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हाई कोर्ट में बोली सरकार, नियोजन को लेकर राज्यपाल को नीति बनाने का अधिकार

Jharkhand. मामले की सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने हाई कोर्ट को जानकारी दी। प्रार्थी ने कहा कि सिर्फ संसद ही नियोजन के लिए नीति बना सकती है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 09:02 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 09:02 PM (IST)
हाई कोर्ट में बोली सरकार, नियोजन को लेकर राज्यपाल को नीति बनाने का अधिकार
हाई कोर्ट में बोली सरकार, नियोजन को लेकर राज्यपाल को नीति बनाने का अधिकार

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के लार्जर बेंच में नियोजन नीति को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को भी सुनवाई जारी रही। जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ में लगभग पूरे दिन चली सुनवाई में प्रार्थी की ओर से बहस पूरी कर ली गई है। राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने कहा कि अनुसूचित जिलों में नियोजन को लेकर नीति बनाना राज्यपाल का अधिकार है।

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इस दौरान सरकार की ओर से बहस अधूरी रही, जो मंगलवार को भी जारी रहेगी। बता दें कि सोनी कुमारी ने राज्य सरकार के नियोजन नीति को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। पूर्व में खंडपीठ ने नियोजन नीति पर रोक लगाते हुए इस मामले को लार्जर बेंच में भेज दिया था। सुनवाई के दौरान सोनी कुमारी की ओर से अधिवक्ता विज्ञान शाह व ललित कुमार सिंह ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने जन्म स्थान और स्थानीयता को देखते हुए नियोजन नीति बनाई है।

इसके तहत 13 जिलों में सौ फीसदी पद आरक्षित हो गए हैं, जो कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। नियोजन नीति संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 19 (1) (जी) के तहत आता है, जो संविधान की आधारभूत संरचना है। उनकी ओर से वर्ष 1973 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा केशवानंद भारती के मामले में दिए गए आदेश का हवाला दिया गया। इसमें कहा गया है किसी भी हाल में संविधान की आधारभूत संरचना में बदलाव नहीं किया जा सकता है।

शत-प्रतिशत आरक्षण किसी भी तरह से मान्य नहीं है, जो कि जन्मस्थान व स्थानीयता के आधार पर राज्य सरकार ने कर दिया है। नियोजन नीति के तहत 13 जिलों में राज्य के बाहरी लोगों को तो छोडि़ए, 11 जिलों के अभ्यर्थी भी आवेदन नहीं दे सकते हैं। नियोजन नीति संविधान के अनुच्छेद 16 (3) से प्रभावित है, उसमें कानून बनाने का अधिकार देश की संसद को है। राज्यपाल ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर नियोजन नीति बनाई है। कानूनन इसके लिए राज्य सरकार भी नियम नहीं बना सकती है।

कहा गया कि पूर्व में खंडपीठ ने भी अपने आदेश में कहा है कि सरकार की नियोजन नीति प्रथम दृष्टया असंवैधानिक प्रतीत होती है। इसलिए मामला लार्जर बेंच में भेजा गया है। प्रार्थी की ओर से बहस पूरी करने के बाद राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने बहस प्रारंभ की। उन्होंने अदालत को बताया कि संविधान के पांचवीं अनुसूची में ऐसा करने के लिए राज्यपाल को अधिकार प्राप्त है।

इसके तहत राज्यपाल को अनुसूचित जिलों में नियोजन व अन्य से संबंधित किसी भी प्रकार की नीति बनाने का अधिकार है। इस दौरान सरकार की ओर से बहस अधूरी रही। दरअसल, राज्य सरकार की ओर से नियोजन नीति को लेकर अधिसूचना जारी की गई है, इसमें 13 जिलों को अनुसूचित व 11 जिलों को गैर अनुसूचित घोषित किया है। इसके तहत राज्य में तृतीय एवं चतुर्थवर्गीय नियुक्तियां स्थानीय लोगों के लिए पूरी तरह से आरक्षित कर दी गई हैैं। यानी, अनुसूचित जिले में गैर अनुसूचित अभ्यर्थी आवेदन नहीं दे सकते हैं।

नियोजन नीति पर लगी है रोक

बता दें कि हाई स्कूल शिक्षकों के लिए 17,572 पदों पर नियुक्ति होनी थी। इसमें से करीब 12 हजार पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति हो गई है। शेष पद या तो रिक्त रह गए हैं, या फिर कई विषयों में नियुक्ति नहीं हो पाई है। अदालत के 18 सितंबर के आदेश के बाद से इन नियुक्तियों पर रोक लगी है। हालांकि, अदालत के आदेश से पूर्व हुईं नियुक्तियां प्रभावित नहीं होंगी।


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