Hemant Soren: हेमंत सोरेन खनन लीज केस, हाई कोर्ट की सुनवाई पर रोक, सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित
Hemant Soren News झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के खनन लीज मामले में बहस पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। यही नहीं झारखंड हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी है। अब नजर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी है।
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand CM Hemant Soren Mining Lease Case मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लीज आवंटित करने और उनके भाई विधायक बसंत सोरेन के करीबियों द्वारा शेल कंपनी में निवेश करने के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस सुधांशु धुलिया की पीठ ने हाई कोर्ट में इससे संबंधित जनहित याचिका पर होने वाली सुनवाई पर रोक लगा दी। सभी पक्षों की ओर से बहस पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
झारखंड हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार और सीएम हेमंत सोरेन सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी, जिसमें हाई कोर्ट दोनों याचिकाओं को योग्य मानते हुए मेरिट पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने लीज आवंटन, शेल कंपनी में निवेश और खूंटी में मनरेगा घोटाले को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगा दी है।
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि लीज और शेल कंपनी को लेकर याचिका दाखिल करने वाले शिवशंकर शर्मा कई तथ्यों को छुपाया है। याचिका दाखिल करने में हाई कोर्ट के नियमों का पालन नहीं किया गया है। जनहित याचिका दाखिल करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि प्रार्थी को अपने बारे में पूरी जानकारी देनी होगी और कोई तथ्य नहीं छिपाना। प्रार्थी ने अपने बारे में कोई जानकारी साझा नहीं की है। याचिका में जो भी आरोप लगाए गए हैं उसका आधार क्या है। इससे पहले उन्होंने किस फोरम में शिकायत की है। वहां से क्या जवाब दिया गया, इसकी भी जानकारी नहीं दी गई है।
इस मामले में अचानक ईडी सामने आई और हाई कोर्ट में सीलबंद दस्तावेज पेश कर दिया। इस दौरान सीएम हेमंत सोरेन की ओर से वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि इस मामले में सीएम पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। प्रथम दृष्टया हाई कोर्ट को सभी दस्तावेजों पर संतुष्ट होना चाहिए था।
प्रार्थी के वकील पर भयादोहन का मामला
मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि प्रार्थी और उनके वकील राजीव कुमार पर भयादोहन का मामला दर्ज है। कोलकाता पुलिस ने उन्हें 50 लाख रुपये के साथ गिरफ्तार किया है। सिब्बल ने झारखंड हाई कोर्ट के एक पूर्व जज के उस कथन का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि झारखंड में कुछ लोग गलत मंशा से जनहित याचिका दाखिल करते हैं। इस कारण यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। झारखंड हाई कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है।
ईडी का दावा, प्रार्थी के आरोपों की जांच की गई
ईडी की ओर से एडिशनल सालिसीटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि प्रार्थी के आरोपों की जांच की गई। जिसमें कई तथ्य सामने आए हैं। ईडी की ओर से हाई कोर्ट में सीलबंद रिपोर्ट दाखिल की गई है। अगर उक्त रिपोर्ट को देखा जाए, तो इस केस से इनका लिंक स्पष्ट हो जाएगा। अपराध होने पर कोई भी इसकी शिकायत कर सकता है।
इस पर अदालत ने कहा कि ईडी को किसी भी मामले की जांच के लिए स्वतंत्र है। उसे किसी याचिका के सहारे की जरूरत नहीं है।
ईडी ने कहा कि जांच के दौरान पूजा सिंघल का मामला सामने आया और इस मामले में 16 प्राथमिकी दर्ज हैं। इसकी जांच की जा रही है। प्रार्थी के आरोपों के लिंक भी इससे मिल रहे हैं। अदालत ने कहा कि क्या ईडी ने जांच रिपोर्ट पुलिस या राज्य सरकार से साथ साझा किया है। इसपर कहा गया कि जांच रिपोर्ट साझा करने पर उससे छेड़छाड़ होने की संभावना है।
याचिका दाखिल करने में सिर्फ नियमों का पालन नहीं करने के आधार पर इसे खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसले भी दिए हैं। ईडी सीलबंद दस्तावेज अदालत को पेश कर सकती है। इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया।अदालत ने प्रार्थी शिव शंकर शर्मा से पूछा कि उन्हें इस मामले में इतनी जानकारी कैसे मिली। इसका स्रोत क्या है और क्या करते हैं। उनकी ओर कहा गया कि वह आरटीआइ कार्यकर्ता हैं, इसलिए उन्हें इसकी जानकारी है। अब तक वे 15 जनहित याचिका दाखिल कर चुके हैं। उनकी ओर से जानमाल का खतरा होने की बात कही गई। इस पर अदालत ने सरकार के अधिवक्ता को इसके बारे में विचार करने का निर्देश दिया।