खुद से पहचानी खुद की ताकत और छू लिया बुलंदियों का आसमान, रांची एसडीओ ने ऐसे पाया मुकाम
Jharkhand News समीरा जब 26 साल की थीं तभी 2013 में उनके पिता सलीम जो प्रोफेसर थे का निधन हो गया। चिकित्सक मां आयशा और बड़े भाई जो मलयालम अखबार के संपादक हैं ने समीरा के हौसले का टूटने नहीं दिया।
रांची, जासं। जो लड़ाई जीतता है, वो लकी जनरल होता है। सामान्य आदमी बहुत ताकतवर होता है। जो लोग अपनी इस ताकत का सही इस्तेमाल करते हैं वो बुलंदियों पर बैठे नजर आते हैं। देश, समाज और मानवता की भलाई का जज्बा लेकर कोई काम शुरू करते हैं, उनकी विफलता का कोई सवाल ही नहीं होता। सफलता की शत प्रतिशत गारंटी होती है। यही राज रांची सदर एसडीओ और 2017 बैच की आइएएस अधिकारी समीरा एस की सफलता की भी है।
समीरा जब 26 साल की थीं, तभी 2013 में उनके पिता सलीम जो प्रोफेसर थे, का निधन हो गया। चिकित्सक मां आयशा और बड़े भाई जो मलयालम अखबार के संपादक हैं, ने समीरा के हौसले का टूटने नहीं दिया। समीरा ने अपनी स्कूल तक की पढ़ाई केरल के अपने गृह जिले कोटेम से की। स्नातक चेन्नई से और परास्नातक की पढ़ाई धनबाद से पूरी की। इसके बाद वे 2010 में ग्रह नक्षत्रों के बारे में शोध करने के लिए जर्मनी चलीं गईं।
यहां पांच साल यानि 2010 से 2015 तक अपने शोध कार्य में लगी रहीं। फिर 2015 में ही अपने देश और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर भारत लौट आईं। इनके मन में पहले से ही यह था कि विदेश जाकर वहां की सभ्यता और संस्कृतियों के बारे में जानेंगी। काम करने के अलग-अलग तरीकों के बारे में समझेंगी और अंतत: अपने देश और समाज के लिए कुछ बेहतर करेंगी।
समीरा कहती हैं कि देश, समाज और मानवता के लिए कुछ बेहतर करने का सबसे सशक्त माध्यम सिविल सेवा है। अपनी इसी भावना के साथ इन्होंने केरल में रहकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की। पहला प्रयास इन्होंने 2016 में किया, पर सफलता नहीं मिली।
2017 में अपने दूसरे प्रयास में इन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास करके देश व समाज के लिए कुछ बेहतर करने के अपने संकल्प की शुरुआत की। हजारीबाग जिले में प्रशिक्षण लेने के बाद समीरा की पहली ही पोस्टिंग राजधानी रांची में हुई।