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वित्त की हालत पतली, इस बार भी 15-20 हजार करोड़ कम राजस्व का अनुमान

पिछले वर्ष बजट से लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की कम आमदनी हुई थी। केंद्र से जीएसटी से हिस्सा कम मिलना और खान विभाग का लक्ष्य से पीछे रहना बड़ा कारण है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 31 Dec 2019 12:08 PM (IST)Updated: Tue, 31 Dec 2019 02:53 PM (IST)
वित्त की हालत पतली, इस बार भी 15-20 हजार करोड़ कम राजस्व का अनुमान
वित्त की हालत पतली, इस बार भी 15-20 हजार करोड़ कम राजस्व का अनुमान

रांची, राज्य ब्यूरो। प्रदेश में वित्त विभाग की हालत पतली है। एक बार फिर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि बजट से 15-20 हजार करोड़ रुपये कम राजस्व प्राप्त होगा। अगर ऐसा हुआ तो योजनाओं को पूरा करने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों से सरकार को कर्ज लेने की आवश्यकता पड़ सकती है। पिछले वित्तीय वर्ष में भी सरकार ने 80 हजार करोड़ का बजट पास किया था जबकि कुल उगाही 65 हजार करोड़ रुपये के आसपास रही थी। ऐसे में शुरू की गई योजनाओं को पूरा करने के लिए लगभग 15 हजार करोड़ रुपये कम पड़े जिसे बैंकों से कर्ज लेकर पूरा किया जा रहा है। 

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एक बार फिर ऐसे ही हालात हैं। चालू वित्तीय वर्ष में केंद्र से जीएसटी का शेयर उस अनुपात में नहीं बढ़ पाया है जैसी उम्मीद की जा रही थी। इस बार कुल बजट 85 हजार करोड़ रुपये का है और इसके अनुरूप 15-20 हजार करोड़ रुपये कम राजस्व प्राप्ति का अनुमान है। इस कारण कई योजनाओं के समय पर पूरा होने पर संशय है। 

अभी तक मिला जीएसटी शेयर भी पिछले साल से कम 

सूत्रों के अनुसार अभी तक सरकार को प्राप्त जीएसटी से जमा राशि का हिस्सा पहले की तुलना में कम मिला है। ज्ञात हो कि केंद्र जीएसटी के तहत संकलित राशि का 44 फीसद राज्यों के बीच वितरित करता है। इस राशि और राज्य को अपने स्तर से प्राप्त राजस्व के आधार पर योजनाएं तैयार की जाती हैं और विभिन्न विभागों को बजट भी आवंटित किया जाता है। 

योजनाओं के लिए राशि निर्गत करने में बरती जा रही कड़ाई 

विभिन्न योजनाओं के लिए भुगतान में अभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार सरकार जानबूझकर राशि निर्गत करने की प्रक्रिया को धीमी रफ्तार से आगे बढ़ा रही है ताकि आवश्यक कार्यों को पूर्ण करने में किसी तरह की परेशानी न हो। 

उत्पाद का राजस्व बढ़ा लेकिन खान विभाग की स्थिति नहीं बदली 

राज्य में इस वर्ष उत्पाद विभाग ने अधिक राजस्व देना शुरू किया है, लेकिन इससे कोई बड़ा फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। दूसरी ओर झारखंड की अर्थव्यवस्था कहीं न कहीं खान विभाग के स्तर पर वसूली गई राशि के आधार पर निर्भर है। खान विभाग लगातार तीसरे वर्ष बेहतर प्रदर्शन करने में विफल रहा है। लक्ष्य के अनुरूप राजस्व की वसूली नहीं हो पा रही है। 

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