Water Problem: औद्योगिक घराने नहीं सहेज रहे पानी, असीमित दोहन से हो रही परेशानी
Water Problem Jharkhand News औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास ड्राई जोन बनता जा रहा है। व्यवस्था की अनदेखी से आम जनजीवन मुश्किल में है। औद्योगिक क्षेत्रों में अभी तक सरकारी स्तर पर जलापूर्ति का प्रबंध नहीं है। नए उद्योगों को और भी संकट है।
रांची, [आशीष झा]। Water Problem, Jharkhand News राजधानी रांची के तुपुदाना औद्योगिक क्षेत्र से सटे देवी मंडप इलाके से सैकड़ों लोग पलायन कर चुके हैं। यहां वीरानी सी छाई है। कारण जलसंकट है। हजार फीट बोरिंग पर भी यहां पानी उपलब्ध नहीं है। कारण स्पष्ट है, लेकिन इस समस्या के समाधान का कभी प्रयास नहीं किया गया। दशकों बाद भी औद्योगिक क्षेत्र में सरकारी स्तर पर जलापूर्ति की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में भूजल के दोहन का भयानक स्वरूप राज्य के तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में देखने को मिलता है।
धनबाद के निरसा-मैथन इलाके से लेकर गोविंदपुर तक, जमशेदपुर के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के अलावा राज्य के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में जलसंकट का एक ही कारण है- भूगर्भ जल का असीमित दोहन। औद्योगिक घराने अपने स्तर से पानी सहेजने के लिए कुछ कर भी नहीं रहे हैं और अगर वे भूगर्भ जल का दोहन न करें तो फैक्ट्री ही नहीं चलेगी। इससे इतर अगर इसका समाधान जल्द नहीं किया गया तो आनेवाली पीढ़ियां हमें माफ भी नहीं करेंगी।
झारखंड में जलसंकट यूं तो कोई नई परेशानी नहीं है, लेकिन औद्योगिक क्षेत्रों में इस परेशानी को हमेशा नजरअंदाज किया गया। राजधानी रांची स्थित तुपुदाना औद्योगिक क्षेत्र में राइस मिलों को बड़े पैमाने पर पानी की जरूरत होती है। दशकों बाद भी इस औद्योगिक क्षेत्र में सरकारी स्तर से जलापूर्ति की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में राइस मिल संचालक आसपास के खेतों तक में बोरिंग करके पानी अपने परिसर में ला रहे हैं। इसका नतीजा औद्योगिक क्षेत्रों के बाहर से ही दिखने लगता है। कभी हरा-भरा रहनेवाला देवी मंडप इलाका जलसंकट के कारण वीरान हो गया है।
अन्य औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास भी इस प्रकार की समस्याएं दिख जाएंगी। राजधानी रांची के ही कोकर औद्योगिक क्षेत्र में जलसंकट भीषण स्वरूप लेता जा रहा है और आसपास के इलाकों में भी पानी की कमी होने लगी है। कभी 25 फीट गहरे कुएं से सालभर एक परिवार का काम चल जाता था, अभी 500 फीट की बोरिंग पर भी कोई गारंटी नहीं है। अहम सवाल यह है कि आखिर पानी जाता कहा है। उद्योगों को पानी की आवश्यकता के आंकड़ों को देखें तो इस समस्या के जड़ तक पहुंचने का रास्ता मिल जाता है।
दरअसल, उद्योगों को पानी की असीम आवश्यकताएं हैं और पानी सहेजने का कोई उपाय इनके पास नहीं है। वर्षा जल संरक्षण से ऐसे उद्योग जितना पानी बचाएंगे, उससे इनका काम एक महीना भी नहीं चलेगा। आखिरकार, उद्योग समाज की भी आवश्यकता है और सरकार के लिए भी जरूरी। उद्योगपति और चैंबर से जुड़े विनोद तुलस्यान बताते हैं कि औद्योगिक क्षेत्रों में जलापूर्ति जैसी आवश्यकता की अनदेखी की गई है। कोयला उद्योग से जुड़े राजेश रिटोलिया के अनुसार धनबाद में कई उद्योगों के लिए जलापूर्ति का एक मात्र साधन टैंकर से पानी मंगवाना है।
फेडरेशन ऑफ चेंबर ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्रीज (फिक्की) ने आगे बढ़कर सरकार के सामने आवश्यकता के अनुरूप पानी मुहैया कराने की बात रखी है। फिक्की के अनुसार झारखंड ही नहीं, देश की 50 फीसद से अधिक कंपनियां पानी-पानी का रट लगाए हुए हैं। इससे उनका उत्पादन प्रभावित हो रहा है। खासकर बिजली, कपड़ा, रसायन, सीमेंट, कृषि, शराब, खाद्य प्रसंस्करण आदि कंपनियों को पानी की अधिक आवश्यकता होती है।
2050 में उद्योगों को पड़ेगी उपलब्ध मीठे जल के 10.1 फीसद हिस्से की जरूरत
अध्ययन के मुताबिक 2025 में कुल उपलब्ध मीठे जल में से उद्योगों को 8.5 फीसदी तथा 2050 में 10.1 फीसद हिस्सेदारी चाहिए होगी। ऐसे में आनेवाले दिनों के लिए पानी सहेजने के और भी तरीकों पर विचार करना होगा। खासकर तब जब झारखंड के विकास के लिए उद्योग और खनिज ही सहारा है। सरकार को उद्योगों की चिंता तो करनी ही होगी लेकिन उनसे यह पूछने का वक्त भी आ गया है कि जितना पानी उन्होंने दोहन किया है, उसमें से कितना सहेजने की कोशिश की गई है। झारखंड में स्टील, कपड़ा, ऑटोमोबाइल और डिस्टिलरी जैसे उद्योग तेजी से बढ़ रहे हैं और इनकी आवश्यकताएं भी। ऐसे में अब गंभीर चिंतन का वक्त आ गया है।
उद्योग के प्रकार इकाई पानी (किलोलीटर प्रति इकाई)
- ऑटोमोबाइल प्रति गाड़ी 40
- डिस्टिलरी अल्कोहल किलोलीटर 122-170
- खाद टन 80-200
- स्टील टन 200-500
- कपड़ा 100 किलो 8-14
स्रोत : मैन्युअल ऑन वाटर सप्लाई एंड ट्रीटमेंट (1999)