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सम्राट अशोक ने बनवाया था दिउड़ी मंदिर ; यहां विराजती हैं सोलहभुजी मां, पाहन-पंडित दोनों कराते हैं पूजा

आस्था और विश्वास का यह अद्भुत केंद्र है। लाखों भक्तों के अलावा क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी भी देउड़ी मां के परम भक्त हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 13 Oct 2018 03:56 PM (IST)Updated: Sat, 13 Oct 2018 03:56 PM (IST)
सम्राट अशोक ने बनवाया था दिउड़ी मंदिर ; यहां विराजती हैं सोलहभुजी मां, पाहन-पंडित दोनों कराते हैं पूजा
सम्राट अशोक ने बनवाया था दिउड़ी मंदिर ; यहां विराजती हैं सोलहभुजी मां, पाहन-पंडित दोनों कराते हैं पूजा

रांची, संजय कृष्ण। रांची से सत्तर किमी दूर और तमाड़ प्रखंड से तीन किमी दूर रांची-जमशेदुपर मार्ग पर दिउड़ी गांव में सोलहभुजी मां दुर्गा विराजती हैं। आस्था और विश्वास का यह अद्भुत केंद्र है। मां का यह मंदिर भी अति प्राचीन है। लाखों भक्तों के अलावा क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी भी मां के परम भक्त हैं।

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इधर एक दशक में मां के भक्तों में काफी इजाफा हुआ है। अब बहुत दूर-दूर भक्त आते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर को भी अब भव्य रूप दिया जा रहा है। मंदिर की खास बात यह है कि यहां पर आदिवासी पाहन और ब्राह्मण दोनों पुजारी हैं। यह कब से चला आ आ रहा है, कहना मुश्किल है। मां का दरवाजा आदिवासी-गैरआदिवासी दोनों के लिए समान रूप से खुला है। दशहरा में यहां बलि देने की प्रथा है।

निर्माण की अलग-अलग कथाएं : मंदिर का निर्माण किसने कराया, इस पर कोई एक राय नहीं है। कहा जाता है कि सिंहभूम के केरा के राजा अपने दुश्मनों से पराजित होकर दिउड़ी पहुंचे। वह अपने साथ देवी की प्रतिमा भी लेकर आए और उसे वेणु वन में जमीन के अंदर छिपा दिया था। कुछ दिनों बाद मंदिर का निर्माण कर प्रतिमा स्थापित की गई। एक दूसरी कथा ओडिशा से जुड़ी है।

ओडिशा के चमरू पंडा साल में दो बार तमाड़ के राजा को तसर बेचने आते थे। इसी क्रम में राजा के यहां पूजा-पाठ करा दिया करते। राजा ने उनसे यहीं बसने का आग्रह किया और वे यहीं बस गए। वे जंगल में तपस्या भी करने लगे। एक दिन तपस्या करते समय लगा कि मां उनसे मिलना चाहती हैं। ये बातें राजा को बता दीं। राजा ने जंगल साफ  करवाना शुरू किया।

सफाई के दौरान काला रंग का पत्थर दिखा। शाम हो गया था। मजदूर थक गए थे। वे लौट आए। दूसरे दिन देखा कि वहां एक मंदिर खड़ा है। कुछ लोग मानते हैं कि कलिंग अभियान के दौरान महान सम्राट अशोक ने इसका निर्माण करवाया। कथाएं और भी हैं। एक कथा असुरों से जुड़ी है। असुर यहां की प्राचीन जाति है, जो तकनीकी दक्षता में आगे थी। लोहा गलाने की पद्धति इसके पास थी। राज्य में मुंडाओं के आगमन से बहुत पहले से असुर रह रहे थे। इनका संबंध द्रविड़ कुल से है। उन्होंने ही शायद मां के मंदिर का निर्माण किया हो।

साढ़े तीन फीट ऊंची है मां की प्रतिमा : गर्भगृह में मां की 16 भुजी प्रतिमा स्थापित है। मां की प्रतिमा साढ़े तीन फीट ऊंची है जो काले रंग के प्रस्तर खंड पर उत्कीर्ण है। दुर्गा के बाएंचार हाथों में धनुष, ढाल, परम एवं फूल है लेकिन शेष चार हाथों में आयुध क्षतिग्रस्त रहने के कारण स्पष्ट नहीं है। देवी के दाहिने हाथों में तलवार, तीर, डमरू, गदा, शंख, त्रिशूल आदि हैं। उनका बाया पैर मुड़ा हुआ है और दाहिना पैर कमल पर है। वह बाजूबंद, कमरधनी, बाली आदि आभूषणों से सज्जित हैं।


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