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झारखंड की राजनीति में मुश्किल होगा झामुमो को दरकिनार करना

Jharkhand Mukti Morcha. बीते चुनाव में भाजपा के बाद सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत झामुमो ने हासिल किया। ऐसे में झामुमो को अलग कर विपक्षी महागठबंधन बनाना कितना कारगर होगा ?

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 10 Jan 2019 11:47 AM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 11:47 AM (IST)
झारखंड की राजनीति में मुश्किल होगा झामुमो को दरकिनार करना
झारखंड की राजनीति में मुश्किल होगा झामुमो को दरकिनार करना

रांची, प्रदीप सिंह। भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्षी दलों द्वारा की जा रही महागठबंधन की साझा कवायद फिलहाल हिचकोले खा रही है। विपक्ष में सभी दलों के अपने-अपने एजेंडे हैं, लिहाजा गाड़ी पटरी पर आएगी इसे लेकर सभी में संदेह है। इसमें कोई शक नहीं कि महागठबंधन को मुकाम तभी मिलेगा जब विपक्षी पार्टियां राजनीतिक एजेंडे को निजी एजेंडों से अलग रखेंगी। इसमें झामुमो की भूमिका अहम होगी और झामुमो को दरकिनार करना महागठबंधन के लिए मुश्किल भी होगा।

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झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष सह नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने 17 जनवरी को इस संदर्भ में बैठक बुलाते हुए महागठबंधन को आकार देने की कोशिश की है। जाहिर है सबसे बड़ा दल होने के नाते पहल उसे ही करनी  थी। इस अहम बैठक में महागठबंधन आकार लेगा या नहीं, इसपर विपक्ष के साथ-साथ सत्ताधारी दल की निगाहें भी लगी हुईं हैं। हालांकि महागठबंधन को लेकर कांग्रेस व झामुमो में जिच की स्थिति नजर आ रही है। कोलेबिरा उपचुनाव के परिणाम के बाद दोनों दलों में दूरियां भी बढ़ी है।

यह बात अलग है कि इस संदर्भ में कोई खुलकर कुछ बोल नहीं रहा है। इसकी वजह राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा का राजनीतिक प्रभाव और शिबू सोरेन का करिश्माई व्यक्तित्व है। उनके उत्तराधिकारी के तौर पर हेमंत सोरेन ने भी स्वीकार्यता बनाने में कामयाबी पाई है। ऐसे में महागठबंधन में झामुमो को दरकिनार करना सीधे भाजपा को फायदा पहुंचाएगा। सत्ताधारी दल भाजपा के बाद झारखंड में सर्वाधिक वोट शेयर झामुमो का ही है।

पिछले तमाम चुनावों में झामुमो ने न सिर्फ अपने वोट शेयर को बचाए रखा है बल्कि उसमें इजाफा करने में भी कामयाबी पाई है। 2014 का विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है जब मोदी लहर में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा की सीटें विधानसभा में बढ़ी। तमाम कोशिशों के बावजूद संताल परगना व कोल्हान के झामुमो के गढ़ को अब तक भेदा नहीं जा सका है।

हेमंत सोरेन संघर्ष यात्रा के जरिए संगठन में पैनापन ला रहे हैं। वे तीन प्रमंडलों की खाक छान चुके हैं। उन्होंने राज्य भर में विधानसभा सभाओं के सम्मेलन कर जमीनी हकीकत का अध्ययन किया। चुनावी तैयारी के लिहाज से झारखंड मुक्ति मोर्चा कमतर नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा सैद्धांतिक तौर पर महागठबंधन की अगुवाई कर चुनाव मैदान में जाने का पक्षधर है। अगर स्थितियां प्रतिकूल हुई तो वह अकेले चुनाव मैदान में जाने में भी गुरेज नहीं करेगा।

संगठनात्मक स्तर पर भी मजबूत : झारखंड मुक्ति मोर्चा का संगठनात्मक आधार भी मजबूत है। कैडर आधारित पार्टी का अपना वर्ग संगठन भी है जिसे हाल ही में नए सिरे से गठित भी किया गया है। इससे नई पीढ़ी को भी झामुमो में तव्वजो मिल रही है। मिस्ड काल के जरिए झामुमो ने नए सदस्य बनाने का कारगर अभियान आरंभ किया है जिसका लक्ष्य पचास लाख नए सदस्यों को संगठन से जोडऩा है। इससे पार्टी से युवा लगातार जुड़ रहे हैं।

महागठबंधन की मुश्किलें :-सीट बंटवारे पर टकराव, दावेदारी ज्यादा से ज्यादा सीटों की।-नेतृत्व को लेकर सबसे ज्यादा जिच। कई कर रहे दबे मुंह दावेदारी।-बेहतर प्रभाव वाले छोटे दलों की भागीदारी अभी तक नहीं। -वामदलों को नकारा जा रहा, इससे बढ़ रही नाराजगी।

पिछले विस चुनाव में विपक्षी दलों का वोट प्रतिशत : झामुमो - 20.4, कांग्र्रेस - 10.5, झाविमो - 10.00, भाकपा (माले) - 1.5, एमसीसी - 1.0 ।


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