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छोटे शहर के लोग ही देखते हैं बड़ा सपना

रांची : फिल्म महोत्सव के अंतिम दिन का आकर्षण अभिनेता आशुतोष राणा थे। उन्हें देखने के

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Sep 2017 01:37 AM (IST)Updated: Mon, 11 Sep 2017 01:37 AM (IST)
छोटे शहर के लोग ही देखते हैं बड़ा सपना
छोटे शहर के लोग ही देखते हैं बड़ा सपना

रांची : फिल्म महोत्सव के अंतिम दिन का आकर्षण अभिनेता आशुतोष राणा थे। उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा था। उनसे बातचीत करने के लिए मुंबई से फिल्म समीक्षक मयंक शेखर आए थे। बातों का सिलसिला जब शुरू हुआ तो बातें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। मयंक शेखर ने उनसे उनके घर-परिवार, सिनेमा से लेकर रुचि-अभिरुचि, अभिनय की यात्रा पर बातें की। रेणुका से उनकी प्रेम की बातें की। दर्शकों ने भी सवाल पूछे, जिसका जवाब खूबसूरत अंदाज में आशुतोष राणा ने दिया।

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बातों का सिलसिला उनके गांव से शुरू हुआ। मयंक ने उनके गांव-शहर के बारे में पूछा। आशुतोष ने अपने गांव-जिले की ऐतिहासिकता ही बता दी कि मध्य प्रदेश के गाडरवाडा जिले में जहां वे पैदा हुए, वहां आचार्य रजनीश से लेकर महेश योगी जैसे गुरु ने जन्म लिया है। वहीं का हूं और यह भी बता दूं कि छोटे शहर के लोग ही बड़े सपने देखते हैं।

गुरु का वाक्य अंतिम वाक्य

आशुतोष ने स्वीकार कि रांची का नाम वे पहले सुने थे, लेकिन रांची पहली बार आए हैं। इसका पूरा श्रेय जागरण परिवार को है। जागरण आचार सिखाता है। बातों का क्रम आगे बढ़ा। बताया कि हमारे यहां कवि सम्मेलन होते थे। उसमें नागार्जुन, नीरज जैसे कवि शिरकत करते थे। रामलीला होती थी। उसमें भाग लेता था। इससे भाषा परिष्कृत हुई। रामलीला में अभिनय ने भी योग किया। लेकिन इन सबमें गुरु की कृपा बड़ी रही। हमारे दद्दा गुरु। गुरु ने कहा, अब दिल्ली जाने की तैयारी करो। हमने उनकी बात मानी और यहां एनएसडी में फार्म भरा और पहली बार में ही चयन हो गया। गुरु का वाक्य अंतिम वाक्य होता है। उनकी बातें हमेशा मानी। एनएसडी से निकला तो गुरु ने कहा, अब मुंबई जाओ। वहां महेश भट्ट से मिलो। यहां आए तो उनसे मिला। टीवी धारावाहिक स्वाभिमान से शुरुआत की। इसके बाद आगे बढ़ता रहा।

मीडियम को महत्व नहीं दिया

आशुतोष ने कहा, कभी मीडियम को महत्व नहीं दिया। छोटा पर्दा हो या बड़ा। हमेशा काम और रोल को महत्व दिया। महत्व बोतल का नहीं, पानी का होता है। पानी बोतल में है, लोटे में है या बाल्टी में, इसका महत्व नहीं है। महत्व तो जल का है। इसलिए नई पीढ़ी को भी मीडियम के बारे में नहीं सोचना चाहिए। न रोल के बारे में। छोटी सी भूमिका में भी जान डाल सकते हैं। छोटे-छोटे रोल भी हमारे अभिनय को परिष्कृत करते हैं।

¨हदी में सोचता हूं, ¨हदी में सपने देखता हूं

¨हदी हमारे देश की भाषा है। मैं ¨हदी में सहज हूं। इसलिए ¨हदी में सपने देखता हूं और ¨हदी में ही सोचता हूं। भाषा की अभिव्यक्ति के लिए सहज होना है और सिनेमा भाव की भाषा है। भाषा में भाव देने का प्रयास है।

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चला सवाल-जवाब का दौर

सवाल जवाब का दौर जब शुरू हुआ तो शुभांगी ने भाषा का सवाल ही किया कि कैसे युवा अपनी हिंदी से दूर होता जा रहा है। कैसे यह स्टेटस का सिंबल बन गई है।

आशुतोष ने कहा कि भाषा कभी स्टेट विषय नहीं रही। राजत्व तो भाषा में नहीं, कंठ में होता है। आक्रांताओं ने हमारी भाषा तिरस्कृत की और हम वही सोचने लगे, जैसा वे चाहते थे। हम अपनी भाषा से दूर होते गए और इसका नतीजा यह रहा कि हम संग्राहक हो गए, सर्जक नहीं। हम व्यापारी तो नहीं बन पाए, बाजार बन गए। मंडी बन गए। आप व्यापारी बनिए, मंडी नहीं। और, शब्द सुना नहीं, देखा जाता है।

आदित्य ने पूछा कि अभिनय में प्रशिक्षण कितना कारगर है? जवाब में कहा कि प्रशिक्षण जरूरी है। चाहे स्कूल में हो या रंगमंच पर। इससे अभिनय परिष्कृत होता है। अभिनय के लिए अभ्यास जरूरी है। इसकी प्रॉपर ट्रेनिंग भी जरूरी है।

आपके प्रिय अभिनेता कौन हैं? आशुतोष ने कहा, अमिताभ बच्चन की फिल्में देखकर बड़े हुए। उनकी फिल्म के डायलॉग म्यूजिक के साथ सुनाता था। इसके बाद संजीव कुमार, दिलीप कुमार, मनोज वाजपेयी, नसीरुद्दीन शाह, नवाजुद्दीन हैं। सबसे कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। एक अभिनेता के तौर पर सीखने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।


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