करोड़ों के मालिक मां-बेटे को बनाया पैसे-पैसे का मोहताज, PMO को ठेंगा दिखा रहे झारखंड के अधिकारी
धनबाद नगर निगम के आयुक्त न सिर्फ नगर विकास विभाग के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक से निर्देश होने की जानकारी के बावजूद रिपोर्ट नहीं सौंप रहे हैं।
रांची, [आशीष झा]। प्रदेश में अधिकारी किस तरह से मनमानी कर रहे हैं, उसका जीता-जागता उदाहरण देखिए। धनबाद नगर निगम के आयुक्त न सिर्फ नगर विकास विभाग के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं, बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक से निर्देश होने की जानकारी के बावजूद रिपोर्ट नहीं सौंप रहे हैं। मामला बिल्डरों की मनमानी का है।
अपनी जमीन गंवाकर फ्लैट में रहने के लिए तैयार भू-स्वामी सौभिक पांजा के अनुसार उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि अपार्टमेंंट के लिए पास हुए नक्शे का उल्लंघन कर तैयार भवन में फ्लैट लेने को वे तैयार नहीं हुए। साथ ही, उन्होंने नक्शे में विचलन की शिकायत भी कर दी। इसी कारण अभी तक उन्हें फ्लैट, दुकान और पार्किंग का वह हिस्सा नहीं मिल सका है, जो एकरारनामा में अंकित है।
उन्होंने तमाम जगहों से शिकायत की अनसुनी के बाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय का दरवाजा खटखटाया और वहां से लगातार रिपोर्ट तलब होने के बावजूद कोई जानकारी नहीं दी जा रही। सौभिक के पिता जयदेव पांजा ने धनबाद के हीरापुर इलाके में अपनी जमीन बिल्डरों को इस शर्त पर दे दी थी कि उन्हें निर्मित भवन के कुल क्षेत्रफल का तीस फीसद हिस्सा मिलेगा। हिस्सा तो छोडि़ए, करोड़ों की जमीन के बावजूद परिवार एक कमरे के फ्लैट में रहने को मजबूर है।
जयदेव पांजा ने इसकी शिकायत स्थानीय स्तर पर की और नक्शे में विचलन का भी आरोप लगाया। उनके आरोप पर कार्रवाई नहीं हुई और भवन बनकर तैयार हो गया। इस बीच, पिता-पुत्र ने प्रधानमंत्री कार्यालय को चार बार पूरे मामले की जानकारी देते हुए शिकायत भी की। इसमें से तीन बार शिकायतों के आधार पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने रिपोर्ट भी मांगी, लेकिन कोई रिपोर्ट नहीं दी गई। आर्थिक तंगी और बीमारी से जयदेव पांजा की मौत हो गई। उनकी पत्नी अब अपने बेटे के साथ रहती हैं। मां-बेटे को न्याय का इंतजार करते-करते 11 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
शिकायत पर हुई कार्रवाई की रिपोर्ट नहीं दे रहे नगर आयुक्त
नगर विकास विभाग के सूत्रों के अनुसार धनबाद नगर आयुक्त से तीन बार रिपोर्ट तलब की गई है, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिल रहा है। हो सकता है कि नगर निगम और बिल्डर की कोई गलती नहीं हो, लेकिन जिस तरह से रिपोर्ट भेजने में देरी की जा रही है, उससे शिकायतकर्ता को ही बल मिलता है। नगर विकास विभाग के अधिकारी भी इस मामले में कहीं ना कहीं मानकर चल रहे हैं कि नगर निगम से कार्रवाई करने में गड़बड़ी हुई है।