अधिकारी महोदय तो हैं 60 पार मगर, कृपादृष्टि से पद पर हैं बरकरार
परीक्षा लेनेवाले अधिकारी की उम्र पद के अनुकूल नहीं है। यदि उनका चयन आयोग से होता तो वे 60 वर्ष से अधिक उम्र तक पद पर नहीं रहते लेकिन यहां तो मामला कृपा का है।
रांची, जेएनएन। राजधानी में उच्च शिक्षा देने वाले एक संस्थान के मुखिया की कृपादृष्टि अपने एक अधीनस्थ पर इस तरह बरस रही है कि उनके सभी सही-गलत कार्यों को अनसुना कर रहे हैं। अन्य अधिकारी इसे लेकर खूब चर्चा करते हैं, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती है कि मुखिया से कुछ कह सकें। जिन अधीनस्थ पर मुखिया की कृपादृष्टि बनी है, वे सभी की परीक्षा लेते हैं।
कुछ दिन पहले ही नाम के आगे डॉक्टर लिखने के लिए प्रवेश परीक्षा हुई थी। इसमें निगेटिव अंक को लेकर कन्यफ्यूजन की स्थिति बनी रही। परीक्षा से पहले से लेकर बाद तक परीक्षा लेने वाले अधिकारी निगेटिव मार्किंग पर बोलने की स्थिति में नहीं थे। इधर मुखिया चुप ही रहे। इतना ही नहीं, परीक्षा लेनेवाले अधिकारी की उम्र भी पद के अनुकूल नहीं है। यदि उनका चयन आयोग से होता तो वे 60 वर्ष से अधिक उम्र तक पद पर नहीं रहते, लेकिन यहां तो मामला कृपा का है।
दांव पर लगी है 25 वर्षों की राजनीति
काका की 25 वर्षों की राजनीति इस बार दांव पर लगी है। इस बार टिकट को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। लोकसभा चुनाव में राम बाबू का पत्ता साफ होने के बाद अब वे भी बेचैन हैं। कहीं ऐसा न हो कि साठ का चक्कर टिकट मिलने पर भारी पड़ जाए। काका के शुभचिंतक भी अब यही कह रहे हैं कि काका सठिया गए हैं। अब राजनीति से रिटायर भी हो जाएं तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
अब जनाब को ज्यादा काम करना होगा
लोगों को स्वस्थ रखनेवाले विभाग के पदाधिकारी इन दिनों परेशान हैं। आलाकमान का फरमान है कि अब काम के दौरान दो घंटे के लिए नहीं बल्कि एक घंटा खाने की छूट दी जाएगी। इसका नुकसान उन्हें यह हुआ कि अब उन्हें एक घंटा अतिरिक्त सेवा देनी होगी। पहले तो जनाब दो घंटे आराम करने के बाद सिर्फ एक घंटे के लिए दूसरे सत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते थे। कुछ, तो दूसरे सत्र में आना भी उचित नहीं समझते थे।
आलाकमान ने इसकी भी तरकीब खोज ली है। इस फरमान में एक और फरमान जोड़ दिया। आने और जाने का इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर अंगूठा छाप दिखाना होगा यानी अब कामचोरों की खैर नहीं। व्यवस्था में जनाब को रहने के लिए अंगूठे के साथ-साथ कार्यालय में मौजूदगी दर्ज करानी होगी। साथ ही एक घंटा अतिरिक्त अपनी सेवा देने के साथ-साथ दूसरों को भी स्वस्थ रखना होगा।
मजदूरों के लिए कंपनी के पास नहीं हैं पैसे
भारत सरकार की एक कंपनी ठेका मजदूरों के भरोसे चल रही है। कंपनी का अधिकतर काम ठेका मजदूरों के भरोसे ही है। लेकिन, कंपनी के पास ठेका मजदूरों को वेतन देने के लिए पैसे ही नहीं हैं। आए दिन कंपनी रोना रोती है कि कंपनी घाटे में है। दूसरी ओर कंपनी के मुखिया से लेकर उनके नीचे तक के सभी अधिकारियों की ठाठ में कोई कमी नहीं है। उन्हें ससमय वेतन मिल रहा है। आए दिन ये मजदूर आंदोलन तो करते हैं। लेकिन, मुखिया के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही।