Coronavirus Lockdown: खेतों को पानी, मजदूरों को मिलेगा रोजगार; 5 साल में जल समृद्धि पर खर्च होंगे 1200 करोड़
ग्रामीण विकास विभाग ने नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना का खाका कोरोना संकट के ऐसे दौर में बुना है जब बेरोजगारी चरम पर है मजदूरों का रेला झारखंड की ओर वापसी का रुख कर रहा है।
रांची, [आनंद मिश्र]। झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अर्थशास्त्र पानी के इर्द-गिर्द ही सिमटा है। पानी को रोक लिया तो पलायन भी रुक जाएगा। इसी अवधारणा को आधार बना ग्रामीण विकास विभाग ने नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना का खाका, कोरोना संकट के ऐसे दौर में बुना है जब बेरोजगारी चरम पर है, मजदूरों का रेला झारखंड की ओर वापसी का रुख कर रहा है।
जल संरक्षण से जुड़ी इस योजना को कार्यान्वित कर तत्काल रोजगार के साधन तो सृजित किए ही जाएंगे, भविष्य के लिए जल भी सहेजा जाएगा ताकि खेतों को पानी मिले। ऊपरी जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़े। ठहरे हुए नदी-नालों में जल का प्रवाह तेज हो। मुख्यमंत्री ने इस योजना को चार मई को लांच किया था, अब इस योजना पर अमल शुरू हो चुका है। 1200 करोड़ रुपये की इस पंचवर्षीय येाजना की सबसे बड़ी खासियत है कि कुल लागत का 90 प्रतिशत सिर्फ मजदूरी मद में भुगतान किया जाएगा। दस करोड़ मानव कार्य दिवस का सृजन तो होगा ही।
वर्षा जल को ऊपर ही रोका जाएगा, नालों का होगा जीर्णोद्धार
मनरेगा अंतर्गत संचालित योजना का विस्तृत ब्लू प्रिंट तैयार कर उस पर अमल की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। पहले साल पांच लाख हेक्टेयर भूमि का ट्रीटमेंट किया जाएगा। खेत का पानी खेत में रोकने के लिए प्रत्येक पंचायत के लिए औसतन 200 हेक्टेयर का टास्क तय किया गया है। झारखंड एग्रो क्लाइमेटिक जोन-7 में आता है, इसे आधार मानकर ही ब्लू प्रिंट का खाका इसी को आधार बना बुना गया है।
वर्षा जल को ऊपर ही रोका जाएगा। इसके लिए दो तरह की टांड़ भूमि की मेढ़बंदी की जाएगी। जहां 5-20 प्रतिशत का ढलान है, वहां ट्रेंच कम बंड बनाए जाएंगे। जहां, पांच प्रतिशत से कम ढालान है उन खेतों में फील्ड बंड बना पानी को बहने से रोका जाएगा। इतना ही नहीं नलों को पुनर्जीवित करने का कार्य भी दो हिस्सों में किया जाएगा। बोल्ड स्ट्रक्चर बनाए जाएंगे। सूखे व बहते हुए नाले से गाद निकालकर उन्हेंं पुनर्जीवित किया जाएगा। ताकि रुके हुए नाले रेंग सकें और रेंगने वाले नाले दौड़ सकें।
योजना का उद्देश्य
वर्षा जल के बहाव को कम करना। वर्षा जल का संरक्षण। जमीन में नमी की मात्रा को बढ़ाना। टांड़ खेत के पानी को खेत में रोकना। ऊपरी जमीन का संवर्धन एवं उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाना। इसके लिए जल संरक्षण की विभिन्न संरचनाओं का निर्माण करना।
मौजूदा परिस्थिति के देखते हुए ऐसी योजनाओं को लिया जाना था, जिससे तत्काल मजदूरों को काम मिल सके। इस योजना से सिर्फ मजदूरों को काम ही नहीं मिलेगा, राज्य के लिए परिसंपत्तियों का सृजन भी होगा। 1200 करोड़ की इस योजना के तहत 90 प्रतिशत राशि सिर्फ श्रम संसाधनों में व्यय होगी। अविनाश कुमार, प्रधान सचिव ग्रामीण विकास विभाग
क्या है पांच सूत्री ब्लू प्रिंट
- ऊपरी जमीन की मेढ़बंदी। ट्रेंच कम बंड तकनीकी अपनाकार, ऐसे स्थानों पर जहां ढलान 5-20 प्रतिशत के बीच है।
- खेत की की मेढ़बंदी। ऐसे स्थानों पर जहां ढलान 5 प्रतिशत से कम हो।
- नाला पुनर्जीवन कार्य (एलबीएस) नाले के ऊपरी भाग में।
- नाला पुनर्जीवन कार्य (गाद की निकासी) नाला के निचले भाग में।
- सोख्ता गड्ढा का निर्माण। मनरेगा और 15 वें वित्त आयोग की राशि से।