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पत्थलगड़ी की समस्या पर की पहल :
खूंटी में पत्थलगड़ी के दुरुपयोग को लेकर उत्पन्न विवाद के समाधान के लिए राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू खुद आगे आई। उन्होंने अनुसूचित क्षेत्रों के महत्वपूर्ण अंग माने जानेवाले पड़हा राजा, मानकी मुंडा, ग्राम प्रधान आदि से राजभवन में सीधी वार्ता की। इसमें उन्होंने न केवल पत्थलगड़ी के वर्तमान स्वरूप को रोकने का सख्त निर्देश दिया, बल्कि संविधान के दायरे में रहकर कार्य करने तथा बाहरी तत्वों के बहकावे से दूर रहने की नसीहत दी। सरकार को विकास कार्यो में सहयोग करने का आह्वान करते हुए चेताया भी कि यदि वे सरकारी योजनाओं का बहिष्कार करेंगे तो विकास से और भी दूर होते जाएंगे।
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जनजातीय कार्य विभाग के गठन पर पहल :
राज्यपाल ने इसी माह मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी को तलब कर अलग से जनजातीय कार्य मंत्रालय के गठन का निर्देश दिया। संविधान के अनुच्छेद 164 के प्रावधानों का हवाला देते हुए इस विभाग के गठन की सारी औपचारिकताएं पूरी करने को कहा। उन्होंने राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था व दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर भी चिंता प्रकट की। इससे पहले उन्होंने डीजीपी को तलब कर कानून व्यवस्था में सुधार लाने का सख्त निर्देश दिया था।
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इन मुद्दों पर नहीं बढ़ी बात :
- विश्वविद्यालयों में सत्र नियमित नहीं हुआ।
- कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों, एसोसिएट प्रोफेसरों व प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं हो सकी।
-जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना पर कोई विशेष काम नहीं हो पाया।
- जनजातीय समाज के लिए विशेष स्वास्थ्य पैकेज लागू नहीं हो पाया।
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