यहां गुस्से में हैं गजराज, हर साल 58 लोग हो रहे शिकार
झारखंड में मानव-हाथी द्वंद्व भयावह स्थिति तक पहुंच गया है। हाथियों का अस्तित्व इसलिए खतरे में है क्योंकि वनों की सघनता में निरंतर कमी आ रही है।
रांची, आनंद मिश्र। झारखंड में मानव-हाथी द्वंद्व भयावह स्थिति तक पहुंच गया है। स्थिति यह है कि इस आपसी टकराव में पिछले दस सालों में 582 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। वन विभाग की हालिया रिपोर्ट में यह आंकड़े सामने आए हैं। स्पष्ट है कि प्रति वर्ष 58 लोग गजराज के गुस्से का शिकार हो रहे हैं। टकराव की वजह भी साफ है, हाथियों के पारंपरिक आवागमन मार्ग जिन्हें कॉरीडोर कहा जाता है में कई ऐसी विकास योजनाएं एवं संरचनाएं निर्मित हो गई हैं, जिसके कारण उनका पारंपरिक रास्ता बाधित हुआ है।
हाथी रास्ता भटक रहे हैं जिससे मानव हाथी टकराव बढ़ रहा है। जंगली हाथी अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ रहे अंतिम लड़ाई प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) एलआर सिंह की मानें तो जंगली हाथी अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। पीसीसीएफ ने कहा कि मानव हाथी द्वंद्व का मुख्य कारण जंगलों पर बढ़ता मानवीय दबाव है। हाथियों का अस्तित्व इसलिए खतरे में है क्योंकि वनों की सघनता में निरंतर कमी आ रही है। भोजन, भूमि और शरण के लिए पर्याप्त स्थान की कमी के कारण मानव एवं हाथी आपस में प्रतियोगी हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि हाथी को इको सिस्टम का अभिन्न अंग अंग है। आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कांसर्वेशन ऑफ नेचर) ने भारतीय हाथियों को लुप्तप्राय वन्य प्राणियों की सूची में शामिल किया है। मृत्यु पर चार लाख मुआवजे का है प्रावधान हाथियों या अन्य वन्य जीव के टकराव से होने वाली मृत्यु पर चार लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान किया गया है। वहीं, गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को दो लाख रुपये इलाज के लिए मुहैया कराए जाते हैं। फसल की क्षति पर 20 हजार प्रति हेक्टेयर भुगतान किया जाता है, यह अधिकतम दो हेक्टेयर के लिए ही है।
मानव हाथी द्वंद्व के कुछ ऐसे आ रहे नतीजे
वर्ष-व्यक्तियों की मृत्यु-घायल- फसल/आवास व अन्य की क्षति
2009-10 54 164 9973
2010-11 69 140 8710
2011-12 62 103 8225
2012-13 60 94 6948
2013-14 56 110 8991
2014-15 53 147 6461
2015-16 66 149 8980
2016-17 59 139 7804
2017-18 78 155 7683
2018-19 (जून) 25 43 3132
कुल 582 1244 76907