Move to Jagran APP

रांची में टाना भगतों ने फूंका आजादी का बिगुल,पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट

देश की आजादी में टाना भगतों की अहम भूमिका रही। वर्ष 1925 में जब महात्मा गांधी रांची आए तो टाना भगत आकर उनसे मिले थे। बापू के स्वतंत्रता के आंदोलन से प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने की योजना तैयार की।

By Brajesh MishraEdited By: Published: Sun, 15 Aug 2021 01:32 PM (IST)Updated: Sun, 15 Aug 2021 01:32 PM (IST)
रांची में टाना भगतों ने फूंका आजादी का बिगुल,पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट
देश की आजादी में टाना भगतों की अहम भूमिका रही। फाइल फोटो

 रांची, जासं। देश की आजादी में टाना भगतों की अहम भूमिका रही। वर्ष 1925 में जब महात्मा गांधी रांची आए तो टाना भगत आकर उनसे मिले थे। बापू के स्वतंत्रता के आंदोलन से प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने की योजना तैयार की। आजादी की जंग में कूद गए। 1912 में बंगाल प्रोविंस से अलग कर बिहार राज्य की स्थापना हुई। उसके बाद झारखंड क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की रफ्तार और तेज हो गई। इस आंदोलन में टाना भगतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह आंदोलन 1913-14 में शुरू हुआ। आंदोलन गुमला जिला के विशुनपुर थाना, चरपी नावा टोली के जतरा उरांव के नेतृत्व में शुरू हुआ। वह पिछले जनजातीय विद्रोहों से कुछ अलग था। वह धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में पनपा और विकसित हुआ। जल्द ही उसका राजनीतिक स्वरूप सामने आ गया। उसके तीन मुद्दे स्पष्ट थे। पहला स्वशासन का अधिकार दूसरा सारी जमीन ईश्वर की है, इसलिए उस पर लगान का विरोध और तीसरा आदर्श समाज की स्थापना के लिए मनुष्य-मनुष्य के बीच गैरबराबरी का खात्मा।धार्मिक पुनरुत्थान और जातीय परिष्कार के दौर से गुजरते हुए आंदोलन जब शोषण मुक्ति के संकल्प के रूप में व्यक्त हो रहा था, तो ठीक उसी वक्त देश में राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व की बागडोर सत्याग्रही गांधी के हाथ में आ चुकी थी। टाना भगत आंदोलन में शामिल नेता और कार्यकर्त्ता गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रभावित हुए। स्थानीय माना जाने वाला आंदोलन राष्ट्रीय आंदोलन का महत्वपूर्ण अंग बन गया। इस बीच झारखंड क्षेत्र कांग्रेस की राष्ट्रीय गतिविधियों का एक जरूरी केंद्र बना।

loksabha election banner

 अपर बाजार में नजर बंद किए गए थे मौलाना आजाद

1915 में मौलाना अबुल कलाम आजाद को रांची के अपर बाजार स्थित वर्तमान आजाद उच्च विद्यालय में महीनों नजरबंद रखा गया। जून, 1917 में चम्पारण सत्याग्रह के सिलसिले में महात्मा गांधी जब बिहार के गवर्नर से मिलने रांची आए तो यहां उनका भव्य स्वागत किया गया। रांची में रौलट एक्ट और जलियांवालाबाग हत्याकांड के खिलाफ गुलाब तिवारी के नेतृत्व में लगातार आंदोलन चला। 1920 में रांची जिला कांग्रेस कमिटी की स्थापना हुई। 10 अक्टूबर, 1920 को दीनबंधु एन्ड्रूज की अध्‍यक्षता में डालटनगंज में बिहार छात्र सम्मेलन हुआ। 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में टाना भगतों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। वे रामगढ़, नागपुर और लाहौर के कांग्रेस अधिवेशनों में भी शामिल हुए। टाना भगतों के स्थानीय आंदोलन ने उनके पारम्परिक जीवन में आमूल परिवर्तन कर दिया था। आंदोलन के क्रम में टाना भगतों ने रहन-सहन, खान-पान और निजी व सामाजिक रीति-रिवाजों में परिवर्त्तन कर एक नया पंथ ही कायम कर लिया था।

अंग्रेजों के जुल्म के आगे टस से मस नहीं हुए टाना भगत

आजादी के संघर्ष के लिए भी सादा जीवन और उच्च विचार की राह की तलाश में टाना भगत जब गांधी के विचारों के संपर्क में आए तो उनको महसूस हुआ कि उनके और गांधी के विचारों में साम्य है। सो टाना भगतों ने अपने जिस आंदोलन को आर्थिक और धार्मिक आधारों पर शुरू किया। उसे देश की आजादी के राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा बनाने के क्रम में चरखा चलाना और खादी के सफेद कपड़े पहनना सहजता से स्वीकार किया। ऐतिहासिक घटनाओं की उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार 1925 में महात्मा गांधी रांची आए तो उन्होंने टाना भगतों के क्षेत्राें का भी दौरा किया था। टाना भगतों ने महात्मा गांधी को अपना नेता माना और उनके नेतृत्व में आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का संकल्प किया। ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी जमीनें छीन लीं। उन पर हर तरह के जुल्म ढाए लेकिन टाना भगत समाज अपने लक्ष्य और दिशा से विचलित नहीं हुआ।

वन सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया था टाना भगतों ने

1920 से ही झारखंड क्षेत्र में आजादी के आंदोलन में संघर्ष और रचना के नये-नये आयाम विकसित होने लगे। यहां तक कि कई इलाकों में कांग्रेस के नेतृत्व में वन सत्याग्रह भी चलाये गए। इसमें टाना भगतों ने हिस्सा लिया। आदिवासी समाज को जंगल पर पुन: वैसा अधिकार प्राप्त हो, जैसा कि अंग्रेजों के आने के पहले था, यही उन सत्याग्रहों का मुख्य उद्देश्य था। 1930 में ये सत्याग्रह खरवार आंदोलन के नाम से चर्चित हुए। 1928-29 में छोटानागपुर उन्नति समाज का गठन हुआ, तो झारखंड क्षेत्र में आजादी के वास्तविक अर्थ को उद्धाटित करने वाले राजनीतिक चिंतन की नयी प्रक्रिया शुरू हुई, जो ठीक आजादी के बाद झारखंड अलग राज्य की अवधरणा के रूप में स्पष्ट रूप से सामने आयी। छोटानागपुर उन्नति समाज ही आगे चलकर आदिवासी महासभा बनी और देश आजाद होते ही झारखंड क्षेत्र में झारखंड पार्टी का उदय हुआ, जहां से झारखंड के इतिहास की नई यात्रा शुरू हुई।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.