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IAS पूजा सिंघल के इस विभूति का हाल देखिए... गैरज में जगुआर, लेकिन स्कूटर पर सवार; क्‍योंकि हर विभूति नल्ला नहीं होता

Jharkhand News बहुत देर तक टालमटोल करने के बाद आखिरकार साहिबगंज के जिला खनन पदाधिकारी विभूति कुमार प्रवर्तन निदेशालय ईडी की दरबार में हाजिर हो ही गए। घर में जगुआर इंडीवर लेकिन ईडी दफ्तर पहुंचे स्‍कूटर से। उनकी हाजिरी बजाने का यह अंदाज वाकई निराला है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 24 May 2022 04:44 AM (IST)Updated: Tue, 24 May 2022 06:48 AM (IST)
IAS पूजा सिंघल के इस विभूति का हाल देखिए... गैरज में जगुआर, लेकिन स्कूटर पर सवार; क्‍योंकि हर विभूति नल्ला नहीं होता
Jharkhand News: पूजा सिंघल के सहयोगी विभूति कुमार ईडी की दरबार में हाजिर हो ही गए।

रांची, [जागरण स्‍पेशल]। Jharkhand News Jharkhand News बहुत देर तक टालमटोल करने के बाद आखिरकार साहिबगंज के जिला खनन पदाधिकारी विभूति कुमार सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय, ईडी की दरबार में हाजिर हो ही गए। वे ईडी दफ्तर खटारा टाइप स्‍कूटर से पहुंचे। उनकी हाजिरी बजाने का यह अंदाज वाकई सबसे जुदा और निराला रहा। इसके बाद नेता-अफसर के गलियारे में तरह-तरह की बातें होने लगीं। भ्रष्‍टाचार के संगीन आरोपों में गिरफ्तार की गई आइएएस पूजा सिंघल के ऐसे मालदार सहयोगियों का हाल बताते राज्‍य ब्‍यूरो के सहयोगी आशीष झा के साथ पढ़ें कही-अनकही...

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स से समस्या

कभी सर, कभी सरकार तो कभी सत्ता, कहीं समस्या तो कहीं सजा। स की महिमा अनमोल है। इस अक्षर से तमाम ऐसे शब्द बनकर उभर रहे हैं जिसकी चर्चा पूरे देश में है। सरकार, संकट, समस्या, सजा जैसे तमाम शब्दों के बीच इस अक्षर की महिमा सम्माननीय लोगों को अपने लपेटे में लेने लगी है। सुना है कि स अक्षर से शुरू होेनेवाले कुछ बड़े अधिकारियों को भी सरकार के संकट का सूत्रधार मानकर जांच कराई जा रही है। महज इत्तेफाक है कि ये सभी अधिकारी कभी ना कभी घर बनाने के धंधे में सबके हाकिम रहे हैं। झारखंड में नेतानगरी के लिए बनने वाले सबसे बड़े आवास के निर्माण में इनकी कहीं ना कहीं भूमिका रही है। प्रशासनिक स्वीकृति प्रदान करने से लेकर काम पूरा कराने तक में। अब सजा का वक्त आया है। पिछले सात-आठ वर्ष में इसी स अक्षर से जिनके नाम हैं, आखिर उन्होंने ही तो यहां की योजनाओं को स्वर्णिम ऊंचाई दी है।

गैरज में जगुआर, स्कूटर पर सवार

हर विभूति नल्ला नहीं होता है। कुछ कामकाजी विभूति भी होते हैं, जो इतना काम करते हैं कि उन्हें ईडी के आफिस में हाजिरी बजानी पड़ती है। अपने गंगा तीर वाले विभूति ऐसे ही हैं। चार सालों के कामकाज का बही-खाते में अपनी भूमिका को जस्टीफाई कर रहे हैं। अंदाज निराला है इनका, कईयों को तार दिया। दाल में नमक की सरकारी परंपरा का पालन भी किया। अब इतने से घर में जगुआर, इंडीवर पहुंच गई तो इनका क्या दोष। लेकिन हैं वसूलों के पक्के, न जमीन छोड़ी है और न स्कूटर। जगुआर गैराज में छोड़, पुरानी स्कूटर में हाजिरी बजाने पहुंचे। मार्केटिंग का यह अंदाज निराला है, जब सारी दुनिया दिखावे में जुटी है तब ये सादगी की मिसाल पेश कर रहे हैं। हुजूर के चर्चे हैं हजार, तमाम नल्ले विभूतियों के लिए यह हैं मिसाल।

पोखरे में माछ...

अंग्रेजों के जमाने की पार्टी में कुछ अंग्रेजों के जमाने के लोग बांहें फड़काते नजर आ रहे हैं। आखिर बड़े घर का दरवाजा खुलता दिखने के बाद उन्हें अपना हक जो दिखने लगा है। अपर हाउस में सीनियर का पहला हक जताने के बाद इन नेताओं ने गोटियों को सही जगह पर बैठाना भी शुरू कर दिया है। शतरंज के खेल में अगर गोटियां सही जगह सेट हो गईं तो शह-मात अपने हाथ आने में देर नहीं लगती। झारखंड के नेताओं के सामने सबसे बड़ी समस्या ऊपर से टपकने वाले सूरमा ही रहे हैं। अभी ऐसे सूरमाओं की पूरी टीम एकमात्र सीट की उम्मीदों को ऊपर से ही झटक लेना चाहती है। हालांकि अभी यह भी तय नहीं हुआ है कि अपर हाउस में किसकी दावेदारी होगी। जूनियर पार्टनर के सीनियर एक बार फिर हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन वही कहावत चरितार्थ ना हो जाए - पोखरे में माछ और नौ-नौ कुट्टी बखरा।

सब धन बाइस पसेरी

सभी पढ़े-लिखे लोगों को यह भाषा समझ में नहीं आती आखिर सब धन बाइस पसेरी कैसे हो सकता है। और ज्यादा पढ़-लिख लिए तो अंतरराष्ट्रीय मानकों पर ही बात करते हैं। यही हाल अपने एक जिला खनिज पदाधिकारी का है। तौल का अंतरराष्ट्रीय मानक किलो मानकर उन्होंने तमाम डिजिटल दस्तावेज इसी मानक पर तैयार किए हैं और इतनी सरल भाषा में कि ईडी को समझते देर नहीं लगी। पत्थरों के डिस्पैच पर अपनी रिपोर्ट में 20 किलो-50 किलो जैसे शब्दों का प्रयोग करते रहे हैं। कुछ राजनेता इसे गलत मानते हैं लेकिन इसमें कुछ गलत नहीं है। आखिर हजार टन को किलो लिखकर कोई बड़ा अपराध तो किया नहीं गया है। कमाई को आंकड़ा भी लाख करोड़ में नहीं देकर पैसा-रुपये में पेश कर दिए हैं। ईडी का माथा भी घूम गया है। अब इलाज साहेबगंज में ही संभव है।


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