कुछ ऐसा कर कमाल कि... मोहब्बत के नशे में इन महिला IPS अधिकारियों ने बदल दिए कैडर
झारखंड की ब्यूरोक्रेसी में भी कुछ ऐसा ही सीन चल रहा है। नौकरी लगी नजरें मिलीं और फिर दिल धड़का। धड़कनें ऐसी बढ़ीं कि दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड की राजनीति हो या ब्यूरोक्रेसी। दोनों की लीला अपरंपार है। यहां एक से बढ़कर एक नेता हैं, जो अपने फन के माहिर माने जाते हैं। वहीं नौकरशाही में भी मंजे हुए धाकड़ों की पूरी जमात है। जब मर्जी सिस्टम को अपने हिसाब से चलाने में उन्हें महारत हासिल है। झारखंड पुलिस की गैलरी में तो एक से एक जांबाज भरे पड़े हैं। तमाम आरोपों के बाद भी उनकी वर्दी पर कभी दाग नहीं लगता। इन अफसरों की खासियत यह है कि सरकार बदलते ही इनका मिजाज बदलते जरा भी देर नहीं लगती। यहां पढ़ें राज्य ब्यूरो के वरीय संवाददाता दिलीप कुमार के साथ डायल-100...
प्यार जीता, कैडर का झंझट छूटा
मुहब्बत का नशा जब काम पर हावी हो जाए तो आदमी बड़ा कदम उठाने से नहीं हिचकता। झारखंड की ब्यूरोक्रेसी में भी कुछ ऐसा ही सीन चल रहा है। बात उन दो महिला आइपीएस अधिकारियों की, जिन्होंने अपने प्यार की खातिर अपने कैडर बदल लिए। नौकरी लगी, नजरें मिलीं और फिर दिल धड़का। धड़कनें ऐसी बढ़ीं कि दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। तब भूल बैठे थे कि दोनों का कैडर अलग-अलग है। शादी भी कर ली। अब मुसीबत यह हो गई कि शादीशुदा जिंदगी में कैडर का अलग होना सालने लगा। मिलना दूभर होने लगा। एक को बंगाल से तो दूसरे को महाराष्ट्र से झारखंड आना मुश्किल होने लगा। इनका काम भी प्रभावित होने लगा। फिर क्या था, अपने पति के लिए दोनों महिला आइपीएस अधिकारियों ने अपना कैडर ही बदलवा लिया। वर्तमान में एक सशस्त्र दस्ता को कमांड कर रही हैं तो दूसरी अधिकारी ट्रेनिंग स्कूल चला रही हैं। अब दोनों बेहद खुश हैं। आखिर कैडर का झंझट जो खत्म हुआ। कैडर बदलने वाले ऐसे अफसरों में एसपी प्रियंका मीणा और एसपी शिवानी तिवारी शुमार हैं।
आइपीएस प्रियंका मीणा महाराष्ट्र कैडर से झारखंड आई हैं। अभी अनुसंधान प्रशिक्षण विद्यालय की एसपी हैं। इनके पति सूरज कुमार खूंटी के डीसी हैं। आइपीएस शिवानी तिवारी पश्चिम बंगाल कैडर की हैं। इनके पति प्रशांत आनंद लातेहार के एसपी हैं। शिवानी जैप वन की कमांडेंट हैं।
प्रभार में खाकी
लाठी-डंडा, गोली-बंदूक का बोझ ढोने वाली खाकी अब नया बोझ झेल रही है। अपराध-नक्सल के सामने सीना कैसे ताने, यहां तो ऊपर से ही इतना बोझ है कि पेट भीतर चला गया है और भारी बोझ से कमर झुक चला है। कहने को खाकी के बॉस हैं लेकिन काम कुली का कर रहे हैं। प्रभार का बस्ता उठाते-उठाते अब हांफने लगे हैं। स्थिति पहले से ही खराब हो रही थी। कुछ ने तो पहले ही स्थिति को भांपते हुए दिल्ली का टिकट तक कटवा लिया था। वे अब जाने ही वाले हैं। उनके जाने के बाद अब उनका भी बोझ अब यहीं के बॉस उठाएंगे। मुखिया जी की हालत भी उस फिल्मी अंग्रेजों के जमाने वाले जेलर की तरह हो गई है, जिसके न दाएं कोई है, न बाएं। खाकी वाले विभाग में अब तो अकेला चना ही भाड़ फोड़ेगा, यही कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।
बैर कराती मधुशाला
मंदिर-मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला। लेकिन, यह क्या, यहां तो मधुशाला बैरी हो गई है। सरकारी खजाना भरने के चक्कर में संस्कारहीन होने लगी है। होली के रंगों को चटख बनाने के लिए खाकी वालों पर कंटेनर बहाने वाले अब तो हालचाल भी नहीं पूछते। इस होली पर यह दर्द उसी खाकी का ही था, जो कंटेनर की आस लिए बैठा था, लेकिन उसे ड्रापर से ही काम चलाना पड़ गया। जिससे आस लगाए बैठा था, वह तो फटेहाल होकर लुटे-पिटे हालत में वहां पहुंच गया था। कह रहा था साहब बचा लीजिए, खजाना भरने वाले अब तमंचा लेकर खोज रहे हैं। जो बचा है, उसे भी लूट लेंगे। सोचा था, फलेंगे-फूलेंगे तो उनको भी मधु चटाएंगे, लेकिन यहां तो अपनी ही जान की पड़ी है। अकड़े तो रोटी भी नसीब नहीं होगी। अब तो यही लगता है कि मधुशाला मेल नहीं, बैर कराकर ही मानेगी।
फंडिंग जांच का टेरर
फंडिंग जांच का टेरर खाकी वाले कुछ साहबों की नींद हराम कर चुका है। सोते-जागते उन्हें भय सताने लगा है कि कहीं उनकी भी पोल न खुल जाए। जांच कर रही दिल्ली की टीम कहीं उनकी गर्दन भी न दबोच बैठे। दिल बैठा जा रहा है। अब तो सोने के लिए नींद की दवा तक लेनी पड़ रही है। टेरर के फंड से जब अपना खजाना भर रहा था, तब तो ठीक था, अब जब हिसाब देने की बारी आई है तो डर के मारे जान निकली जा रही है। जिसके भरोसे पूरा खेल हो रहा था, वे तो एक-एक कर लाल घर पहुंचते जा रहे हैं, लेकिन जाने से पहले साहब की पोल-पट्टी भी खोल रहे हैं कि हमाम में सिर्फ वे ही नंगे नहीं, खाकी वाले बड़े साहब भी हैं। उनके संरक्षण के बगैर न तो टेरर पैदा होता, न फंड ही मिलता।