सिर्फ मनरेगा से नहीं होगा बेड़ा पार, रोजगार सृजन को करने होंगे अन्य उपाय
झारखंड में 8772828 लोग पंजीकृत हैं जबकि 489912 लोगों को काम मुहैया कराया जा रहा है। राजस्व संकट से जूझ रही सरकार को कोई और विकल्प नहीं दिखाई दे रहा है।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में ग्रामीणों और प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने के साथ-साथ कृषि कार्यों को गति देते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की तमाम उम्मीदें अब मनरेगा पर ही टिकी हुई हैं। दरअसल, राजस्व संकट से जूझ रही राज्य सरकार को मनरेगा के अलावा कोई और विकल्प ही दिखाई नहीं दे रहा है। कृषि विभाग ने भी अब मनरेगा की ओर देखना शुरू कर दिया है। कृषि विभाग की ओर से ग्रामीण विकास विभाग को इस संदर्भ में एक प्रस्ताव भी भेजा गया है।
फिलहाल इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है, लेकिन आने वाला समय काफी विकट है। गरीबी से जूझते राज्य में बेरोजगारी दर बहुत बढ़ गई है। आने वाले समय में गांवों में कई तरह की नई समस्याएं भी खड़ी हो सकती हैं। राज्य सरकार की सबसे बड़ी चिंता यही है। सरकार ने जो तीन नई योजनाएं शुरू की हैं, वह मनरेगा के ही भरोसे हैं। राशि के अभाव में ग्रामीण विकास और कृषि विभाग के लिए तय एजेंडों पर काम नहीं शुरू किया जा पा रहा है। 86,370 करोड़ के अनुमानित बजट में 13.22 फीसद राशि ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के लिए और 7.26 फीसद राशि का प्रावधान कृषि व उससे संबंधित क्षेत्रों के साथ-साथ सिंचाई योजनाओं के लिए किया गया था।
किसानों की ऋण माफी समेत ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कई योजनाओं की घोषणा बजट में सरकार ने की थी लेकिन राशि के अभाव में फिलहाल इन योजनाओं पर अमल मुश्किल दिखाई दे रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार की अथक भागीदारी से संचालित मनरेगा के माध्यम से ही ग्रामीण क्षेत्रों में तत्काल रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है। ग्रामीण विकास विभाग ने मनरेगा को ध्यान में रखकर ही तीन योजनाएं संचालित की हैं, इनमें से दो नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और बिरसा हरित ग्राम योजना पर अमल भी शुरू हो गया है।
इस बीच कृषि विभाग ने भी एक प्रस्ताव ग्रामीण विकास विभाग को भिजवाया है। इसमें भी फलदार वृक्ष मनरेगा योजना के तहत ही लगवाने का प्रस्ताव है। कृषि विभाग ने जिलावार अलग-अलग वृक्षों की उपयोगिता को आधार बनाते हुए प्रस्ताव भेजा है। तर्क दिया गया है कि मौजूदा वक्त में यह योजना किसानों को राहत दे सकती है। कृषि विभाग ने आगे सामान्य कृषि कार्यों को भी मनरेगा से जोडऩे की वकालत की है। हालांकि इस प्रस्ताव पर ग्रामीण विकास विभाग ने अब तक अपनी सहमति नहीं दी है।
सिर्फ मनरेगा से ही दूर नहीं होगी प्रवासी श्रमिकों की चुनौती
झारखंड में सिर्फ मनरेगा योजनाओं के माध्यम से ही प्रवासी कामगारों की रोजगार की समस्या हल नहीं होगी। झारखड में मनरेगा के तहत पूर्व से ही 50 लाख परिवारों के 87 लाख लोग रजिस्टर्ड हैं। इन्हें प्राथमिकता के तौर पर 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना है। वहीं, बाहर से लौटने वाले श्रमिक भी तेजी से मनरेगा के तहत निबंधित हो रहे हैं। राज्य सरकार की मानें तो करीब नौ लाख प्रवासी मजदूर विभिन्न राज्यों में फंसे हुए थे। इनमें से 6.5 लाख ने वापसी के लिए अपना निबंधन कराया था, जिनमें से तीन लाख से अधिक मजदूर वापस आ भी चुके हैं। जाहिर है मनरेगा सबको रोजगार देने की स्थिति में नहीं है। मुश्किल यह है कि इंडस्ट्री सेक्टर खुद को संकट के दौर खड़ा नहीं कर पा रहा है, जो रोजगार सृजन का एक बड़ा माध्यम है।
47 फीसद तक पहुंची झारखंड की बेरोजगारी दर
सीएमआइई की रिपोर्ट को मानें तो मार्च-अप्रैल के दौरान झारखंड में बेरोजगारी दर में कई गुना इजाफा हुआ है। यह 8.2 फीसद से बढ़कर 47 फीसद तक हो गई है। राज्य सरकार के स्तर पर यदि तत्काल रोजगार सृजन के उपाए नहीं किए गए तो ये आंकड़े बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं।
पीएम किसान और जन-धन खाता बने सहारा
लॉक डाउन की अवधि में केंद्र सरकार के स्तर से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों और जन-धन की महिला खाताधारकों के खाते में डाली गई राशि ग्रामीणों के लिए बड़ा सहारा बनी हैं। पीएम किसान के तहत कोरोना संकट की अवधि में करीब 15 लाख किसानों के खाते में 2000-2000 रुपये की राशि भेजी गई है। वहीं जन-धन खाता रखने वाली 74 लाख महिलाओं के खाते में 500-500 रुपये की दो माह की राशि भेज दी गई है। यह राशि तीन महीनों के लिए भेजी जानी है, अगली किश्त जून में जाएगी।
मनरेगा फैक्ट फाइल
- झारखंड में मनरेगा के तहत रजिस्टर्ड 5001270 परिवार।
- इन परिवारों के 8772828 लोग अब तक हुए हैं रजिस्टर्ड।
- इनमें 810033 लोगों द्वारा जॉब की मांग की गई है।
- फिलहाल 489912 लोगों को मुहैया कराया जा रहा काम।
- 5873016 मानव कार्य दिवस का इस वित्तीय वर्ष हुआ सृजन।