Jharkhand News: हेमंत सरकार को राज्यपाल रमेश बैस का झटका, उत्पाद संशोधन विधेयक लौटाया
Jharkhand Excise Amendment Bill झारखंड राज्यपाल ने कहा अन्य राज्यों में लागू प्रविधानों की समीक्षा कर निर्णय ले राज्य सरकार। राजस्व पर्षद से भी ले परामर्श। विधेयक के प्रविधानों में करे संशोधन। उत्पाद विभाग और बेवरेज कारपोरेशन के अधिकारियों की तय हो जवाबदेही।
रांची, राज्य ब्यूरो। राज्यपाल रमेश बैस ने झारखंड विधानसभा से पारित झारखंड उत्पाद (संशोधन) विधेयक-2022 लौटाते हुए राज्य सरकार को उसके प्रविधानों में संशोधन को लेकर पुनर्विचार करने को कहा है। उन्होंने विधेयक में सुधार को लेकर कई परामर्श भी राज्य सरकार को दिए हैं। साथ ही अन्य राज्यों में लागू इससे संबंधित प्रविधानों की समीक्षा करने तथा राजस्व पर्षद से मंतव्य प्राप्त कर विधेयक के प्रविधानों को संशोधित करने पर राज्य सरकार को विचार करने को कहा है।
राज्यपाल ने विधेयक के आठ बिंदुओं पर राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट करते हुए उनमें संशोधन का परामर्श देते हुए राज्य सरकार को उनपर पुनर्विचार करने को कहा है। उनके अनुसार, विधेयक की धारा सात की उपधारा तीन में उड़नदस्ता के गठन का प्रविधान किया गया है, जबकि पूर्व से ही उत्पाद विभाग को आवश्यकतानुसार पदाधिकारियों के उड़नदस्ता, टास्क फोर्स, मोबाइल फोर्स आदि गठित करने की पूरी शक्ति प्राप्त है। ऐसे में इस प्रविधान को जोड़े जाने का कोई औचित्य नहीं है।
राज्यपाल ने यह भी कहा है कि विधेयक की धारा-52 में नया प्रविधान जोड़ा गया है, जिसमें सजा के साथ मुआवजा भुगतान की बात कही गई है। मुआवजा का भुगतान सजा से अलग व्यवस्था है। उचित होगा कि सजा एवं मुआवजा के निर्धारण हेतु अलग-अलग धाराओं में प्रविधान किया जाए। उन्होंने कहा कि विधेयक की धारा-55 (ए) में किए गए सजा के प्रावधान धारा-47 के प्रविधानों के अनुरूप रखा जाना उचित होगा। नई धाराएं 55 (डी) एवं 55 (ई) के प्रविधानों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-106 के आलोक में समीक्षा किया जाना अपेक्षित है।
अनियमितता की जिम्मेदारी एजेंसी ले न कि कर्मचारी
राज्यपाल ने कहा है कि विधानसभा से पारित विधेयक में राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन निगम द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामलों में बेवरेज कारपोरेशन द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं कर्मचारियों को असंवैधानिक कृत्यों के लिए उत्तरदायी माना गया है। वर्तमान में राज्य सरकार के लिए निर्धारित शराब की बिक्री के दुकान कारपोरेशन के माध्यम से चयनित एजेंसियों द्वारा संचालित किए जाते हैं। प्रस्तावित प्रविधान से किसी भी प्रकार की अनियमितता पाए जाने पर शराब दुकानों में कार्यरत एजेंसी के कर्मचारी जवाबदेह माने जाएंगे, जबकि इसकी पूरी जवाबदेही संबंधित एजेंसी की होनी चाहिए। साथ ही निगम के स्तर से नियमित रूप से इसकी मानीटरिंग की जानी चाहिए। नए प्रविधान से निगम के पदाधिकारी तथा एजेंसी के उच्च पदाधिकारी अपने आपराधिक/ असंवैधानिक कृत्यों से बच जाएंगे।
राजस्व पर्षद से परामर्श नहीं लेने पर उठाया सवाल
राज्यपाल ने विधेयक पर राजस्व पर्षद से परामर्श नहीं लेने पर भी सवाल उठाया है। उनके अनुसार, उत्पाद नीति एवं अधिनियम के प्रविधानों के संबंध में राजस्व पर्षद के स्तर से समीक्षा की जाती है, क्योंकि राजस्व पर्षद को उत्पाद अधिनियम के अंतर्गत शक्तियां प्राप्त हैं। प्रस्तावित संशोधन विधेयक के मामलों में लगता है कि इसपर राजस्व पर्षद का कोई परामर्श नहीं लिया गया।
छह माह से उत्पाद के राजस्व में आ रही लगातार कमी
राज्यपाल ने कहा कि राज्य में नई उत्पाद नीति लागू किए जाने के संबंध में विभाग द्वारा उत्पाद राजस्व में बढ़ोत्तरी के दावे किए गए थे लेकिन प्रथम छह माह में उत्पाद राजस्व में लगातार कमी आ रही है। उत्पाद अधिनियम में विभागीय तथा निगम के पदाधिकारियों की सीधी जवाबदेही कम होने से अनुश्रवण और कमजोर होगा तथा अवैधानिक कृत्यों को बढ़ावा मिलने के साथ राजस्व में भी और कमी आएगी।
इन प्रविधानों पर भी कहा सरकार करे पुनर्विचार
- - वर्तमान में बेवरेज कारपोरेशन ही लाइसेंस देने का कार्य कर रहा है। धारा-57 में अनुज्ञप्तिधारी अथवा उनके सेवक के कृत्यों के लिए दंड का प्रविधान किया गया है। इन प्रविधानों में निगम के पदाधिकारियों को अलग करते हुए मात्र अधिकृत एजेंसी के स्थानीय कर्मचारियों के लिए असंवैधानिक कृत्यों के लिए उत्तरदायी माना गया है। इस प्रकार के वैधानिक संरक्षण से कारपोरेशन की जवाबदेही कम हो जाती है।
- - धारा-79 (चार) में 20 लीटर तक शराब के संग्रहण करने की स्थिति में स्वयं के बंध-पत्र पर आरोपित को अधिकारी के विवेक के अनुसार मुक्त किया जा सकता है। स्पष्ट है कि इस प्रविधान से यह अर्थ निकल सकता है कि 20 लीटर तक शराब कोई भी व्यक्ति अपने पास संग्रहित कर सकता है, जो उचित प्रतीत नहीं होता है।
दोबारा विधानसभा से पारित कराना होगा विधेयक
राज्य सरकार विधेयक के प्रविधानों पर पुनर्विचार कर संशोधन करती है तो विधेयक को विधानसभा से दोबारा पारित कराना होगा। राज्यपाल द्वारा इससे पूर्व भी कई विधेयकों को संशोधन के लिए लौटाया गया, जिन्हें राज्य सरकार को विधानसभा से दोबारा पारित कराना पड़ा था।